नारी विमर्श >> चैत की दोपहर में चैत की दोपहर मेंआशापूर्णा देवी
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चैत की दोपहर में नारी की ईर्ष्या भावना, अधिकार लिप्सा तथा नैसर्गिक संवेदना का चित्रण है।...
अमिय वल्लभ पूरे तौर पर तनकर बैठ गए।
बोले, ''लोकनिन्दा? डोन्ट केअर। लोकनिन्दाका भय करते हैं पंसारी, मछुआरे और
किरानी। राजा-रजवाड़े लोकनिन्दा से नहीं डरते। समझीं?''
''डरते नहीं हैं, लेकिन आप डर जो रहे हैं।''
अवंती के लहजे में व्यंग्य का पुट है।
अमियवल्लभ के लहजे में हताशा का पुट।
''में अपने आपसे ही डरती हूँ।''
''मतलब?''
अवंती दुबारा ठनकती आवाज में बोल उठती है।
''मतलब-क्या बताऊँ, महारानी। हर वक्त अपने वश में नहीं रहता हूँ। जब गुलाबी
नशे से चूर हो जाता हूँ तो दुनिया रंगीन लगने लगती है, होश-हवास नहीं रहता।
खूबसूरत युवतियों को देखते ही लगता है कि सभी बहिश्त की हूर और परियाँ हैं।
सुनसान राजमहल में अपने करीब एक हूर-परी पर निगाह पड़े तो क्या से क्या कर
बैठूँ, कौन जाने! हो सकता है आवेश में आकर कलेजे से लगा लूँ। हो सकता है पके
सेव जैसे गाल पर अभद्र जैसा कुछ कर बैठूँ। अपने आप पर विश्वास नहीं कर पा रहा
हूँ।''
अवंती सोफे से उठकर खड़ी हो गयी और पके सेव जैसे लाल गाल को खिले गुलाब जैसा
लाल बनाकर बोली, ''ओह! भगा देने का मतलब है इसीलिए यह सब भद्दी बातें बोल रहे
हैं। लेकिन हाँ, मैंने सोचा था, आप और ही तरह के हैं। आप सचमुच ही मुझे प्यार
करते हैं। मेरे लिए एक निरापद निश्चिन्तता के साथ रहने की जगह है।
अमियवल्लभ ने करुण स्वर में कहा, ''सचमुच ही प्यार करता हूँ, इसीलिए तो
चिन्ता हो रही है। होश-हवास खोने की हालत में अगर कुछ रीति-विरुद्ध आचरण कर
बैठूँ तो होश आने पर याद आते ही आत्महत्या करने के लिए रेल-लाइन के पास जाना
होगा।...मैं इन्सान हूँ महारानी, सिर्फ बुरी लत का शिकार हो गया हूँ।''
अवंती ने ठनकती आवाज में कहा, ''अगर आप महसूस करते हैं कि बुरी लत है तो उसे
छोड़ नहीं सकते?''
अमियवल्लभ जरा हँसे। बोले, ''यह तो महज बच्चों जैसी बात है महारानी। तुम
लोगों के सम्यक् ज्ञान को ग्रहण करने के लिए सबसे पहले देवादिदेव महादेव के
पास जाना होगा। नशे का त्याग करना अब इस कलेवर में नहीं हो सकेगा, रानी
साहिबा। शाम का आवेश एक स्वर्गलोक की सृष्टि कर देता है, उस हालत में नशे में
चूर रहने पर कितना सुख मिलता है! यह तू कैसे समझेगी?''
