लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
'इन्टरव्यू में जाना है यार, इसीलिए यह खादी पहननी पड़ती है। कोई नेताजी भी
इन्टरव्यू बोर्ड में मेम्बर हैं, सो खादी पहननी पड़ेगी। ड्रामा करना पड़ेगा
सारा।'
'कौन-से विभाग में इन्टरव्यू है?' नेताजी ने पूछा।
'हरिजन कल्याण में है।'
'अच्छा-अच्छा,' और नेताजी फिर कपड़े के थान देखने लगे।
'ड्रामे के लिए पहनना पड़ता है।' लड़के ने बड़बड़ाते हुए बटुआ निकाला और
नन्दरामजी से पूछा, 'कितना बिल हुआ?'
'बिल-उल तो सदाशिवजी आप ही बनाइए। हिसाब-किताब आप ही करते हैं।' नन्दरामजी ने
सदाशिवजी से कहा।
सदाशिवजी कुछ बोले नहीं। उन्होंने बिल-बुल पास खींची और दाम लिखने लगे। लड़का
दाम चुकाकर तेजी से चला गया।
'अजीब बात है। कुछ देर पहले कोई सज्जन फोन पर थियेटर के लिए खादी का कपड़ा
माँग रहे थे और अब ये सज्जन कर रहे हैं ड्रामे के लिए खादी पहननी पड़ रही है।'
नन्दरामजी सड़क की ओर देखते हुए बोले।
'हम सब जानते हैं, हमारे ही विभाग में नौकरी के लिए आया है। मैं तो खुद
बैठूँगा इन्टरव्यू बोर्ड में। मुझे ही कह रहा था कि एक नेताजी हैं, जिनके
कारण खादी पहननी पड़ रही है। मुझे जानता नहीं। अब इन्टरव्यू में जब मुझे बैठा
देखेगा, तो चौंक जाएगा।' नेताजी ने हँसकर कहा।
'गई बिचारे की नौकरी। अब आप क्यों लेने लगे। आपके सामने ही खादी पहनकर गया
है।' सदाशिवजी ने कहा।
'नौकरी में क्यों नहीं लेंगे? सामने ही खादी पहनकर गया तो क्या हुआ? जो
व्यक्ति परिस्थितियाँ देखकर अपने को बदल लेता है वह वाकई बहुत हुशियार है।
मनुष्य को चाहिए कि वह जैसा समय देखे वैसा करे, चाहे मन मारकर ही सही।'
नेताजी ने कहा।
'सुन्दर बात कही है आपने। सुना सदाशिवजी, परिस्थितियों में मनुष्य को बदलना
ही चाहिए, चाहे मन मारकर ही सही। आप देखते हैं टेलीफोन की घंटी बज रही है, तो
चाहे व्यस्त क्यों न हों उठकर सुनना ही चाहिए। हर बार कह देते हैं हम हिसाब
कर रहे हैं।'
इतने में टेलीफोन फिर बजने लगा। नन्दरामजी ने सदाशिवजी की ओर देख मुँह फेर
लिया और काउंटर से सिर टिका सड़क की ओर देखने लगे।
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