लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
|
241 पाठक हैं |
शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
''खैर, तुम अपने से मेरी तुलना मत करो। मैं मारने-खाने की सेवाएँ नहीं करता।
मैं प्राणी मात्र की रक्षा के लिए, उन पर दया के लिए संस्था चलाता हूँ,
समझीं।''-वर्माजी ने कहा।
''कितने सुन्दर विचार हैं आपके। इसलिए आपकी संस्था के ज्यादा सदस्य नहीं
हैं।''-वह बोली।
वर्माजी चुप रह गए। सचमुच उनकी संस्था की सदस्यता अधिक नहीं, मगर वे इसमें
क्या कर सकते हैं।
अहाते के पास रामप्रसाद बाबू की गाय आकर रुक गई थी कुछ देर से। वर्माजी का
ध्यान खींचते हुए उसने कहा-''बेटा, इन कुत्ते-बिल्लियों से क्या सलाह लेते हो
चुनाव के मामले में। ज़रा अपने दिमाग से सोचो।''
''हमारी स्थिति आजकल इन जैसी ही हो रही है, माताजी। इसलिए पूछने में कोई हर्ज
नहीं। ये सब भी इसी देश के वासी हैं।''
''वह ठीक है बेटा, मगर देश के भविष्य का सवाल है।''
''आपका क्या खयाल है?''
''भगवान के लिए मुझे मत घसीटो, मगर हाँ, अच्छी पार्टी आए इसे कौन नहीं चाहता।
सब कुछ तुम्हारे हाथ है।''
तभी रामप्रसादजी ने गाय को हँकाला और वह बढ़ गई। बिल्ली उठी और पीछे की तरफ
निकल गई। वर्माजी कुछ क्षण चुप खड़े रहे। फिर टू-टू से बोले-''सुना तुमने,
गोमाता कहती है कि कुत्ते-बिल्लियों से चुनाव के प्रश्न पर सलाह ही मत
लो।''
''उनके भी स्वार्थ जुड़े हुए हैं। राजनीतिक भी, आर्थिक भी। गायजी स्वयं को
उत्पादक वर्ग का मानती हैं। हम कुत्ते-बिल्ली तो पृथ्वी पर भार हैं,
हमारा क्या है।''
वर्माजी निर्णय नहीं ले पा रहे थे। वास्तव में वे बाहर जाने की सोच रहे थे और
दरवाजे के बाहर अहाते में ही चर्चा करते रुक गए थे।
तभी दूर से उनकी संस्था का एक सक्रिय सदस्य इधर आता नजर आया। यह इस क्षेत्र
का नेता है। वर्माजी के ग्यारह वर्ष से लगातार अध्यक्ष चुने जाने में इसी
प्राणी का विशेष हाथ रहा है। कई संस्थाओं में इसकी तूती बोलती है और वह वहाँ
अपनी 'पॉलिटिक्स' चलाता है। इसके इशारे पर कई गुण्डे चलते हैं। वह वर्माजी से
कहता है कि धीरे-धीरे पूरे प्रान्त में संस्था की शाखाएँ खोलेंगे। प्रान्तीय
सम्मेलन बुलवाएँगे, जिसका उन्हें अध्यक्ष बनाया जाएगा और जोर डालकर बड़ी
सरकारी ग्रान्ट ली जाएगी। पिछले चुनाव में भी वह इसी तरह आया था और उसने
वर्माजी के वोट एक पार्टी-विशेष में डलवा दिए थे, जिसका वह तब कार्यकर्ता था।
इस बार भी वह आया है। पता नहीं आजकल वह किस पार्टी में है?
वर्माजी ने अनुभव किया कि उनकी रीढ़ की हड्डी एकाएक नरम पड़ती जा रही है, मानो
उनकी कहीं एक दुम है जो दब गई है। उनके घुटने कमजोर हो रहे हैं, वे झुक गए
हैं और हाथों के बल पर टिके हुए हैं। उनकी गर्दन लटक गई। उनकी स्थिति उस
प्राणी की तरह हो
गई जो दया का पात्र है, असहाय है और आज्ञाकारी है।
टू-टू कान फड़फड़ाकर उठा। वह सोचने लगा कि सिर्फ चुनाव के समय आनेवाले इस नेता
पर ही भौंका जाए या नहीं। तभी उसे वर्माजी का वाक्य ध्यान आया कि यह इस पर
निर्भर करता है कि तुम किसके कुत्ते हो? उसने एक बेबस मुद्रा में खड़े वर्माजी
की ओर देखा और चुप बैठ गया।
|