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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


मगर नत-मस्तक हूँ 000 सोप वर्क्स वाले भैयाजी के सामने। वे 000 का बड़ा बट्टा हाथ में ले खड़े हुए है और देश की हर चुनौती का सामना कर रहे हैं। उनका विज्ञापन हर समस्या से जूझता है। सारे नगरवासी जानते हैं कि देश के स्वर्णिम भविष्य के लिए आज 000 का बड़ा बट्टा क्या नहीं कर रहा।

पिछले दिनों देश में बड़े पैमाने पर दलबदल हुआ। समूचा प्रजातन्त्र सिलसिलाहीन हो गया। भैयाजी ने सोचा यह क्या हो रहा है? यह देश इधर किधर जा रहा है? उन्होंने अपने प्रिय 000 साबुन की ओर पलभर निहारा और निर्णय लिया कि वे राजनीति में व्याप्त इस दुष्प्रवृत्ति की ओर जनता को आगाह करेंगे। संकट की इस घड़ी में देश को इन दलबदलुओं से तथा उन सब दुष्टों से, जो 000 की नकल में अशुद्ध साबुन बना इस पावन क्षेत्र को कलंकित कर रहे हैं, सावधान करना होगा। दूसरे दिन स्थानीय दैनिक में विज्ञापन प्रकाशित हुआ :

'क्या बिना पेंदे के लोटो के सहारे इस देश में प्रजातन्त्र अधिक दिनों कायम रह सकेगा? नहीं, कदापि नहीं!
'आज हमारे देश के नेताओं के सारे आचरण-व्यवहार अनैतिक, दोषपूर्ण और अनुचित हैं। बार-बार दल बदलना इसका प्रमाण है। सारे प्रजातन्त्र की क्वालिटी बिगड़ रही है।
'क्या देश के नागरिक इस स्थिति को सहन करेंगे? नहीं, कदापि नहीं!
'जब वे अशुद्ध तत्त्वों से युक्त साबुनों को ठुकराकर शुद्ध क्यालिटी वाला असली 000 साबुन (बड़ा बट्टा 50 पैसे) खरीदने पर जोर देते हैं तो वे राजनीति में भी अशुद्ध तत्त्वों को कैसे स्वीकार करेंगे?
'000 सोप वर्क्स का शुद्ध 000 साबुन खरीदकर दलबदलुओं से देश के प्रजातन्त्र को बचाइए।'
इस विज्ञापन से नगर में दलबदलुओं के खिलाफ चेतना की लहर दौड़ गई। जिसने पढ़ा वही विचारों में खो गया और बाद में झुँझलाकर उठा और 000 का बड़ा बट्टा खरीद लाया। इसके अलावा क्या किया जा सकता था! जब देश में प्रजातन्त्र का पतन हो रहा हो तब हम 000 का बड़ा बट्टा खरीदने के अलावा क्या कर सकते हैं!

आज 000 का बड़ा बट्टा प्रतीक बन गया है। हर जोर-जुलुम की टक्कर में 000 का बड़ा बट्टा हमारा नारा है। नगरवासियों की आदत बन गई है कि जब कोई ज्वलन्त समस्या खड़ी होती है, वे मार्गदर्शन के लिए 000 के बड़े बट्टे की ओर देखते हैं और प्रेरणा पाते हैं। कई बार 000 साबुन के विज्ञापन से ही उन्हें पता लगता है कि आज देश की ज्वलन्त समस्या क्या है। 000 साबुन जनता के सुख में सुखी और दुख में दुखी है। हर अवसर पर वह अग्रणी है। वह हमारा मनोबल बढ़ाता है और धीरज बँधाता है। अभी एक नेता की मृत्यु हुई तो 000 का बड़ा बट्टा रो पड़ा। उस दिन विज्ञापन यों छपा था : 

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