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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


''फिक्र मत करो प्यारे, चलता है। जब अपनी संस्था का विकास होगा, पैसा काफी आएगा तब तुम सब कुत्तों के लिए हम निकरें सिलवा देंगे!''
''काली या नीली?'' टू-टू ने पूछा।
''पॉलिटिक्स में तू मत पड़ा कर।''-वर्माजी ने उसे डाँट लगाई-''हम मनुष्यों की दुर्दशा नहीं देख रहा जो पॉलिटिक्स में पड़ गए हैं और तबीयत का कपड़ा पहनने तक के लिए परेशान हैं। जैसी निकर मिले पहन लेना। सन्तोषी सदा सुखी।'' फिर एक लम्बी साँस ले कहने लगे-''मगर यार टू-टू उस निकर में भी अभी काफी देर है। पता नहीं संस्था की आर्थिक दशा कब सुधरेगी?''
''मध्यावधि चुनाव के बाद क्या कुछ फर्क पड़ेगा?''-टू-टू ने पूछा।
''क्या कह सकते हैं! नतीजों पर है! देखें कौन पावर में आता है?''

''आप किसे वोट दे रहे हैं?'' टू-टू ने पूछा।
''यही सोच रहा हूँ। दरअसल मैं इसी बारे में तुमसे सलाह लेना चाहता था''-वर्माजी ने कहा।

''आप भी वर्माजी गजब करते हैं, हम कुत्तों से सलाह ले रहे हैं। हमारा कोई मत होता है। हम तो हुकुम के बन्दे ठहरे। आप जिस पर कहेंगे भौंक देंगे, जिसके सामने कहेंगे दुम हिला देंगे। आप पहले अपनी पार्टी तय कीजिए।''
''हमारी पार्टी पहले से तय है। जानवरों की पार्टी! कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा गधा! किसी कम्बख्त को वोट देने का हक नहीं,'' वर्माजी हँसकर बोले।
''अच्छा।''
''क्यों?''
''इसी कारण आपके सारे सम्बन्ध मधुर हैं। पशुओं को वोट देने का हक होता, आपस में झगड़े पड़ जाते।''
''अच्छा, मजाक नहीं सच-सच कहो किसे वोट दिया जाए?''
''हम कुत्तों से मत पूछिए।''
''देखो टू-टू, मैं हमेशा से मानता रहा हूँ कि कुत्तों में अच्छे आदमी और बुरे आदमी की पहचान  रहती है।''
''गुजर गए वे दिन, अब वैसे कुत्ते नहीं रहे। तब शरीफों के दरवाजे बँधते थे और बदमाशों पर भौंकते थे। आज उल्टी स्थिति है। चोरों के दरवाजे बँधे हैं, ईमानदारों पर भौंक रहे हैं।''

''वाट डू यू मीन! तुम मुझ पर व्यंग्य कर रहे हो? मैं चोर हूँ जिसके दरवाजे तुम बँधे हो। देखो टू-टू, तुम जब ज़रा से पिल्ले थे, जब तुमने आँखें भी नहीं खोली थीं तब से मैं इस संस्था का अध्यक्ष चला आ रहा हूँ। आज तक किसी ने मुझ पर उँगली नहीं उठाई, समझे। संस्था की पाई-पाई का हिसाब रखता हूँ। सालाना आडिट करवाता हूँ। तुम मुझे बदमाश कह रहे हो! कुत्ते कहीं के, शर्म नहीं आती।''
टू-टू की दुम दब गई। वह थर-थर काँपने लगा।

''क्या मैं इस्तीफा देकर फिर से चुनाव करवाऊँ?''-वर्माजी ने गरजकर कहा।
''जी नहीं, आप मुझे गलत समझ रहे हैं''-टू-टू ने कहा।
''फिर क्या मतलब है तुम्हारा? आज देश की यही हालत है। जिसके लिए करने जाओ वही गुरगुराता है।''
''देखिए वर्माजी, मेरा आपसे तात्पर्य नहीं था। आप गलत समझे, इसे मैं अपना दुर्भाग्य ही कहूँगा। कुत्ता ठहरा, गलती इन्सान से भी होती है। आज किसी भी विषय पर परस्पर चर्चा करना कठिन है। मनमुटाव ही बढ़ते हैं। ईमानदारी से कोई बात कहिए, सामनेवाला गलत समझता है।''

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