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नारी विमर्श >> मंजरी

मंजरी

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :167
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6387
आईएसबीएन :0000000000

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आशापूर्णा देवी का मर्मस्पर्शी उपन्यास....


हालांकि अभिमन्यु ही पहले बोला।
कुर्ता उतारकर अलगंडी में टागते हुए, मुंह फेरकर बोला, "चुन-चुनकर पार्ट अच्छा दिया था।"
आज मंजरी ने प्रतिज्ञा की थी किसी हालत में नाराज न होगी। गुस्सा मतलब ही तो हार-पराजय। लेकिन अभिमन्यु के इस सूक्ष्म व्यंगमिश्रित छोटी सी टिप्पणी के कारण वह प्रतिज्ञा भंग हो गयी।

वह भी व्यंग करते हुए बोली, "ठीक कहा है। अभिनेत्री का रोल ही मुझे मिलता चाहिए था।"
"अभिनेत्री न सही, कुछ और हो सकता था। पर्दे पर अगर रूप ही दिखाना था तो इतना कदाकार रूप क्यों?"
"कदाकार, कुरूप?"
"और नहीं तो क्या? जैसी तो चटाक-चटाक बोली वैसा ही कुत्सित मुंह। कैसे तुमने यह रोल किया यही सोच रहा हूं। बदसूरत लग रही थीं।" कहकर नाक सिकोड़ते हुए अभिमन्यु बिस्तर पर बैठ गया।
और ठीक तभी मंजरी को लगा कि सचमुच उसने कैसे कर लिया था? विजयभूषण ने कहा था, ''तेरे लिए तो ये पार्ट पार्ट ही नहीं है, नैचुरल है। अच्छी खासी अपटुडेट लड़की।"
लेकिन वास्तव में ऐसा है क्या?
पार्ट ही एक अति आधुनिक युवती का व्यंगचित्र।
स्तब्ध अरण्य में तूफान उठा।

बहुत दिनों से संचित अश्रु, बहुत देर से भारी हुआ हृदय, अनेक अपमान की जलन और वेदना, सहसा आँसू का रूप धरकर बरसने को हुये। और अपनी पराजय को अभिमन्यु की नजर से छिपाने के लिए जल्दी से कमरे से निकल गयी मंजरी। उसने अभिमन्यु की तरफ देखा तक नहीं।
इस कमरे में रात भर नहीं आई।
अभिमन्यु ने भी अपने अहं को नीचा न होने दिया। बुलाया नहीं। सोचा, "हु! इतना गुस्सा।"
अभिमान की वेदना को गुस्सा समझकर ही तो गृहस्थी में ऐसे ऐसे अनर्थ होते हैं।
सारी रात सोकर जगने के बाद सूनी शय्या की तरफ देखकर अभिमन्यु ने प्रतिज्ञा की, "ठीक है मैं उसकी किसी बात में नहीं रहूंगा। उसे दिखा दूंगा कि उसके किसी बात से मेरा कुछ बनता बिगड़ता नहीं है।"
और सारी रात जागकर तथा सोचकर मंजरी संकल्प करती है, "ठीक है, एक चांस मैं और लूंगी। सहूंगी रिश्तेदारों मित्रों की धिक्कार बटोरूंगी निंदा, दिखा दूंगी उसे, सुंदर रूप उभारना मंजरी को भी आता है। महिमामय सुंदर रूप। प्रेम में उज्ज्वल, गौरव में समुज्ज्वल।
लेकिन कहां मिलेगा वैसा पार्ट?

विजयभूषण का शौक तो शायद इस एक बार में ही मिट जाएगा लेकिन मंजरी फिर किसको कहे?
क्या वह छिपछिपाकर परिचालक कानाई गोस्वामी से मिले? जिद करे कि उसे अगली फिल्म में हीरोइन की भूमिका दे?
ऐसा क्या संभव है?

छोटे देवर देवरानी को निमंत्रण करके बुलाने का शौक अभिमन्यु की भाभियों को कतई नहीं है।
अचानक ही कुछ दिनों बाद वही शौक दिखाई दिया-निमंत्रण आया मझली भाभी रजिता की तरफ से। टेलीफोन द्वारा नहीं, मझले भइया प्रवीर स्वयं ऑफिस से लौटते वक्त कार घुमाकर कहने आए। बोले, "अरे मनु, तेरी भाभी ने कल तुझे और बहू को बुलाया है। वहीं खाना। छोटी बना को जरूर ले आना।" 
"अचानक ये दावत?"
"दावत-आवत कुछ नहीं...बहुत दिनों से साथ खाया पीया नहीं है, इसीलिए तेरी भाभी बोली, "उनसे जाकर कह आओ। कल छुट्टी भी है। नया कोई पुलाव का प्रिपरेशन सीखा है...
"तो क्या मेरे ऊपर यह एक्सपेरिमेंट होगा?" हंसने लगा अभिमन्यु।
मझले भाई भी हंसने लगे। इसी के साथ कार स्टार्ट किया। जानते हैं कि मां यहां नहीं हैं। रहतीं तो सौजन्यतावश एक बार मोटर से उतरकर उनसे मिलने जाना पड़ता।

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