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चश्में बदल जाते हैं

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6385
आईएसबीएन :0000000000

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बाप बेटा को समझाना चाहता है कि युग बदल गया है-तुम्हारा चश्मा बदलना जरूरी है। वृद्ध पिता के चेहरे पर हँसी बिखर जाती है।


सुबह का अखबार आते ही उसे दुमंजिले पर बाबू को देने के लिए जाते जाते अवनी बंगला अखबार की हेड़ लाइनें पढ़ता चलता है। आज भी ऐसा ही कर रहा था जब अचानक ठोकर खाकर गिरते-गिरते बचा। नहीं, सीढ़ी पर नहीं-आँखों से।
इसीलिए अखबार का एक स्थान से दबाकर आया और बोला-'बाबू यह पता तो ज़रा देखें। क्या लिखा है?'
'क्या लिखा है?'
'देखिए न। जाना-पहचाना लग रहा है। ए.पी. सान्याल, फ्लैट नम्बर...' सोमप्रकाश ने जल्दी से हाथ बढ़ाया।
उन्हें भी ठोकर लगी क्या? उन्हें भी जाना-पहचाना पता भयंकर अनजाना लगा न?'
चश्मा उतारकर बार-बार धोती के कोने से पोंछने लगे। लेकिन अचानक आँखें ही अगर धुँधला जाए तो क्या करें?
बोले-'चश्मा अचानक, आँखें कुछ...देख नहीं पा रहा हूँ। अपनी माँ को ज़रा बुला लो। अरे, न न, बुलाना नहीं। अखबार छिपा दे।'
फीका पड़ गया चेहरा लिए अवनी बोला-'अभी ढूँढ़ेंगी। आजकल काम तो है नहीं। सुबह ही...उससे तो अच्छा होगा, ये पन्ना ही...'
लेकिन इन लोगों के छिपाने से क्या होगा? इतने दिनों का सुकुमारी का मोहल्ला, यहाँ क्या उनकी जान-पहचान वाली नहीं हैं? वे लोग आकर उन्हें खबर नहीं सुना जायेंगी? जैसे विशेष हितैषिणी नोनीवाला देवी? मोहल्ले के शरत दत्त की विधवा दीदी?
बालविधवा! आजीवन पितृगृहवासिनी। उनका काम ही है सुबह शाम दोनों वक्त मोहल्ले में चक्कर काटना और खबरों को इधर से उधर करना। पीठ पीछे 'गेजेट' के नाम से जानी जाती हैं। सो आज उनका यहाँ आना, एक बहुत ही स्वाभाविक घटना थी।
आते ही बोलीं-'तुम लोग तो 'आनन्द बाज़ार' लेती हो न?'
सुकुमारी ने सिर हिलाकर हामी भरते हुए पूछा-'क्यों, आपके यहाँ अभी दिया नहीं है क्या?'
'नही-नहीं-दे तो गया है बहुत तड़के-सुबेरे। मेरे भाई के बहू ने भी कब का पढ़ लिया है। टी.वी. में कब क्या है देखते समय...देखते-देखते सिहर उठी...'
'क्यों? फिर कोई नारी-उत्पीड़न का केस था क्या?'
'हाँ, वह भी एक था बता रही थी। पर बता रही थी तुम्हारे छोटे बेटे के फ्लैट की घटना को...'
'मेरे छोटे बेटे के फ्लैट की घटना? कौन सी घटना?'
'आ हा, इसके मतलब तुम अभी तक कुछ भी नहीं जान पाई हो मैंने तो अपने भाई-बहू से कहा, 'उन्हें क्या अखबार पढ़कर खबर जानने की इन्तज़ारी होगी? रात ही को लड़के जरूर...'
इसके बाद सुकुमारी रुकी नहीं। दौड़ते हुए दुमंजिले में आकर अवनी के हाथ में पकड़े अखबार पर झपट पड़ीं। छीनकर अपने कमरे में लेकर चली गई थीं।
और इसके बाद ही एक फटी-चिरे गले की तीव्र आवाज़ सुनी सबने-'ना, ना, ना, यह हो नहीं सकता है।'
थोड़ी देर बाद ही सम्पूर्ण संज्ञाहीन सुकुमारी को अस्पताल ले जाया गया था। उसी एस. आर. दास अस्पताल में। जहाँ पिछली रात से उनके बेटे, बहुएँ बैठे हैं। बैठे हैं। पर सुकुमारी की प्रतीक्षा में थोड़े ही। वे तो उन्हें देखकर आश्चर्य चकित हुए।
तो फिर सुकुमारी को लाया कौन?
सोमप्रकाश को क्या इतनी क्षमता है?
सो मुसीबत के वक्त असहाय का सहाय कोई तो होता ही है। स्वयं डाक्टर बाबू ने ही सारी व्यवस्था कर दी, एम्बुलेंस बुलवा लिया। और पड़ोसी-वे तो आगे आए ही।
अपने अपने काम-काज में व्यस्त अचानक मोहल्ले में एम्बुलेंस आया देख सभी को कौतूहल हुआ। किसके घर? एवं सान्याल के दरवाज़े पर रुकते देख सबके मन में सवाल उठ खड़ा हुआ-'तो भले आदमी चल दिए? शायद 'अब तब' हालत हो गई है। या...गिरकर हड्डी-वड्डी तोड़कर अस्पताल जा रहे हैं?'
कुछ लोग मन में इन प्रश्नों को लेकर आगे बढ़ गए, अपने-अपने धंधे में चले गए और कुछ लोग अत्यन्त कौतूहल लिए आगे आकर अवाक हुए-'अरे, ये तो महाशय नहीं, महिला। सज्जन तो गाड़ी के पास खड़े हैं।'
महिला को क्या हुआ? वही तोड़-फोड़ का मामला है क्या?
मेहनत का फल तो मिलेगा ही। अन्त में पूछपाछ कर उन कौतूहलियों ने पता कर ही लिया कि ही तोड़फोड़ हुआ है। पर वह बाहरी नहीं-भीतर। कौन जाने हृदय यन्त्र या मस्तिष्क...बड़े डाक्टर ही समझ सकेंगे। यहाँ के चरिपरिचित मोहल्ले के डाक्टर बाबू के निर्देश पर 'अभी अस्पताल ले जाना है', उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है।
देखा जाए तो 'कुछ भी नहीं हुआ है।' हर दिन की तरह सुबह उठी थीं। नहा-धोकर पूजागृह में ऊपर चली गई थीं औंर वहाँ दो-ढाई घंटे बिताकर नीचे आईं थीं। आँगन के तुलसीमंच में पानी डाल रही थीं जब कोई पड़ोस की महिला आ गई थीं। उनसे बातचीत की थी। और इसके बाद ही दुमंजिले पर जाकर अखबार पढ़ने बैठ गई थीं।
रसोइया उनके लिए चाय बना रहा था।
इसके बाद?
इसके बाद पता नहीं क्या हुआ-किसी को कुछ पता नहीं। अचानक जैसे साँप के डसने जैसे की तरह कुछ कहकर चिल्ला उठीं। घर में उपस्थित लोग दौड़कर गए तो देखा, अखबार फर्श पर पड़ा फड़फड़ा रहा है और मालकिन फर्श पर निथर निश्चल पड़ी हैं।
पूरी खबर संग्रह करने में-संवाददाता पाँच-छह मौजूद थे। रसोइया, मोहिनी की माँ, उसके साथ आई दस की नातिन और संवाद देने से अति अनिच्छुक अवनी। 'अति अनिच्छुक' जान कर क्या कौतुहलीगण छोड़ देंगे? अतएव कारण ढूँढ़ते-ढूँढ़ते अचानक नोनीबाला के आविर्भाव का भेद खुला।

