लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
एक मिनी भ्रष्टाचार
पिछले दिनों मैंने एक भ्रष्टाचार किया। उसे भ्रष्टाचार कहना देश के परम
भ्रष्टाचारियों की शान में गुस्ताखी होगी, मगर अपने कर्म के लिए इसके
अतिरिक्त कोई शब्द मिल नहीं रहा जिसका उपयोग करूँ और कलंक से बरी हो जाऊँ।
मेरे एक मित्र ने दो शब्द सुझाए थे-समझदारी और व्यावहारिकता, जिन्हें मैं
भ्रष्टाचार के एवज में उपयोग कर सकता था। उसका आग्रह यही था, मगर मैंने नहीं
माना। उसका कहना था कि जो लोग भ्रष्टाचार करते हैं वे कहते हैं कि यही
समझदारी है, यही व्यावहारिकता है, अतः तुम कोई अजूबा नहीं करोगे कि अपने कर्म
को उक्त संज्ञाएँ दोगे। मैंने इनकार कर दिया। मैंने कहा, मुझे भ्रष्टाचार को
भ्रष्टाचार कहने में हर्ज नहीं लगता। मगर यह शब्द ऐसा सर्वव्यापी है, इसके
संदर्भ में ऐसी बड़ी-बड़ी हरकतें सुनाई जाती हैं कि मुझे अपना काम बहुत छोटा
लगता है। मेरा भ्रष्टाचार एक नन्हा-सा भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार की
स्वर्ण-दिशा में एक नम्र प्रयास है, एक मुन्नी-सी क्रिया है, टुँइयाँ-सी हरकत
है। मैंने शब्द बनाया-'मिनी भ्रष्टाचार' एक पौधे-नुमा, घुटनों-से काफी ऊपर
उठी फ्रॉकनुमा भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार की पहाड़ी ऊँचाइयों में बेबी ऊँचाई का
काम, महाकाव्यों की तुलना में एक हाइकू। मित्र ने कहा-छोटा हो या बड़ा,
भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार है। इससे मुझे कष्ट हुआ। एकेडेमिक बहसों में यदि
कटु सत्य एकाएक कहीं से उद्घाटित हो जाए, तो बुद्धिवादियों को इस प्रकार की
पीड़ा हो जाती है, नैतिक प्रश्नों को लेकर विशेष रूप से।
नियमानुसार मेरे शरीर में एक अदद आत्मा है। रहती चली आ रही है। अन्तिम
प्राप्त सूचना तो यही है कि कम्बख्त सक्रिय है अभी भी, और बाह्य समझोतात्मक
दबावों की उपेक्षा करती है। मेरे सद्यः भ्रष्टाचार को लेकर भी वह अपनीवाली
सक्रियता दिखाने से नहीं चूकी और परम्परागत आक्रमण-प्रणालियाँ अपनाकर मुझे
कचोटती रही। आत्माओं का यह स्वभाव है, मर्ज है। परिणाम यह है कि एक न-कुछ-सा
भ्रष्टाचार भी मैं भुला नहीं पा रहा हूँ।
हुआ यह कि दूर के एक शहर की एक संस्था ने मुझे 'गांधीवाद की वर्तमान युग में
सार्थकता' विषय पर आयोजित विचार-गोष्ठी में भाषण देने के लिए बुलाया। आजकल
साल-भर के लिए देश में गांधी का सीजन चल रहा है, सो यह आयोजन स्वाभाविक था।
जो गांधीवादी विचार गोदामों में पड़े वर्षों से सड़ रहे थे, वे मुरझाए
व्यक्तित्वों की बैलगाड़ियों पर लदकर मण्डी में आ गए और बड़ा शोरगुल रहा।
भाषणों के इस विराट नक्कारखाने में विनम्र तूती के रूप में मैंने भी पेंपें
प्रस्तुत की और वन्दना के बेसुरों में एक सुर अपना मिला अहं को तुष्ट किया।
संस्था ने लिखा था-हम ठहरने, खाने के बन्दोबस्त के अतिरिक्त आपको तीन फर्स्ट
क्लास का किराया देंगे और आपको दो दिन रहना होगा। मैंने सोचा कि गांधी के नाम
पर देश में कितने ही लोगों ने जीवन-भर के लिए अपना ठहरने-खाने का बन्दोबस्त
कर लिया है, यदि दो दिन के लिए मेरा भी हो जाए, तो क्या हर्ज है। गांधीवाद की
वर्तमान युग में यही सार्थकता है, मैंने स्वीकार कर लिया। मैंने चेहरे को
गम्भीर बनाया, विचारक की मुद्रा के उपयुक्त अपने शरीर को ढीला किया, आकाश की
ओर डूबती आंखों से देखा। औपचारिकता, सौजन्य और आभार-स्वीकार की सड़ी-गली
शब्दावली को याद किया और यात्रा पर चल दिया।
स्टेशन पर आकर मैंने स्वयं से एक प्रश्न किया। हो सकता है इस प्रकार के
प्रश्न उठाने में उस कमबख्त आत्मा का षड्यन्त्र रहा हो, जो बिना टिकट मेरे
साथ चल रही थी। (कार्टून आइडिया-टिकटघर की खिड़की के सामने खड़े संन्यासी से
टिकट बाबू कह रहे हैं-बाबा, तुम्हारा दो टिकट लगेगा, एक तुम्हारे शरीर का,
दूसरा आत्मा का) प्रश्न यह था कि मुझे थर्ड क्लास में बैठकर यात्रा करनी
चाहिए अथवा फर्स्ट क्लास में।
इसी रूप-रंग का प्रश्न कभी गांधीजी के मन में उठा था और गांधीजी के निजी
ईश्वर ने उन्हें सलाह दी थी कि तुम्हें थर्ड क्लास में यात्रा करनी चाहिए,
क्योंकि यह देश गरीब है, सही मानों में थर्ड क्लास है और जरूरी है कि दुख
झेलकर भी तुम थर्ड क्लास के यात्रियों के समीप रहो। इसी आकार-प्रकार का
प्रश्न आजादी के बाद कांग्रेसी मन्त्रियों के मन में भी उठा था और मन्त्रियों
के निजी सचिवों ने उन्हें सलाह दी थी कि आपको फर्स्ट क्लास की यात्रा करनी
चाहिए, क्योंकि आपको भत्ता मिलता है, आप थर्ड क्लास के यात्रियों से ऊपर हैं
और बर्थ पर आपका जन्म-सिद्ध अधिकार रेल विभाग स्वीकार कर चुका है। मेरा
प्रश्न इसी रंग-रूप और उतकार-प्रकार का होकर भी भिन्न था। प्रश्न था कि क्या
मुझे थर्ड क्लास की यात्रा करनी चाहिए, जबकि संस्था मुझे फर्स्ट क्लास का
किराया देगी? आत्मा ने कहा कि यदि तू उनसे फर्स्ट क्लास का किराया ले रहा है,
तो फर्स्ट क्लास में बैठकर जा और यदि तू थर्ड क्लास में बैठकर जा रहा है, तो
तू उनसे भी थर्ड क्लास का किराया ही ले।
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