नारी विमर्श >> चश्में बदल जाते हैं चश्में बदल जाते हैंआशापूर्णा देवी
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बाप बेटा को समझाना चाहता है कि युग बदल गया है-तुम्हारा चश्मा बदलना जरूरी है। वृद्ध पिता के चेहरे पर हँसी बिखर जाती है।
आजकल अपराध जगत की कहानियाँ जैसे उपन्यासों और कहानियों में पढ़ने को मिलती
हैं और जो कभी-कभी धारावाहिक उपन्यास का रूप धर लेता है-अभागे सान्याल
दम्पत्ति के फ्लैट की कहानी भी इसी तरह से परिवेशित हुई थी।
वृद्ध सान्याल दम्पत्ति उसी परिवेशन की चतुराई के शिकार हो गये थे और इसी
कारण श्रीमती सुकुमारी सान्याल उसी पी.जी. में एक दूसरे कमरे में मृत्यु के
साथ पंजा लड़ रही थीं।
उतने बड़े इलाके में विस्तृत पता लगने का प्रश्न कहाँ उठता है। किस गेट से कब
कौन आता है, जाता है, किस सीढ़ी से कब उतरता-चढ़ता है-कौन जान सकता है?
कहना पड़ेगा किस्मत यही चाहती थी।
रूबी का एक भाई लिफ्ट से उतरकर सामने एक जने को देखकर ठिठक कर रुक गया।
बोला-'अवनी हो न?'
अवनी नमस्ते कर बोला-'जी हाँ दादाबाबू।'
'तुम लोगों को कैसे खबर मिली? इन लोगों ने तो कहा कि मौसाजी की तबियत खराब
है, और न बिगड़ जाए इस डर से उन्हें कुछ बताया नहीं है।'
अवनी धीरे से बोला-'जी खबर तो अखबार के ज़रिए हवा के वेग से उड़ती है।'
'ओ हाँ...वह तो है। तो तुम अकेले आए हो?'
'जी नहीं, अकेले तो नहीं आया हूँ। बाबू और माँ भी आए हैं।'
'ईश! वे लोग भी आए हैं? मौसाजी भी?'
'आए बगैर उपाय भी तो नहीं था। तो ख़ैर, खोकाने सोनाबाबू अब कैसे हैं?'
'ठीक है माने थोड़ा-थोड़ा। तो वे लोग कहाँ हैं? मौसा जी, मौसीजी?' अपनी अपनी
पॉलिसी मुताबिक 'धीरे धीरे रहस्योदघाटन करो' बोला-'मौसाजी अपने बेड पर-अभी
होश नहीं आया है। और मौसा जी वहीं हैं-'
अतएव मौसीजी के बेड को घेर को आ खड़े हुए उनके बेटे, उनकी बहुएँ। परिचित
डाक्टर से भी भेंट हुई और उन्हीं से सारा केस ज्ञात हुआ। उनमें से किसी एक ने
विस्मित भाव से पूछा, सिर्फ इस खबर से ऐसा हो सकता है क्या? शायद प्रेशर हाई
रहा हो, चेक नहीं किया गया था।
पर यह आलोचना ज़ोर से नहीं, दबी आवाज़ में। मृदु गुंजन में।
सोमप्रकाश के दोनों बहनोई आए थे शिशु रोगी का हाल जानने-उन्होंने सोमप्रकाश
को धर दबोचा।
सोमप्रकाश ने शान्तभाव से कहा-'सही सही क्या हुआ यह तो मैं बता न सकूँगा-पता
नहीं अचानक कैसे क्या हो गया?'
'डाक्टर क्या कह रहे हैं?'
'अभी तो कुछ नहीं कह रहे हैं।'
'बड़े लड़के ने आकर पुकारा-'माँ।'
'छोटे लड़के ने आकर पुकारा-'माँ।'
बहुओं ने बुलाया-'माँ।'
लगा सुकुमारी के होंठ हिले।
नर्स दौड़ी आई-'अभी डिस्टर्ब न करें। जब होश आ जाए...तब।'
वे लोग खामोश हो गये।
फिर भी सुकुमारी के होंठ हिलते ही रहे।
क्या एक बार इनके बगल में लेटने पर, वह क्या कह रही हैं, सुना जा सकता है?
