कहानी संग्रह >> अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँप्रकाश माहेश्वरी
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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।
''ओफ़ो, तुम बेफिजूल शंका कर रही हो,...जरा पढ़कर देखो...कुछ कहानियों में चमेली भी है...''
''हे भगवान!'' वो आँसू बहाती जार-जार रोने लगी, ''खूब पल्ले पड़ी मैं इस छलिया के। एक मालती कम थी जो चमेली भी...? मेरे तो भाग्य फूट गए...दो-दो सौतने पहले से तैयार हैं...''
मैंने सिर पीट लिया। उसे समझाने का बहुतेरा यत्न किया। 'नलवाली' का किस्सा सुनाना चाहा, मगर वह तो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। फौरन मेरी 'जन्मपत्रिका' उठाई और एक ज्योतिषी को बतलाने पहुँच गई।
ज्योतिषी का घर मंदिर के पास था। मंदिर जाते हुए उसने ज्योतिषी का बोर्ड पढ़ रखा था। 'त्रिकालदर्शी ज्योतिषी....भूत, वर्तमान, भविष्य का हाल बतलाने वाले...वशीकरण का शर्तिया ताबीज बनाने वाले...'
मेरी पत्नी ने जाते ही मेरी पत्रिका ज्योतिषी के सामने पटक दी।
''हूँ?'' ज्योतिषी ने पत्रिका को उलट-पुलट कर पूछा, ''तो आप अपने पति का भविष्य जानना चाहती हैं?''
''अरे उनका भविष्य तो मेरी मुट्ठी में है।'' उसने दाँत किटकिटाए, ''आप तो उनका भूतकाल बतलाइए?''
भूतकाल? ज्योतिषी का माथा ठनका। सेठानी सेठ का भविष्य बाँचने की बजाय 'भूतकाल' जानने को उत्सुक है? वह महाचतुरा था। फौरन ताड़
गया-सेठानी को सेठ पर शंका हो गई है। 'वशीकरण मंत्र' बेचने का सुनहरा अवसर है, वह गहन चिंतन का अभिनय करने लगा, ''हँऽऽ।...शनि की दृष्टि बड़ी विकट है...राहु और केतु भी घात में बैठे हैं...''
''...तो?'' मेरी पत्नी बिल्ली की तरह गुर्राई।
ज्योतिषी ने खुश हो अफसोस से गर्दन हिलाई, ''...बुरा न मानें देवी, आपके पति अवश्य किसी परनारी के चक्कर में हैं।''
उसकी खोपड़ी में नगाड़े बजने लगे। दाँत पीस जासूसों की तरह धीरे-धीरे शब्दों को चबाने लगी, ''...एक के...या दो के?''
ज्योतिषी की बाछें खिल गईं। यजमान जब स्वयं 'दो' की शंका कर रही हो तो वह एक क्यों बोले? उसे दो बोलने में डबल फायदा नजर आया। उसने जल्दी-जल्दी हिसाब कर, हासिल में दो निकाल दिए, ''...हूँ ऊँ? दो के!''
मेरी पत्नी को अविश्वास करने का कोई कारण नहीं था। दो थीं भी, एक मालती...दूजी मुई चमेली! उसने किसी तरह गुस्से को जज्ब किया, ''अच्छा, अब जरा यह बतलाइए..'दोनों' के चक्कर लगाते हैं?''
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