लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
फिर आते हैं युवक नेता नवलकिशोर प्रेमी। आप विगत सत्ताईस वर्षों से युवक नेता
हैं और आगे भी रहेंगे। नई बत्तीसी फिट करवाई है और बालों पर खिजाब लगाते हैं।
बातचीत में अक्सर जयप्रकाश नारायण का जिक्र करते हैं जिनसे वे असहमत हैं। खुद
को कांग्रेस का 'यग ब्लड' कहते हैं और पार्टी के आन्तरिक चुनावों में मुँह की
खाते हैं। 'क्राइसिस' के मौकों पर कहते हैं कि हमने तो पहले ही कहा था, तब
किसी ने नहीं सुनी। चीनी आक्रमण के समय आपने कहा कि हमने तो पहले ही कहा था,
पाक-आक्रमण के समय बोले : हमने पहले ही कहा था, कांग्रेस जब चुनाव में हारी
तब बोले हमने पहले ही कहा था और अभी निजलिंगप्पा और इन्दिरा गांधी के मतभेद
हुए तो बोले कि हमने तो पहले ही कहा था कि कांग्रेस टूटेगी, मगर तब हमारी
किसी ने नहीं सुनी। हमेशा यही होता है। वे पहले ही कह देते हैं और उनकी कोई
नहीं सुनता। उनके युवा होने का प्रमाण यह है कि अखबारों में छपी खबर पर
सन्देह करते हैं और सभी हिन्दी पिक्चरें देखते हें। अपने को जनता का सही आदमी
मानते हैं और आर्यभक्तजी से इनकी पटरी खूब बैठती है, क्योंकि दोनों सड़क-छाप
हैं।
इसके बाद हैं पन्नालालजी तीन सौ। आपके सम्मान में एक बार किसी संस्था ने पाँच
सौ एक रुपयों की थैली भेंट करने का निणय लिया था, मगर कुल तीन सौ ही एकत्र हो
पाए। लाचार होकर झिकझिक के बाद संस्था ने तीन सौ ही भेंट कर दिए। तब से जनता
आपको पन्नालाल तीन सौ कहने लगी। अब वही नाम पड़ गया। बारह वर्ष से सहकारिता की
खा रहे हैं और पक्के गाँधीवादी कहलाते हैं। मौके पर मौन मार जाते हैं और पीठ
पीछे सबकी बुराइयाँ करते हैं। और हैं देवीचरण कालीचरण फर्म के मुनीम
बजरंगसहाय गुप्ता, कनकमल नामोद, विश्वबन्धु जिला-गांधी और एक केन्द्रीय
मंत्री के डायरेक्टर चमचे विश्वनाथ दवे। बजरंगसहाय गुप्ता ज्योतिष पर विश्वास
करते हैं। 'क्राइसिस' के वक्त बोल देते हैं कि मेष का शनि जो करवाए कम है।
धीरज रखो। कनकमल नामोद के विषय में सब जानते हैं कि व्यर्थ हैं। न लीपने के न
छावने के। विश्वबन्धु जिला-गांधी पुराने नेता हैं। 'जिला-गांधी' नाम जिले की
जनता ने दिया था। आपको सर्वोदय वालों ने अपनी तरफ खींचने की बडी कोशिश की,
मगर नहीं गए। बोले, सक्रिय राजनीति में रहूँगा। नतीजा यह हुआ कि कहीं के नहीं
रहे। कन्धे पर खादी की थैली लटकाए रहते हैं। उसमें एक घड़ी रखते हैं। जब देखना
होता है, थैली से निकालकर घड़ी देखते हैं।
ये सब लोग मिलकर जो कुछ करते हैं उसे कहते हैं राजनीतिक हलचल। वह हमेशा एक
जैसी होती है। सबसे पहले यों होता है (और इस बार भी हुआ) कि बदरी भैया पंसारे
ने अपनी बादामी शेरवानी पहनी और बैठक में आ गए। कुछ देर बाद कांग्रेस दफ्तर
से किशनलाल आर्यभक्त का फोन आया। बोला, ''नवलकिशोर प्रेमी को लेकर आपके उधर आ
रहा हूँ। कहीं जाना मत।'' पंसारेजी ने पन्नालाल तीन सौ को फोन लगाया।
सब बैठे। चर्चा हुई। नवलकिशोर प्रेमी ने कहा कि हमने पहले ही कही थी कि
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांग्रेस में झगड़े पड़ेंगे। लालाराम गौड़ ने सुझाव
दिया कि इस पर एक आम सभा हो जाए, क्योंकि जनता भ्रम में है। प्रेमी ने कहा कि
अखबार में ठीक खबरें नहीं आ रही हैं। विश्वनाथ दवे बोले कि भाई साहब से
दिल्ली ट्रंक करके पूछ लो क्या करना, कैसा करना। बजरंगसहाय ने कहा कि फरवरी
से गुरु अच्छा फल देंगे, तब तक सबर खाओ। विश्वबन्धु जिला-गांधी पास के जिले
के एक विधवाश्रम में चल रहे गांधी शताब्दी समारोह के मुख्य अतिथि थे, सो आ
नहीं सके। दूसरे दिन बाबू रतनसिंह सुराजी ने कांग्रेस में बढ़ती अनुशासनहीनता
को देखकर कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया।
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