या वह सारी बातें केवल सुकुमारी के अवचेतन में डूब गये मन में ही ध्वनित हो
रही हैं? यह होंठ उसी कारण स्पन्दित हो रहे हैं? अनुच्चारित उन बातों को
समझने के लिए काश कोई यन्त्र होता।
अगर ऐसा कोई यन्त्र होता और उसमें से अनुच्चारित बातें क़ैद की जा सकतीं तो
अधूरे कुछ वाक्य ऐसे सुनाई पड़ते-'तुम लोग मुझे फाँसी पर चढ़ा दो। खून करने के
लिए फाँसी...भगवान...तुम इतने निष्ठुर हो? बड़े दुःख, बड़े अपमान के साथ मैंने
सिर्फ...एक बार...पर क्या यह चाहा था? ओ भगवान! मैंने उस दिन तुमको क्यों
'दर्पहारी' कहकर पुकारा था? दया करो...दया करो।'
न:, पकड़ में नहीं आईं उनकी बातें। धीरे-धीरे थमती चली गईं। होंठ हिलने का
अभ्यास भर रह-रहकर...
सोमप्रकाश बिल्कुल पास चले आये, झुक कर खड़े हुए। और जीवन में पहली बार लड़के,
बहू सबके सामने उन्होंने पुकारा-'सुकुमारी।' मुँह अचानक उज्जवल हो उठ। और
आश्चर्य की बात ये थी कि एक शब्द स्पष्ट सुनाई पड़ा-'आयेगा?'
सोमप्रकाश बोले-'हाँ-हाँ आयेगा। सब कोई आयेंगे। तुम भी जाओगी। सबको साथ लेकर
खुशियाँ मनाओगी।'
आँखों की पलकें धीरे-धीरे बन्द हो गईं। पूरी। नर्स ने आकर ऑक्सीजन की नली
निकाल दी।
खाट का किनारा, कसकर पकड़े खड़े रहे सोमप्रकाश। उनके भीतर भी असंख्य
निरुच्चारित बातें भीड़ लगाये खड़ी थीं-'सुकुमारी! तुमने तो खूब ठगा। मैजिक
दिखाने के लिए मैजिशियन बुलवाने कहकर खुद ही दिखा बैठीं। मैं कितने ज़माने से
अपने 'डैमेज हार्ट' का बहाना बनाये मूर्ति-सा बैठा रह गया...क्या पता शायद
बहुत दिनों तक बैठ रहूँ। और तुम? तुम अपने स्टील के हार्ट की तारीफ करती हुई
सबको मूर्ख बनाकर अचानक 'भौ कट्टा' करकें चली गईं। सुकुमारी हमेशा ही मैंने
तुम्हें अण्डर एस्टीमेट किया-सोचता था तुम्हारे पास अक्ल कम है। अब समझ रहा
हूँ तुम्हारे पास केवल 'शुद्ध बुद्धि' थी। अपने भीतर के असीमित प्रेम से तुम
सदैव दुनिया जीतने की कोशिश करती रहीं। सुकुमारी, मैं अपनी बुद्धि के अहंकार
के कारण तुमको करुणा भरी दृष्टि से देखता रहा। अब, अचानक अनुभव कर रहा हूँ कि
तुम ही मुझ में अहंकार देखकर करुणा करती थीं मुझ पर। और तभी मेरे साथ लड़ने
जैसी बचकानी हरकत नहीं की तुमने। सुकुमारी...इस दुनिया में तुम नहीं हो यह
बात सोचने की इच्छा नहीं हो रही है-विश्वास करने की इच्छा नहीं हो रही है...'
'पिताजी', बड़ा बेटा बड़ी बहू पास आकर बोले-'चलिए, बाहर बरामदे में चल कर
बैठिए-'
सोमप्रकाश कुछ कुद्र होकर बोले-'क्यों? मेरे यहाँ रहने से तुम लोगों को
असुविधा हो रही है?'
'ये लोग यहाँ से बाहर जाने के लिए कह रहे हैं।'
'ओ! ये लोग।' मानों इस दुनिया में वापस लौट आये सोमप्रकाश। धीरे-धीरे उनलोगों
के साथ बाहर आकर बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ गये।
इसके थोड़ी देर बाद बहुत ही सहजभाव से बोले-'विमल, डेडबॉडी क्या एक बार घर ले
जाना सम्भव होगा?'
विमल चौंक उठा।
पिताजी इतनी आसानी से डेडबॉडी कह सके?
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