अवंती ने कहा, ''हुँ! उस नशे में चूर रहने के स्वर्गीय सुख को आपके नाती साहब
ने भी लपककर पकड़ लिया है।''
''अयं!'' अमियवल्लभ बोले, ''यह सिलसिला कब से चल रहा है''
''अन्दर-अन्दर चल रहा था, थोड़ी-थोड़ी मात्रा में, मगर धीरे-धीरे उसका रूप
विकराल हो गया।''
अमियवल्लभ ने कहा, ''नहीं-नहीं, यह अच्छी बात नहीं है। जरा विस्तार से सुनूँ।
लदुवा घोड़े के मानिन्द खड़े रहने से काम नहीं चलेगा, बैठना होगा।''
तो भी अवंती खड़ी ही रही। सिर्फ कहा, ''कहिए।''
''इस तरह एक ही शब्द 'कहिए' कहने से काम नहीं चलेगा। वह साला इस बुरी लत का
शिकार होने क्यों गया?''
''बिलकुल स्वाभाविक बात है।'' अवंती ने तुर्श लहजे में कहा, ''खून के गुण के
कारण।''
''हूँ। औरतों का एक यही गुण है। दो बात सुनने का मौका मिलता है तो बाज नहीं
आतीं। इस अभागे की पत्नी मर गयी थी, बिछोह के दर्द के कारण एक नशे को अपना
लिया था।''
''टूटू मित्तिर की पत्नी भी मर गई है।'' अवंती ने तीखी आवाज में कहा।
अमियवल्लभ ने उदास स्वर में कहा, ''जरा साफ-साफ बताओ न, मामले को बहुत सीरियस
बना डाला है क्या?''
''अदर पार्टी से ही पूछ लीजिएगा। वहाँ फोन लग चुका है, असुविधा नहीं होगी।
अच्छा, चलती हूँ।''
अमियवल्लभ ने कहा, ''चूँकि ठहरने नहीं दिया इसीलिए इतनी बड़ी सजा दोगी?
थोड़ी-सी चाय तक पिए बगैर चली जाओगी?''
...इच्छा नहीं हो रही है, नानाजी। इतनी गरमी है।''
''तो फिर कोल्ड ड्रिंक?''
अवंती हँसी, ''आपके पास कोल्ड ड्रिंक भी रहती है?''
''कह। कह ले। मौका मिला है। लेकिन कौन-सी वारदात हुई है, बताएगी नहीं?''
''कहने को है ही क्या! कह सकते हैं कि बनाव नहीं हो रहा, गुजारा नहीं हो रहा
है।''
''इतनी आसानी से हिम्मत खो बैठोगी, महारानी?''
''आपको लगता है कि आसान है?''
''मासूम नहीं। समझ नहीं पा रहा। यही तो दोनों जने घूमने-फिरने आते थे...''
''हाँ। हँसी-गपशप और सुख का माहौल रहता था। यही न? लेकिन साबुन के फानूस के
भी कितने ही रंग हुआ करते हैं। चलती हूँ, नाना जी!''
अमियवल्लभ बोले, ''कहाँ जा रही है?''
''यही समझिए कि जहाँ ये आँखें ले जाएँ।''
अवंती हँस दी। उसके बाद बोली, ''असुविधा इसी बात की है। कहीं-न-कहीं जाना ही
होगा। सिर्फ तेल का अशेष भण्डार ले लगातार गाड़ी पर सवार हो सफर नहीं किया जा
सकता है। अच्छा नाना जी, आप तो राजा हैं, धन-दौलत से खेलने वाले। कानून जानते
हैं। बताइए तो, टूटू मित्तिर का घर अगर छोड़ दूं तो ऐसी हालत में गाड़ी छोड़कर
भी आना होगा? आपके द्वारा दी गई इस लाल गाड़ी को?''
अवंती ने 'इस लाल' शब्द का उल्लेख किया, क्योंकि उसे ही चलाकर वह आयी है।
''क्यों? क्यों? यह वात कौन कह रहा है?''
