लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
'मगर ऐसी हालत में मुझे उन्हें साफ कहना था कि मैं थर्ड क्लास से यात्रा कर
वही किराया लूँगा और भाषण देने के सौ रुपए अलग लूँगा।'
'ऐसा तुम नहीं कर सकते थे।'
'क्यों नहीं कर सकता था?'
'इसलिए कि तुम सम्माननीय अतिथि थे।'
'क्या मतलब?'
'सम्माननीय अतिथि थर्ड क्लास में नहीं जाते। वे गांधीजी पर भाषण देने का पैसा
नहीं लेते।'
और इसके बाद हम दोनों ने जोर से ठहाका लगाया। हम दोनों परस्पर एक-दूसरे को
दाद देते हुए हाथ मिलाने लगे।
'मानते हो प्यारे, खड़ी की ना नैतिक समस्या?' मैंने कहा।
'मानते हैं।'
'इससे मेरे चरित्र की ऊँचाइयों का पता लगता है ना!'
'बिलकुल लगता है।'
'अब बोलो उन सौ रुपयों का क्या करें जो गांधीवाद की सार्थकता पर भाषण देने पर
मिले।'
'मेरी मानो तो एक शेरवानी सिलवा लो। तुम अब भाषण देने लेगे हो और वक्ता
शेरवानी में ही जँचता है।'
'बिलकुल ठीक।'
हम लोग खादी भंडार गए और हमने शेरवानी का बढ़िया कपड़ा खरीदा और सिलवा डाला।
पहली बार जब शेरवानी पहनी तो लगा, सचमुच वर्तमान युग में कहीं-न-कहीं
गांधीवाद की सार्थकता है।
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