नारी विमर्श >> चश्में बदल जाते हैं चश्में बदल जाते हैंआशापूर्णा देवी
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बाप बेटा को समझाना चाहता है कि युग बदल गया है-तुम्हारा चश्मा बदलना जरूरी है। वृद्ध पिता के चेहरे पर हँसी बिखर जाती है।
बहुत दिनों से नरोत्तम नदारद।
बाथरूम में पाँव फिसल कर गिर गये थे। प्लास्टर बाँधकर काफी दिनों तक घर के
भीतर क़ैद थे।
आज किसी तरह से आ पहुँचे। बोला-'अरे ओ सोमा! अब जाकर तेरी दशा कैसी है, समझ
पाया। इसीलिए कवि कहते हैं-कैसी यातना विष से होती है वह कैसे समझ सकता है
जिसे कभी विषाक्त चीज़ ने काटा नहीं दंशा नहीं। ख़ैर, कैसा है?'
'ठीक ही हूँ।'
थोड़ी देर इधर-उधर की बातों के बाद नरोत्तम बोल उठे-'क्यों रे, अचानक
सारे-के-सारे घर के लोग गये कहाँ? नीचे की मंजिल बड़ा खाली-खाली-सा लगा। तेरे
अवनी से पूछा तो पथराई आवाज़ में बोला-'कोई नहीं है। सब दूसरे घरों में चले
गये हैं। मामला क्या है?'
सोमनाथ ने भी उसी पथराई आवाज में कहा-'मामला वही है। सभी अलग घरों में चले
गये हैं।'
'मतलब? 'दूसरा घर' के मतलब?'
'माने अपने अपने फ्लैटों में। खुले-खुले मोहल्ले में।...यहाँ खुली हवा का
अभाव है।'
नरोत्तम थोड़ी देर गुम मारे बैठे रहे फिर बोले-'और तेरी गृहणी? उन्हें भी क्या
खुली हवा का अभाव सता रहा था?'
सोमप्रकाश को हँसी आ गई। बोले-'इतना नहीं। लेकिन हाँ अब वह मुक्ति की चिन्ता
में पूजागृह को पकड़े बैठी हैं।'
'वाह क्या कहने। इतना बड़ा मकान और सिर्फ तुम दोनों अकेले?'
'दोनों अकेले?' सोमप्रकाश हँसकर बोले-'हमेशा से पता था कि तू गणित में कच्चा
है, अब देख रहा हूँ बंगला भाषा में भी।'
'हँस मत सोमा। तुझसे हँसते कैसे बन रहा है?'
'कोशिश करने से हँसा भी जा सकता है। पर हाँ, वैसे तो दो भाई दो शिविर में हैं
लेकिन एक विषय पर दोनों ने एक मत होकर प्रस्ताव रखा है कि मकान प्रोमोटर के
हाथ में दे दूँ।'
'क्या? क्या कहा? प्रोमोटर के हाथ में?'
'हाँ। यही तो कहा। बोले, यह फैला बिखरा कर, पुराने ज़माने के प्लान मुताबिक
मकान को प्रोमोटर को दे दूँ तो भयंकर लाभ होगा।'
'ओ! तो लाभ होगा किसे?'
'सारे वारिसों को। और ज़्यादा फायदा होगा सोमप्रकाश सान्याल को। वह साला
कितने भी मंजिल का मकान क्यों न बनाये, हम बूढ़े-बूढ़ी दोनों के लिए दुमंजिले
अथवा निचली मंजिल में एक फ्लैट छोड़ने को मजबूर होगा। यह क्या अलग से फायदा
नहीं है?'
सहसा नरोत्तम पाँव का दर्द भुलाकर उठकर खड़े हो गए और बोले-'सोम झूठ नहीं
बोलूँगा लेकिन हमेशा ही मेरे भाग्य से, ईर्ष्या न कर तारीफ करता था। स्वयं
तीन-तीन बेटियों का बाप। और तेरे दो बेटे और दोनों ही हीरे के टुकड़े। अब देख
रहा हूँ काँच के टुकड़े हैं। इससे तो मेरी मिट्टी के ढेले ही अच्छे हैं।'
सोमप्रकाश के चेहरे पर हँसी बिखर गई। बोले-'तो ये कह कि तेरे चश्में का पॉवर
बदल गया है।'
अचानक देखने में आया कि केवल नरोत्तम ही नहीं सोमप्रकाश के दूसरे जो मित्र
हैं, रिश्तेदार, कुटुम्ब हैं, सभी के चश्मों का पॉवर बदल गया है। अभी तक जैसा
देख रहे थे अब वैसा नहीं दिखाई दे रहा है उन्हें।
जिसे कभी ईर्ष्यापूर्ण दृष्टि से देखते थे अब करुणाभरी दृष्टि से देख रहे
हैं। और जिससे कभी आदर और सम्मानपूर्वक बात करते थे अब उसके सिर चढ़कर बोल रहे
हैं। कह रहे हैं तुम्हारे दोनों ही लड़कों के आँखों का चश्मा कैसे उतर गया?
ऐसे हार्ट के रोगी बूढ़े बाप और बेचारी माँ का अकेला फेंककर चले कैसे गये?
छोटे को सुना है कि ऑफिस से फ्लैट मिला है लेकिन बड़ा? झउआ भर किराया देकर
रहने के लिए किस मुँह से चला गया? सुनकर तो हम सब अवाक हो गये।'
शुरु में तो अवाक हुए ही थे।
अवाक होकर सोचा था, विमल? विमल भी? वह भी किराए के फ्लैट में? हर महीने ढाई
हजार किराया गिनेगा? एक डेढ़ कमरों के फ्लैट में रहने गया वह?
अचानक एक बार अपने स्वभाव के विरुद्ध एक काम कर बैठे थे। पूछ बैठे-'विमल!
यहाँ क्या तुमलोगों को बड़ी असुविधा हो रही थी?
विमल उत्तर देते-देते चुप हो गया और सामने पड़ी किताब के पन्ने उलटने लगा।
दोबारा थोड़ी प्रतीक्षा के बाद सोमप्रकाश बोले-'उसका प्रतिकार कर लेना क्या
सम्भव नहीं था?'
अन्त में मन को कड़ा कर विमलप्रकाश ने कहा-'असुविधा जब मानसिक हो जाए पिताजी
तब प्रतिकार की कोई सम्भावना नहीं रह जाती है।'
सोमप्रकाश बेटे के झुके हुए चेहरे की ओर देखकर बोले-'तेरी मानसिकता तो नहीं
न?'
'मेरी?'
विमलप्रकाश ने एक बार चेहरा उठाकर देखा फिर जाकर खुली खिड़की के पास खड़ा हो
गया। बाप की तरफ पीठ करके।
सोमप्रकाश ने क्या दीर्घश्वास को रोक लिया? या उसे शब्द का रूप देकर
बोले-'जहाँ भी रहो, अच्छी तरह से रहो।'
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