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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


समस्याग्रस्त वर्तमान और 000 का बड़ा बट्टा

साहित्य, संस्कृति और दर्शन में जो श्रेष्ठ है, वह अन्ततः 000 सोप वर्क्स के 000 साबुन के लिए है। मैं इस नतीजे पर पहुँच चुका हूँ। पिछले ढाई माह से मैंने कोई ऊँची बात नहीं सोची। दस तारीख को एक उच्च विचार मेरे दिमाग में फूटा था, मगर मैंने उसे प्रकट नहीं किया। उस समय रामकिशोरीलाल के साथ होटल में बैठा उसके पैसों से कचौरी खा रहा था। मुझे डर लगा कि कहीं यह उच्च विचार रामकिशोरीलाल ने सुन लिया तो वह 000 सोप वर्क्स के भैयाजी को बता देगा और भैयाजी उसे दूसरे ही दिन 000 साबुन के विज्ञापन में प्रकाशित कर देंगे। मैंने तुरन्त अभिव्यक्ति की बाटली पर संयम का बुच लगाया अर्थात चुप रह गया। मैं सोचता हूँ कि सार्त्र और उस स्तर के जितने विद्वान हैं, सबके हित में है कि चुप हो जाएँ। अपने कहे सारे शब्द पूर्ण-विराम, अर्ध-विराम तथा ऐसे समस्त चिन्हों सहित वापस ले लें। वह दिन दूर नहीं जब 000 सोप वर्क्स के भैयाजी अस्तित्ववाद का सीधा सम्बन्ध 000 साबुन की टिकिया उर्फ बड़े बट्टे से जोड़ देंगे। तब सार्त्र को सिर छुपाने को जगह नहीं मिलेगी। फिलहाल वे भारतीय चिन्तकों पर कृपा कर रहे हैं। वेद, उपनिषद्, गीता में जो कहा गया, वह सब 000 साबुन की बड़ी टिकिया उर्फ बड़ा बट्टा अपने में समेटे है।

आज का अखबार लीजिए। हमेशा की तरह 000 के बड़े बट्टे का विज्ञापन कुछ यों है :
'सहस्रों वर्ष की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक परम्परा में श्रद्धा एवं विश्वास रखनेवाले व्यक्ति यदि आज इस संकटपूर्ण परिस्थिति में जागरूक नहीं होंगे तो हमारी पुनीत, प्राचीन एवं नित नूतन संस्कृति हमारी मातृभूमि से सदा के लिए नष्ट हो जाएगी।

'राष्ट्र की अन्तरात्मा एवं एकात्मता की रक्षा की आकांक्षा से हमें जीवन के समग्र क्षेत्रों में जो पवित्र एवं श्रेष्ठ है उसे अपनाना होगा तथा राष्ट्र-विरोधी एवं आसुरी शक्तियों को परास्त करना होगा।
'नकली साबुनों से बचकर आप इन राष्ट्र-विरोधी एवं आसुरी शक्तियों को परास्त करेंगे जो आज साबुन-निर्माण के पवित्र व्यवसाय को कलंकित कर रही हैं।

'श्रेष्ठ को अपनाइए। श्रेष्ठ है 000 सोप वर्क्स का 000 साबुन। बड़े बट्टे का मूल्य मात्र 50 पैसे।
'राष्ट्र की सांस्कृतिक परम्परा की रक्षा कीजिए।'
उक्त विज्ञापन पढ़ कौन भारतीय संस्कृति का चालू प्रेमी फड़क न उठेगा। मैंने पढ़ा, तो मुझे अपने कर्त्तव्य स्मरण हुए। कर्त्तव्य दो हैं-एक : भारतीय संस्कृति की रक्षा और, दूसरा : तुरन्त 000 का बड़ा बट्टा खरीदना। आप चाहें तो पहले बड़ा बट्टा खरीद बाद में भारतीय संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं। अगर दोनों कर्त्तव्य भारी पड़ते हों तो आप केवल भारतीय संस्कृति की रक्षा में जुट जाएँ बिना 000 का बड़ा बट्टा खरीदे। या आप सिर्फ बट्टा खरीद लें और विश्वास रखें कि इसी में भारतीय संस्कृति की रक्षा है।

ऐसे विज्ञापन पढ़ अब मेरी निश्चित धारणा हो चुकी है कि विज्ञापन जागृति के माध्यम हैं। यह लब्बोतरे के, बाँहों में झरने की तरह गिरते साड़ियों के पल्ले, नाव से कटे हुए ब्लाउज, प्राचीन मूर्तियों से अपने सौन्दर्य का मिलान करनेवाले पथरीली मुस्कान लिए चेहरे, स्पर्श के क्षेत्र में मिनी ऊँचाइयाँ, फूल की पाँखुरी की-सी स्तोजन्य कोमलता, शक्ति और तन्दुरुस्ती की विटामिन प्रेरणाएँ, सिगरेट के भरपूर कश, सर्वोत्तम सफेदी, मनमोहक सुगन्ध से भरपूर तथा अनेक विशेषताओं से युक्त जो कुछ सर्वत्र प्रशंसित है, रंग जमा रहा है; मेहनत के बाद तसल्ली पूरी देता है-वह सभी कुछ विज्ञापनों के कारण है, माल बिके न बिके मगर माल में जो निहित गुण है वह प्रतिष्ठित हो जाता है। स्नो बिके या न बिक, त्वचा की कोमलता के वैयक्तिक आग्रहों को सामाजिक मान्यता मिल जाती है। माल उखड़ता है, मगर गुण स्थापित हो जाता है जो माल को नए सिरे से निमन्त्रित करता है। यह क्रम चलता रहता है और देश सुन्दरता के सभ्य सांस्कृतिक सोपान चढ़ता रहता है।

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