लेख-निबंध >> जीप पर सवार इल्लियाँ जीप पर सवार इल्लियाँशरद जोशी
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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...
जुलूस आगे बढ़ गया। आवाज हल्की होते-होते मुहल्ले के कोने में जा पूरी तरह फेड
ऑफ हो गई। कुछ देर बाद मुर्गे ने गर्दन बाहर
निकाली। वातावरण ठीक था। मौत का रेला निकल गया था।
गुरुवार का दिन। नहीं, पहले बुधवार की रात।
दोनों सो नहीं सके। आकाश में चुनाव का काला भय फैल रहा था। आँसू डूबी आँखें
एक-दूसरे को देख रही थीं।
''कहीं भाग चलें चुपके से?'' मुर्गी ने सुझाया।
''मुर्गे कभी परिस्थितियों से भागे हैं! फिर मैं क्यों भागूँ? कल सारी दुनिया
वोट देगी। हम भागकर कहाँ जा सकेंगे?''
रात-भर मुर्गी मनाती रही : हे राम, हमें इस वोट से बचा!
सूरज उगा, किरन बही, चालीसा फूटा, पण्डिताइन जगीं, बड़े बाबू की पत्नी ने
बच्चे नाली के पास बिठाए, इधर आदमियों की हलचल प्रारम्भ हुई। कई बार बातचीतों
के टुकड़े सुनने को मिले।
''किसे दिया वोट?''
''मुर्गे को।''
''मैं भी मुर्गे को ही दूँगा।''
मुर्गा बोला, ''मेरे सामने तो कोई वोट जैसी चीज नहीं आई, यह क्या मजाक है,
धोखेबाजी है, षड्यन्त्र है!''
वह बाहर निकला। मुर्गी ने रोकना चाहा पर नहीं रुका। जोर से बाँग लगाई, ''मैं
यहाँ हूँ, कुकड़ूँ-कूँ!''
कोई उत्तर नहीं।
हलचल बनी रही। मुर्गा उसे वोट डाले जाने की बात सुनता रहा, और नासमझ परेशानी
में मुहल्ले के एक कोने से दूसरे कोने तक घूमता रहा।-''क्या है वोट, मुझे
कहाँ मिल रहा है? यह आदमियों का पागलपन है या धोखेबाजी!''
मुर्गी भी खीझ गई थी। भूखे, दानों की ओर से लापरवाह, दोनों इधर-उधर भागते
रहे। शाम तक लोगों की बातचीत चलती रही और शोर-शराबा बढ़ने लगा। इन दोनों ने
सुना कि मुर्गे को ही सबसे अधिक वोट मिले हैं और ये विरोध में चिल्लाने लगे।
सारे मुहल्ले में खुशी की हुड़दंग मच रही थी। उन जागीरदार साहब के यहाँ जिनके
ये मुर्गे-मुर्गी हैं, जश्न की तैयारियाँ हो रही थीं क्योंकि वे चुनाव में
जीतनेवाले थे। आज उनके चुनाव-चिन्ह मुर्गे को सबसे अधिक वोट पड़े। उनके सारे
चमचे पार्टी माँग रहे थे।
साँझ हो गई। मुर्गा-मुर्गी थककर अपने दड़बे के पास आ गए। मुर्गा हैरान था अभी
तक, और मुर्गी कह रही थी कि भगवान का शुक्र है। तभी वह भोंड़ी शक्लवाला
खानसामा आया और मुर्गे को टाँगों से पकड़ उल्टा लटका जागीरदार साहब के पिछवाड़े
की ओर ले गया।
मुर्गी पीछे भागी। मुर्गा चिल्लाया-''क्या यही वोट है? क्या कर रहे हैं? क्या
कर रहे हैं?''
किसी ने नहीं सुना। रात तक उसका मसालेदार इलेक्शन कर दिया और सजाकर प्लेटों
में रख दिया। सारी रात मुर्गी रोती रही और वोट को गाली देती रही।
अभी वह पोस्टर फटा नहीं है। रोज मुर्गी कूड़े के ढेर के पास आती है, पोस्टर पर
लगी मुर्गे की स्वस्थ तस्वीर की ओर देख जाने किस खयाल में डूब जाती है।
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