तो सुकुमारी देवी का मरणास्त्र आज के अखबार में छिपा था। अचानक वही उन्हें चुभ गया।
जिन लोगों ने अभी तक खोद-खोदकर अखबार का पठन-पाठन नहीं किया था, जो खोद-खोदकर पढ़ते ही नहीं हैं और जो अखबार ही नहीं पढ़ते हैं-वह सभी घर जाकर पूछताछ करने लगे कि कौन सी वह खबर है जो सुकुमार सान्याल के मरणास्त्र का रूप धरकर आई।
तो हुआ आविष्कार।
केवलमात्र एक ही अखबार में नहीं, लगभग सभी अखबारों में ये खबर निकली थी। हाँ कुछ संवाददाताओं ने इसे मामूली मानकर दो लाइन में लिखा था और कुछ ने साधारण शब्दों में एक खबर की तरह से एक कोने में निकाल दिया था।
और बाक़ी दो एक ने इस युग के संवादिकता में जिसे 'कहानी लिखना' कहेंगे, उसी तरह से खूब ज़ोरदार, रोमांचक, और घुमावदार बनाकर घटना या दुर्घटना को कहानी की तरह परोसा था। और इसके लिए अखबार का एक बड़ा हिस्सा कवर किया था।
हेडिंग 'दिन दहाड़े दुःसाहसिक डकैती'! 'पूर्व दिगन्त हाउसिंग स्टेट के आठवें मंजिल के...'इतने' नम्बर के वाशिन्दे, राज्य सरकार के पर्यटन विभाग की ऑफिसर श्रीमती रूबी सान्याल, हर दिन की तरह दिनान्त कर्मक्लान्त देह और मन से अपने घर लौटीं, हमेशा की तरह स्वचालित लिफ्ट द्वारा आठवें मंजिल के अपने फ्लैट के बन्द दरवाजे को, पर्स में से चाभी निकाल कर खोलकर, निश्चिन्त मन से फ्लैट में घुसी थीं।
लेकिन इसके बाद?
इसके बाद उनकी भयंकर आत्मा हिला देने वाली चीख सुनकर आस-पास के पड़ोसी दौड़े आये थे। उन्होंने आकर देखा फ्लैट के भीतर के सारे दरवाज़े खुले और घर के भीतर का सारा सामान गायब।