अमियवल्लभ शेर के मानिन्द दहाड़ उठे, ''वह अभागा? कभी भी नहीं। तुम्हारी किसी
पर्सनल वस्तु को वह रोककर नहीं रख सकता किसी चीज़ पर उसका अधिकार नहीं है।''
अवंती हँसने लगी। बोली, ''नहीं-नहीं, वह कोई चीज रोककर नहीं रखेगा, बल्कि
नतीजा उल्टा ही होगा। लेकिन मैं ज्यादा कुछ नहीं चाहती। सिर्फ गाड़ी के बारे
में ही सोचकर मन कैसा-कैसा तो कर
रहा था। मगर वह शर्म का विषय होगा अगर अधिकार न हो। इसलिए जानना चाहती थी कि
कानूनन मेरा अधिकार है या नहीं।''
''है। बेशक है। अपने गहने-जेवरात सब-कुछ तुम...पर...''
अमियवल्लभ जैसे एकाएक टूटकर बैठ गए। बोले, ''पर क्या तुम लोग सचमुच ही
सम्बन्ध-विच्छेद करना चाहते हो? सुनकर कलेजा चाक हो रहा है। चाय की प्याली
में तूफान पैदा कर कहीं बरबादी के रास्ते पर पैर तो नहीं बढ़ा रहो हो? उस साले
ने तुझसे क्या कहा है; बताओ तो मुझे?''
अवंती अब फिर सोफे पर बैठ गयी। आँखें उठाकर आहिस्ता से कहा, ''नहीं-नहीं।
उसने कुछ नहीं कहा है, नाना जी। गलती मेरी ही है। मैं शायद अपने आपसे ऑनेस्ट
बनकर रहना चाहती हूँ। अन्तर्मन से जिससे तालमेल नहीं बिठा पाती हूँ, सही मानी
में जिसे प्यार नहीं कर पा रही हूँ, उसकी घर-गृहस्थी में दीन-हीन गृहिणी का
रूप धारण कर, सुख के साथ घर-संसार बसाने का अभिनय करते हुए चलना मुझे खुद ही
बेईमानी जैसा लगता है।''
''बस, इतना ही।''
अमियवल्लभ को जैसे मँझधार में किनारा मिल गया हो, इसी अन्दाज में बोले, ''बस
इतनी-सी बात के लिए इतनी चिन्ता? दोनों में से किसी ने एक-दूसरे पर लाठी से
वार नहीं किया है? खून-खराबा नहीं हुआ है? बरतन तोड़न-फोड़ना नहीं हुआ है? तो
फिर यह मामला कोई प्रॉब्लम नहीं है।''
अवंती हँसने लगती है।
''काश, नाना जी, आपकी ही तरह सभी सहज ही गणित का प्रश्न हल करके चल पाते।''
''हल करने की चेष्टा करके देखा जाए।''
अमियवल्लभ बोले, ''तुम भी मिलिटरी हो तो मैं भी मिलिटरी हूँ। तुम गुलदस्ता
तोड़ेगी तो मैं टेबल-लैपं तोड़ूँगा। पर हाँ, इसके बीच यदि तीसरा व्यक्ति रहेगा
तो सब गुड़-गोबर हो जाएगा। कहीं वह छोकरा किसी से फँस तो नहीं गया है?''
अवंती जरा काँप उठी।
टूटू मित्तिर के सम्बन्ध में इस तरह के सन्देह की कोई गुंजाइश है? न:। रहती
तो अवंती के अहसास से अगोचर नहीं रह पाती। टूटू पर यह कलंक मढ़ा नहीं जा सकता।
टूटू को समझने के लिए प्रखर बुद्धि की कोई आवश्यकता नहीं है। टूटू और किसी के
प्रेम में उलझने नहीं जाएगा, क्योंकि वह बेहद आत्मप्रेमी है। स्वयं को
केन्द्र बनाकर ही उसकी इच्छा, अभिलाषा और आवेग तीव्र गति से बढ़ते रहते हैं।
खुद को प्रकाश में लाने के खयाल से ही उसे एक सुन्दर, विदुषी (लोक-समाज में
गौरवजनक) और हर तरह से अनुगामिनी पत्नी की आवश्यकता है। उस साहचर्य में एक
पैसे का भी घाटा सहना पड़े तो वह खुद को अपमानित महसूस करता है।
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