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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


बजट की रात। चाँद सिर्फ ब्लैक में उपलब्ध है और वहाँ भी पूरा नहीं। एक तारा आत्महत्या कर अभी क्षितिज की ओर कहीं गिर पड़ा।

बेचारा। शेष तारे लगोटियाँ पहने पूर्ववत् ठिठुर रहे हैं।
वे दोनों पूरी बोतल समाप्त कर टेबुल पर सिर टिकाए लेटे थे। उनकी पिस्तौलें टेबुल पर पड़ी थीं।  वे बड़बड़ा रहे थे :
''क्या होगा, हम लोगों का क्या होगा।''
''जो किस्मत में लिखा होगा सो होगा प्यारे!''
''साले कारतूसों पर टैक्स लगा रहे हैं। इन लोगों को टैक्स लगाने के लिए और चीजें नहीं मिलीं! कारतूसों पर लगा रहे हैं।''
''यह सरकार हम गरीब हत्यारों की रोटी-रोजी छीनने पर तुली हुई है। यह नहीं चाहती कि हम शान्ति से अपनी जिन्दगी बसर करें। कारतूसों पर टैक्स बढ़ा रही है, पिस्तौलें महँगी कर रही है।  बताओ हम क्या करें, कहाँ जाएँ।''

एक गरीब आदमी चाहे तो बाजार से पिस्तौल नहीं खरीद सकता, कारतूस महँगे हो गए। कुछ  समझ नहीं आता। क्या हम अपना धन्धा छोड़ दें! क्या करें। एक हत्या करने का मिलता ही क्या है? पाँच सौ, हजार और बड़ी पार्टी हुई तो दो हजार, छह महीने भी तो नहीं पुरता बाल-बच्चों के लिए। क्या होता है इतनी-सी रकम से!''

''और इस बजट के बाद तो उसकी भी उम्मीद नहीं। जब हत्या करने के दाम बढ़ जाएँगे तो ताज्जुब नहीं कि लोग अहिंसा से काम लेने लगें। तब हमें कौन पूछेगा? कौन धन्धा देगा?'' और वह दुहत्थड़ मारकर रोने लगा।
दूसरे हत्यारे ने उसे गले लगा लिया और बोला, ''रो मत प्यारे, जिन्दगी में निराश होने से काम नहीं चलता। ईश्वर सबको देखता है, वह सबका रखवाला है। उसने हमें पैदा किया है तो काम भी देगा। क्या कारतूस महँगे होने से हम धन्धा छोड़ देंगे!''
और वे दोनों धीरे-धीरे होटल से बाहर आ गए और बजट की रात के अन्धकार में कहीं खो गए।

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