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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


'सोच लीजिए, हम तो आपके ही लाभ के लिए कह रहे हैं।'
'धन्यवाद। आप दूसरा निकालिए।' लड़के ने कहा।
'अजीब बात है। आप धन्यवाद भी देते हैं और अपने ही फायदे की बात भी नहीं मानते।' नन्दरामजी दूसरे नम्बर का कुर्ता-पाजामा निकालने लगे।
'जो कपड़ा ग्राहक चाहता है, सो ही न देंगे आप, या अपनी मर्जी का देंगे।' सदाशिवजी बोले।

'आप अपना हिसाब-उसाब कीजिए।'
'मैं क्या यहाँ कपड़े पहनकर देख सकता हूँ?' लड़के ने पूछा।
'जरूर पहन सकते हैं। अन्दर लँगोट-उँगोट तो पहने होंगे ना। फिर क्या? शौक से पहन लीजिए। आप कोई महिला हैं चाहे उधर से घूमकर अन्दर चले जाइए, वहाँ पहन लीजिए।'
लड़का कुर्ता-पाजामा हाथ में ले काउंटर से घूमकर अन्दर गया, जहाँ कम्बलों के ढेर से टिककर एक व्यक्ति लेटा था। नन्दरामजी ने उस व्यक्ति को ज़रा सम्बोधन करते हुए कहा, 'भाईजी, ज़रा बाबू साहब कपड़ा बदलने आ रहे हैं।'
'अरे तो आएँ, सुसरे हम कौन उन्हें देख रहे हैं।' लेटे हुए व्यक्ति ने टोपी को और अधिक आँखों पर खिसकाते हुए कहा। तब तक लड़का अन्दर पहुँच गया था।
तभी टेलीफोन की घंटी बजी।
'अब आप सुनिए।' नन्दरामजी ने सदाशिवजी से कहा। सदाशिवजी ने उत्तर नहीं दिया। वे हिसाब लगाते रहे।
'हम कह रहे हैं अब आप ही सुनिए। हम ज़रा ग्राहक में लगे हैं।' उन्होंने फिर दुहराया।
'ग्राहक तो अन्दर कपड़ा बदल रहा है। आप उसमें क्या लगे हैं?'
'हमने कपड़ा निकालकर दिया तभी न बदल रहा है, नहीं तो कैसे बदलता। हम कह रहे हैं हम ग्राहक में लगे हैं। आप स्वयं देख रहे हैं। वे सज्जन अभी कपड़े बदलकर आ सकते हैं। दूसरा कुछ माँग सकते हैं। आप देख रहे हैं। हम काम में हैं। आप खुद उठिए और टेलीफोन पर जवाब दीजिए।'
'हमें तो आप कोई काम करते दिखाई नहीं देते अभी। आप फोन सुन सकते हैं।'
'यों तो आप भी हमें कोई काम करते दिखाई नहीं देते।'
इसी समय दूकान के अन्दर एक नेताजी घुसे, तो सदाशिवजी खड़े हो गए और नमस्कार करने लगे।
'आप फोन सुनिए, नमस्कार हम कर लेंगे।' नन्दरामजी ने उन्हें टोका और स्वयं नेताजी को नमस्कार करने लगे। नेताजी कुछ बोले नहीं। वे घूम-घूमकर कपड़ा देखने लगे। सदाशिवजी ने फोन उठाकर कहा, 'खादी भंडार। रांग नम्बर।' और फोन रखते हुए नन्दरामजी से कहा, 'रांग नम्बर था।'

'होगा, हमें क्या। हम तो यह जानते हैं कि आप जब फोन उठाते हैं, रांग नम्बर होता है।'
सदाशिवजी फिर हिसाब करने बैठ गए। वह लड़का अन्दर से निकला, तो कुर्ता-पाजामा पहने था। उसने नन्दरामजी से कहा, 'मेरे ख्याल से यह बिलकुल फिट है।'
'हाँ, फिट तो है, पर हमारी सलाह मानते तो आप ढीला ही लेते, जो सिकुड़कर ठीक हो जाता।'

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