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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


इतने में अमीर का बड़ा लड़का इमारत से बाहर आया और डॉक्टर को गालियाँ बकने लगा, ''तुम भी हद करते हो डॉक्टर! तुमने सारे स्टाफ को दुआएँ माँगने के लिए रवाना कर दिया। वे हरामखोर कहीं प्रार्थनाएँ करते पड़े रहेंगे और यहाँ रात को तीमारदारी कौन करेगा? मैं बिना नौकरों की मदद के रात-भर बुड्ढे की क्या सेवा करूँगा?''

राहगीर ने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया-सराय की दिशा में।
''ठीक है, आने दो कल बजट! मैं बढ़ते करों के बहाने इस कम्बख्त स्टाफ की छँटनी कर दूँगा!'' अमीर का लड़का बड़बड़ा रहा था। कुछ आगे चलने पर राहगीर ने देखा कि सामने बने मकान के ऊपरवाली खिड़की खुली और एक चाँद का टुकड़ा, जो वहीं रहता था, दिखाई दिया। राहगीर, जैसा कि होता है, उस हुस्न के टुकड़े को देख अपने होश गँवा बैठा और बोला, ''ऐ नाजनीन, मैं तुझ पर कुर्बान हूँ और तुमसे मिलने को बेताब हूँ, मैं एक राहगीर हूँ। इस शहर में एक रात का मेहमान हूँ। अगर यह रात तेरे साथ गुजार सकूँ तो दिल को सुकून मिले और पैसों की भी बचत हो। सराएँ महँगी होती हैं और उस
बदशकल भटियारिन से तू हजार दर्जे बेहतर है। मैं तुझ पर मरता भी हूँ।''

''अगर ऐसा है तो ऊपर आ जा।'' नाजनीन ने जवाब दिया। राहगीर ने घोड़ा बाँधा, घास डाली और लपककर सीढ़ियाँ चढ़ लिया।
''ऐ खूबसूरती की मलिका, क्या तू किसी सौदागर की बीवी है जो नसीब का मारा इस वक्त परदेश में है?''
''हाँ।'' उस परी चेहरा ने जवाब दिया और राहगीर से पूछा, ''तेरा नाम क्या है?''
''हातिमताई!''
''अगर तू हातिमताई है तो मेरी मदद कर।''
''बोल, क्या मदद चाहिए। मैं तुझ पर सौ जान से कुर्बान, तू कहे तो आसमान से तारे तोड़कर ला दूँ। हालाँकि आजकल उनका फैशन नहीं रहा।''
''ऐ हातिम, कल बजट पेश होनेवाला है और सुना कि सरकार सूखे मेवों पर टैक्स लगा रही है। मेरा पति सूखे मेवों का व्यापारी है जो नसीब का मारा इस वक्त परदेश में है। आज की रात तू ही मेरे पति की जगह है और तुझे वह सब करना चाहिए जो मेरा पति करता है। यह बजट की रात है। तू शहर की मण्डी में जा और सूखे मेवों का स्टाक नीचे गोदाम में रखवा दे ताकि कल जब टैक्स बढ़े तो मैं उन्हें ऊँचे दामों पर निकाल सकूँ। मैं तुझे स्टाक की खरीदी के लिए जरूरी रकम देती हूँ।''
हातिम ने सिर पर पगड़ी रखी, रुपया जेब में रखा और घोड़े के मुँह से घास छीन उस पर बैठ शहर की मण्डी की तरफ रवाना हो गया। रातभर वह सूखे मेवे के थैले खरीद घोड़े पर लाद उस नाजनीन के घर के नीचे बने गोदाम में ढोता रहा और जब सुबह हुई, उस हुस्नबानो से अलबिदा कह अगले मुकाम के लिए रवाना हो गया।
इस कहानी से उसे यह सबक भी मिला कि बजट के दिनों में नसीब के मारों को परदेस की यात्रा नहीं करनी चाहिए।

बजट की रात। चाँद बाजार से एक सिरे से गायब हो गया था। सिर्फ तारे चमक रहे थे, मगर उससे क्या होता है। बिचारे छोटे पूँजीवाले और असंगठित। वे सब मिलकर भी उजाले का टेंडर नहीं भर सकते। सामनेवाली पार्टी चाँद और उसकी चाँदनी देखती है वह सितारों का टोटल नहीं लगाती।

वे दोनों खिड़की के पास लेटे हुए थे। एक-दूसरे में मगन। लड़की सुन्दर और उसके शरीर में लोच था। लड़का स्वस्थ, उसके शरीर में सारे आवश्यक विटामिन, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस आदि तत्त्व थे।
''तुम्हारी बातों में शक्कर घुली रहती है।'' लड़की ने लड़के के स्वस्थ सीने पर उँगलियाँ फेरते हुए कहा।
''आज की रात और मेरी बातें सुन लो। सिर्फ आज की रात!'' लड़के ने लड़की के बालों को सहलाते हुए कहा।
''क्यों?''
''कल बजट पेश हो रहा है। सुना है, शक्कर पर टैक्स बढ़ जाएँगे। फिर बातों में यह मिठास रहे, न रहे।''
''ऐसा मत कहो।'' लड़की ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। लड़का गम्भीर हो गया। फिर धीरे से बोला-''कई बार सोचता हूँ, बदन में आयरन और फास्फोरस रहते तुमसे शादी कर लूँ। पता नहीं कब क्या हो?''
''क्या सरकार दवाइयों पर भी टैक्स लगा रही है?'' वह घबरा गयी।
''कुछ कहा नहीं जा सकता।'' लड़के के स्वर में निराशा थी।
वह पूरे लोच के साथ उसके समीप आ गई जैसे यह उनके सुखमय जीवन की आखिरी रात हो।

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