लोगों की राय

लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ

जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

241 पाठक हैं

शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


ख्यालीरामजी का दल बदलना

मारनेवाले के हाथ रोके जा सकते हैं पर बोलनेवाले की जबान नहीं रोकी जाती। जो समझदार हैं, ज्ञान-विज्ञान से अवगत हैं, बात की तह तक पहुँच सकते हैं और न्याय कर सकते हैं। पिछले दिनों श्री ख्यालीरामजी ने कांग्रेस छोड़ दी और संयुक्त विधायक दल में आकर मंत्री बन गए तो बड़ी टीका-टिप्पणी हुई। कहनेवालों ने बुरा-भला कहा पर मेरे ख्याल से बात ठीक से विचारी नहीं गई है। जो साइंस पढ़े हैं, हर प्रकार के भेद और भ्रम जानते-समझते हैं और आइन्स्टीन की 'थियरी आफ रिलेटिविटी' को समझने में थोड़ी माथा-पच्ची कर चुके हैं, कह सकते हैं कि कांग्रेस छोड़कर ख्यालीरामजी ने कोई गलत काम नहीं किया। पूर्वाग्रहों से हटकर जरा बुद्धि, वैज्ञानिक दृष्टि से विचारिए तो थियरी ऑफ रिलेटिविटी के अनुसार दल बदलना कितनी सामान्य और सहज बात है।
एक समय कहा जाता था कि पृथ्वी सतवंती नार की तरह एक जगह चुपचाप खड़ी रहे और सूरज पापी आवारा है जो उसके चारों ओर चक्कर काटकर उसकी मोटी कमर को दिन-रात घूरे। बाद में नए ज्ञानी-ध्यानी आए तो फरमाने लगे कि यह गलत है, सूरज ठहरा शरीफ आदमी, एक जगह टिककर खड़ा रहा करे और यह पृथ्वी ही दिन-रात की मुसीबत जो सूरज के चारों ओर गोल-गोल घूम के नाचे है।

बाद में आए पंडित आइन्स्टीन और उन्होंने बताया कि दोनों वक्तव्य सही भी हैं और गलत भी। पृथ्वी के चारों ओर सूरज नाचे या सूरज के चारों बाजू पृथ्वी घूमे, एक ही बात है, कोई अन्तर नहीं। सब ग्रह अपनी मजबूरी के मारे घूमते हैं, कोई किसी पर एहसान नहीं करता। सारा खोट और छलछलावा देखनेवालों की नजर में है।

अमृतसर स्टेशन से रेल चली दिल्ली की ओर तो प्लेटफार्म पर खड़े एक सज्जन बोले कि रेल जाती है और उसी घड़ी, उसी क्षण दिल्ली के प्लेटफार्म पर उसी रेल के इन्तजार में बैठा एक और व्यक्ति बोला कि रेल आती है। सो इसमें भेद की कोई बात नहीं। एक के लिए रेल जाती है और दूसरे के लिए आती है। टाइम-स्पेस का फेर है कि दोनों व्यक्ति अलग-अलग स्टेशनों पर खड़े अलग-अलग बोल रहे हैं।

सारा मामला रिलेटिविटी और स्पेस-टाइम का है। ख्यालीरामजी ने कांग्रेस छोड़ी और संविद में गए और तभी मगनलालजी ने संविद छोड़ी और कांग्रेस में आ गए तो इन दोनों बातों में कोई भेद नहीं। एक ही मतलब है।

आइन्स्टीन के अनुसार हर शक्तिशाली वस्तु खुद मौका देखकर मंजिल तय करती है और पूरी वेलोसिटी से उस दिशा में दौड़ती है। ख्यालीरामजी की मंजिल थी मंत्री बनना और उसकी असली राह वही थी जो मंजिल पर जल्दी पहुँचाए। वह संविद में आ गए और मंत्री बन गए। जिन्होंने आइन्स्टीन नहीं पढ़ा, वे गलत-सलत टीकाएँ भले करें पर जो ज्ञानी हैं वे ख्यालीरामजी की इस हरकत को स्वाभाविक ही मानेंगे। एक होती है एनर्जी अर्थात् ऊर्जा, कार्यशक्ति। ख्यालीरामजी की नजर से कहें तो उनकी मन्त्रि-पद पाने की क्षमता, तिकड़म करने का उनका सामर्थ्य। आइन्स्टीन के अनुसार यह ऊर्जा निश्चित होती है। उसका फार्मूला था ऊर्जा बराबर वस्तु का भार और गति का वर्ग। ख्यालीरामजी की ऊर्जा बराबर है-उनके राजनीतिक व्यक्तित्व का वजन, प्रभाव और उनकी गति अर्थात् जिस चाल से वह राज्य की राजनीति पर छा जाते हैं, नीतियाँ बदलते हैं, गुट बनाते हैं, समझौते करते हैं। यह सब उनकी वेलोसिटी अर्थात् गति है। व्यक्तित्व का असर और तिकड़म को गति ही ख्यालीरामजी की ऊर्जा है। इस तथ्य से वे भी परिचित हैं जो आइन्स्टीन का फार्मूला नहीं जानते।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book