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जीप पर सवार इल्लियाँ

शरद जोशी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6839
आईएसबीएन :9788171783946

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शरद जोशी के व्यंगात्मक निबंधों का संग्रह...


बजट की रात एक शहर में

बजट की रात। तारे आसमान में टिमटिमा रहे थे, पर धरती पर अँधेरा था। हवा तेज थी और कुछ हद तक भयावनी। तभी शहर की एक गली से कुछ दिव्य पुरुष तेजी से जाते दिखे। एक व्यक्ति ने उन्हें रोका और पूछा, ''आप लोग कौन हैं और कहां को जाते हैं?''

एक दिव्य पुरुष ने, जो अपेक्षाकृत अधिक दिव्य था और उन सब लोगों का नेता प्रतीत होता था, धीरे से कहा, ''हम फरिश्ते हैं, शहर में सिगरेटें खरीदने जा रहे हैं, कल बजट है, सिगरेटें महँगी हो जाएँगी।'' यह सुनकर उस व्यक्ति ने अपनी जलती हुई सिगरेट, जिसे वह मजे ले-लेकर फूँक रहा था, बुझा दी और बुझी सिगरेट को सँभालकर डिबिया में रख लिया।

''मुझे भी कुछ इन्तजाम करना पड़ेगा, कल बजट है।'' वह व्यक्ति बड़बड़ाया और उन फरिश्तों को सलाम कर तेजी से बढ़ लिया। कुछ देर बाद गली के एक मकान के दरवाजे पर खट-खट हुई।

''कौन है?'' अन्दर से किसी स्त्री ने पूछा।
''मैं हूँ।'' बाहर से पति ने उत्तर दिया।
दरवाजा खुला। पति अन्दर घुसा और अपनी पत्नी को बाँहों में लेकर बोला, ''मुझे कुछ रुपए चाहिए, कुछ रुपए। जल्दी, इसी वक्त।''

''हे नाथ, मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। एक पैसा भी नहीं बचा।''
पति की बाँहें ढीली पड़ गईं। उसका चेहरा लटक गया। उस स्त्री से पति का लटका हुआ चेहरा देखा नहीं गया। उसने अपने हाथों से कंगन निकालकर पति के हाथों पर रख दिए, ''यह लीजिए, इन्हें ले लीजिए, मगर उदासी छोड़िए, इन्हें गिरवी रख अपना काम चला लीजिए।''

पति की बाँहें फिर कस गईं। उसने कंगन जेब में रख लिए और दरवाजे की ओर बढ़ा।
''ऐसी आप पर अचानक कौन-सी बिपदा आ पड़ी?'' स्त्री ने पूछा।
''कल बजट है। सिगरेटें महँगी हो जाएँगी। आज थोड़ा स्टाक कर लेना बहुत जरूरी है।'' पति ने कहा और वह दरवाजा खोलकर तेजी से रात के अँधेरे में कहीं चला गया।

बजट की रात। चाँद अभी तक आसमान के नाम पर इशू नहीं हुआ था। राहगीर ने दूर से शहर की मीनारों को देखा और उस ओर अपना घोड़ा बढ़ाया। वह किसी सराय की तलाश में था, जहाँ वह रात-भर किसी भटियारिन के आँचल से मुँह लपेट शराब के कुल्हड़ उलटेकर सो जाए ताकि कल के सफर के लिए तरोताजा अनुभव कर सके। वह तेजी से शहर की ओर बढ़ा।

मीनार के पास बनी इमारत के पास से वह गुजरा तो उसने देखा कि वहाँ काफी लोग खड़े हुए हैं। पता लगा शहर का एक अमीर आदमी बीमार है, डॉक्टर उसे देखने आया हुआ है।
तभी इमारत के दरवाजे से डॉक्टर बाहर आया।
''क्या हुआ डॉक्टर साहब! अमीर की तबीयत कैसी है? वे बच तो जाएँगे?'' डॉक्टर को देखते ही लोग चिल्लाए।
''कुछ कहा नहीं जा सकता!'' डॉक्टर ने सिर लटकाकर कहा, ''अमीर को हार्ट अटैक हुआ है। बचने की उम्मीद जरूर है, मगर सब कुछ कल के बजट पर निर्भर करता है, अगर कल टैक्स बढ़ गए तो अमीर का बचना मुश्किल होगा। आप लोग दुआएँ करें कि कल का बजट ऐसा न हो।''
वे सब लोग यह सुनते ही बजट की दुआ माँगने, ईश्वर से प्रार्थना करने क्रमशः मस्जिद और मन्दिर की तरफ लपक गए।

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