लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
हमने पहले से ही सिलसिला जमा लिया था। मकान, जमीन, बँगला सब कर लिया। किराया
आता है। लड़के को भैंस दुहना आ जाए, तो डेरी खोलेंगे और दूध बेचेंगे। राजनीति
में भी रहेंगे और बिजनेस भी करेंगे। हम तो नेहरू-गांधी के चेले हैं। नेहरूजी
की तरह ठाठ से भी रह सकते हैं और गांधीजी की तरह झोपड़ी में भी रह सकते हैं।
खैर, झोपड़ी का तो सवाल ही नहीं उठता। देश के भविष्य की सोचते थे, तो क्या
अपने भविष्य की नहीं सोचते! छोटे भाई को ट्रक दिलवा दिया था। ट्रक का नाम रखा
है देश-सेवक। परिवहन की समस्या हल करेगा। कृषि-मंत्री था, तब जो खुद का फार्म
बनाया था, अब अच्छी फसल देता है। जब तक मंत्री रहा, एक मिनट खाली नहीं बैठा,
परिश्रम किया, इसी कारण आज सुखी और सन्तुष्ट हूँ। हम तो कर्म में विश्वास
करते हैं। धन्धा कभी नहीं छोड़ा, मंत्री थे तब भी किया।''
''आप अगला चुनाव लड़ेंगे?''
''क्यों नहीं लड़ेंगे। हमेशा लड़ते हैं, अब भी लड़ेंगे। कांग्रेस टिकट नहीं देगी
तो स्वतन्त्र लड़ेंगे।''
''पर यह तो कांग्रेस के खिलाफ होगा।''
''हम कांग्रेस के हैं और कांग्रेस हमारी हैं। कांग्रेस ने हमें मंत्री बनने
को कहा तो बने। सेवा की है। हमें टिकट देना पड़ेगा। नहीं देंगे तो इसका मतलब
है कांग्रेस हमें अपना नहीं मानती। न माने। पहले प्रेम, अहिंसा से काम लेंगे,
नहीं चला तो असहयोग आन्दोलन चलाएँगे। दूसरी पार्टी से खड़े हो जाएँगे।''
''जब आप मंत्री थे, जाति-रिश्तेवालों को बड़ा फायदा पहुँचाया आपने।''
''उसका भी भैया इतिहास है। जब हम कांग्रेस में आए और हमारे बारे में उड़ गई कि
हम हरिजनों के साथ उठते-बैठते और थाली में खाना खाते हैं, जातिवालों ने हमें
अलग कर दिया और हमसे सम्बन्ध नहीं रखे। हम भी जातिवाद के खिलाफ रहे और जब
मंत्री बने, तो शुरू-शुरू में हमने जातिवाद को कसकर गालियाँ दीं। दरअसल हमने
अपने पहलेवाले मंत्रिमंडल को जातिवाद के नाम से उखाड़ा था। सो शुरू में तो हम
जातिवाद के खिलाफ रहे। पर बाद में जब जातिवालों को अपनी गलती पता लगी तो वे
हमारे बँगले के चक्कर काटने लगे। जाति की सभा हुई और हमको मानपत्र दिया गया
और हमको जाति-कुलभूषण की उपाधि दी। हमने सोचा कि चलो सुबह का भूला शाम को घर
आया। जब जाति के लोग हमसे प्रेम करते हैं, तो कुछ हमारा भी फर्ज हो जाता है।
हम भी जाति के लड़कों को नौकरियों दिलवाने, तबादले रुकवाने, लोन दिलवाने में
मदद करते और इस तरह जाति की उन्नति और विकास में योग देते। आज हमारी जाति के
लोग बड़े-बड़े पदों पर बैठे हैं और हमारे आभारी हैं कि हमने उन्हें देश की सेवा
का अवसर दिया। मैंने लड़कों से कह दिया कि एम.ए. कर-करके आओ चाहे थर्ड डिवीजन
में सही, सबको लैक्यरर बनवा दूँगा। अपनी जाति बुद्धिमान व्यक्तियों की जाति
होनी चाहिए। और भैया अपने चुनाव-क्षेत्र में जाति के घर सबसे ज्यादा हैं। सब
सॉलिड वोट हैं। सो उसका ध्यान रखना पड़ता है। यों दुनिया जानती है, हम जातिवाद
के खिलाफ हैं। जब तक हम रहे हमेशा मंत्रिमंडल में राजपूत और हरिजनों की
संख्या नहीं बढ़ने दी। हम जातिवाद से संघर्ष करते रहे और इसी कारण अपनी जाति
की हमेशा मेजॉरिटी रही।
लड़का भैंस दुह चुका था और अन्दर जा रहा था। भूतपूर्व मंत्री महोदय ने उसके
हाथ से दूध की बाल्टी ले ली।
''अभी दो किलो दूध और होगा जनाब। पूरी दुही नहीं है तुमने। लाओ हम
दुहे।''-फिर मेरी ओर देखकर बोले, ''एक तरफ तो देश के बच्चों को दूध नहीं मिल
रहा, दूसरी ओर भैंसें पूरी दुही नहीं जा रहीं। और जब तक आप अपने श्रोतों का
पूरी तरह दोहन नहीं करते, देश का विकास असम्भव है।''
वे अपने स्रोत का दोहन करने लगे। लड़का अन्दर जाकर रिकार्ड बजाने लगा और 'चा
चा चा' का संगीत इस आदर्शवादी वातावरण में गूँजने लगा। मैंने नमस्कार किया और
चला आया।
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