लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
शब्दों को अर्थ देनेवाले साथी
शुरू में मतों का समूहीकरण नहीं हुआ। सवाल ने धीरे-धीरे शक्ल अख्तियार की।
कुछ साथी थे जो ऐसा सोच रहे थे। उन्होंने बाद में कहा। दीगर साथियों ने भी
अपने खयाल जाहिर किए। हिसाब लगाकर देखा कि अस्सी सैकड़ा की राय एक-सी है। सबब
स्पष्ट था कि तीन-चार घंटे बीत चुके। बिना साफ हवा के दिमाग का खुलना मुनासिब
नहीं था। बेहतर यह होता कि पहले उसूल तय किया जाता, मगर उतना वक्त नहीं था।
अमल के लिए छोटा-सा प्रोग्राम बना लिया। जाहिर है, उसी से नए उसूल सामने आते
हैं। शब्दों को अर्थ दिया जाना चाहिए। सभी साथी यही सोच रहे थे। वहाँ से कॉफी
हाउस एक मील था। तय हुआ कि पैदल चला जाए और वहाँ जाकर जनता के बीच में बैठकर
कॉफी पी जाए, डोसे खाये जाएँ। एक साथी बिगड़े। बोले, कॉफी के पूर्व डोसा खाने
का विचार द्विज विचार है, जो संघर्ष की शख्सियत के प्रतिकूल है। इस पर थोड़ी
बहस हुई। फिर तय रहा कि पहले वहाँ जाकर कुर्सियों पर कब्जा करना जरूरी है। यह
पहला कदम होना चाहिए। दीगर मसले वहीं तय होंगे।
साथी कॉफी हाउस की ओर बढ़े। कुछ इसी सूबे के थे, कुछ दीगर सूबों के, जो बचपन
से ही यहीं बसे हुए हैं। जाति भी अलग-अलग। उनके सोचने का तरीका और संस्कार
भिन्न थे, मगर एक सामान्य रचनात्मक अनुशासन के अन्तर्गत वे आगे बढ़ रहे थे। वे
सड़क के स्तर तक एकजुट होने में कामयाब हुए थे।
यह सड़क रेलवाई के स्टेशन से आती हैं। राह में कुछ झोंपड़े हैं और कुछ छोटे
दूकानदार सौदा-सुल्फ बेचते हैं जैसे दाढ़ी बनाने का ब्लेड वगैरह। वहीं
ट्रांसफर्मा लगा है बिजली का। बाएँ को मजिस्टर का दफ्तर और आगे कोतवाली है,
जहाँ रपट लिखाई जाती है। सड़क पर अनेक युवजन आ-जा रहे हैं कायदे से। पुलिस की
हिमाकत का समुचित प्रत्युत्तर देने को सक्षम हैं, मगर फिलहाल कोई क्रांति
नहीं हो रही। हवा चल रही है अपनी मर्यादा के अनुसार, जो वाजिब है। साथी लोग
यह सारा गैरबराबरी का नजारा देखते बढ़ रहे हैं। गो, माहौल खुशनुमा है, हालाँकि
उसकी भी अपनी कमजोरियाँ हैं। तफसील के दावे व्यर्थ हैं, मगर जैसे यही कि कुछ
लोग कार में बैठे गिट-पिट करते चले जा रहे हैं। साथियों को यह गैर-बराबरी ठीक
नहीं लगी। तभी कॉफी हाउस आ गया।
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