गोदरेज की अलमारियों के पल्ले ही नहीं, उनके लॉकर के पल्ले भी खुले। घर के फर्श पर कुछ...फालतू कागज, बिजली का बिल, चश्मे का प्रेसकिप्श घरेलू सामानों की रसीदें, गैरेन्टीपत्र, ख़रीदने की तारीख, वगैरह फैले पड़े थे। और बीच वाले कमरे के फर्श पर हाथ-पाँव फैलाए चारों खाने चित्त पड़ी थीं श्रीमती सान्याल। फ्लैट की मालकिन। न, उनके शरीर पर किसी तरह का आघात का चिह्न मौजूद नहीं था। स्पष्ट जान पड़ रहा था फ्लैट में प्रवेश कर भीतर का दृश्य देखकर वे बेहोश हो गई थीं।
किसी तरह की हाथापाई या 'विध्वस्त' अवस्था का नामोनिशान नज़र नहीं आ रहा था, टेलीफोन की लाइन के साथ भी कोई छेड़खानी नहीं हुई थी। यहाँ तक कि डाइनिंग टेबिल पर पानी का जग भी लगभग भरी हालत में मेज़ पर रखा हुआ था। जितना कम हुआ था वह व्यय किया था पड़ोस की गृहणी ने चेतना लौटाने के उद्देश्य से और सफल भी हुई थीं। और किसी समय बच्चे ने टिफिन खाया था उसके चिह्न भी मौजूद पाए गये। प्लेट के आसपास केक के चूरे छिटके फैले पड़े थे, प्लेट पर आधा खाया एक चॉप भी रखा था।
पड़ोसियों के हाय-हाय करते-करते उस फ्लैट के तीन वाशिन्दों में से दूसरे कर्मस्थल से वापस लौटे-इण्डियन एयर लाइन्स के इन्जीनियर मिस्टर, ए.पी. सान्याल। वे यद्यपि मूर्च्छित नहीं हुए, केवल पुलिस को फोन करने के बाद चप्पा-चप्पा छानने लगे तीसरे प्राणी को तलाशने में। किंशुक सान्याल। कहाँ है वह?' आनन्द 'मंगल' शिशु विद्यालय का सुन्दर चंचल वही छोटा किंशुक। उस दिन भी शाम को तीन बजे उसे स्कूल-बस से कूदकर उतरते देखा गया था। दिखाई पड़ी थी उसकी आया पार्वती सरदार भी-यथास्थान खड़ी प्रतीक्षारत...
लड़का 'पार्वतीदी' कहकर अपना बैग, वॉटर बॉटल सब उसे देकर उछलते हुए फ्लैट के कम्पाउण्ड में घुस आया था-यह दृश्य भी बहुतों ने देखा था।
इसके बाद कौन किसकी खबर रखता है?
और पार्वती सरदार?
उसे ही कौन ढूँढ़ने जा रहा है?
उसको तो फ्लैट के भीतर ही रहना था।
पर नहीं! वह फ्लैट में नहीं थी। उसकी अपनी कोई चीज़ भी नहीं थी। वह नहीं मिली। और वह सात साल का लड़का? वह भी क्या घर के सारे सामान के साथ चोरी चला गया?
पर सान्याल दम्पत्ति का अहोभाग्य कि वह चोरी नहीं हो गया था। वह मिला। बेडरूम के बगल वाले छोटे से बॉक्सरूम में-गहन निद्रा में डूबा फर्श पर पड़ा था।
शरीर पर केवलमात्र एक जाँघिया और बनियान। स्कूल से वापस लौटकर घर में पहनने की पोशा में।

लेकिन नींद से बेहोश बेहाल-क्या यह चिरनिद्रा है?
नहीं-अभी भी यह बात घोषित नहीं हुई है। वह इस समय पी.जी. के एक बेड पर चेतना और अवचेतना की दशा में पड़ा था। परीक्षण से पता चला है कि अत्याधिक नींद की दवा की प्रतिक्रिया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि डकैती की सुविधार्थ शिशु के खाने में नींद की दवा डालकर उसे खिलाया गया होगा। उद्देश्य काम आराम से करने का था, बच्चे को मारने का नहीं। अधिक मात्रा में प्रयोग करने से यह मुसीबत आ गई है।
हालाँकि ऐसा पुलिस का अनुमान है। रहस्य-उद्घाटन के लिए उसे तहकीकात करना पड़ेगा। लापता पार्वती सरदार अभी मिली नहीं है। पुलिस यह भी सोच रही है कि या तो पार्वती ही डकैती की नायिका है या वह भी डकैती की शिकार।
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