कहानी संग्रह >> अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँप्रकाश माहेश्वरी
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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।
अनंत सिर पकड़ बैठ गया। मतलब खबर सच्ची थी। मगर उन्हें मिली क्यों नहीं? सब रिश्तेदारों को मिल गई, उन्हें ही नहीं? सगे बेटों को।... 'दाह संस्कार' के बाद 'उठावने' पर सारे रिश्तेदार आए होंगे...उस दिन भी दोनों बेटों को जब अनुपस्थित पाया होगा..., कितनी छीछालेदर हुई होगी।
अपने आपको अपमानित महसूस कर अनंत की गर्दन झुक गई। सुमंत को फ़ोन से सूचित कर, वह जाने की तैयारी में जुट गया। चार घंटे बाद ट्रेन थी। बारह घंटों का सफ़र। रास्ते-भर उधेड़-बुन में रत रहा।
सीट पर बेचैनी से पहलू बदल रही मेघा ने नथुने फुलाते हुए आशंका प्रगट की, ''मुझे तो गहरी साजिश लगती है।''
''कैसी साजिश?''
''माँजी के गहने हड़पने की।''
''मैं समझा नहीं?''
''अरे! सीधी सी बात है। अपन सब पहले पहुँच गए होते तो माँजी के गहने हम दोनों बहुओं में बँटते। अब, न पहुँचने पर कर लिए होंगे किसी ने कब्जे में।''
''किसने?''
''उसी ने, जो हफ्ते-भर से आकर जमी बैठी है!'' घृणा से मेघा का स्वर विषैला हो गया।
अनंत ने कोई जवाब नहीं दिया। सिर झुकाए विचारों के भँवर में डूबता-उतराता रहा।
अगले दिन प्रातः दस बजे के लगभग दोनों टकलपुर पहुँचे।
पिताजी बाहर बैठक में एक कोने में उदास-गमगीन बैठे थे। सामने दरी पर 4-5 रिश्तेदार।
रिक्शे से उतर अनंत ने सूटकेस एक तरफ पटका और पिताजी की गोद में मुँह छिपा जार-जार रोने लगा, ''कैसे हो गया यह सब? हमें खबर तक नहीं मिल पाई?''
पिताजी ने कोई जवाब नहीं दिया। दीवार से सिर टिका आँखें मूँद होंठों को कसकर भींच लिया। उनके झुर्रीदार चेहरे पर दर्द की असंख्य लकीरें थीं।
उधर मेघा रिक्शा से उतर अंदरूनी कक्ष में जा अपने आर्त-विलाप से पूरे घर को गुँजाने लगी। दीदी से लिपट वह फूट-फूटकर रोती उनके कंधे को तर कर रही थी।
तीन-चार मिनट दोनों (अनंत-मेघा) का यह करुण विलाप चलता रहा। फिर पिता की गोद से सिर उठा अनंत ने भीगे स्वर उलाहना दिया, ''...आजकल तो इतने साधन हो गए हैं, हमें एस.टी.डी...करवा देते?''
''करवा तो देता, मगर फिर सोचा, कोई फायदा तो है नहीं।''
''क्यों?''
''मुझे लगा, क्या पता इस बार भी तुम्हें 'छुट्टी' मिलने में 'प्रॉब्लम' आ जाए?''
''धन्न!'' अनंत को लगा, मानो उसे भरी महफिल में नंगा कर जूते जड़ दिए हो, सिटपिटाकर हकलाने लगा, ''...अ...ऐसा आपने कैसे सोच लिया?...मरने की खबर सुनकर तो हम हर हाल में आते...''
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