लोगों की राय

कहानी संग्रह >> अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

प्रकाश माहेश्वरी

प्रकाशक : आर्य बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6296
आईएसबीएन :81-7063-328-1

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

335 पाठक हैं

‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।

कालिख


सुमंत का चेहरा स्याह हो गया। सकपकाकर उसने नज़रें झुका लीं। नंदूजी अब भी उसे हैरत से घूर रहे थे, ''...तो तुम्हें अभी तक समाचार नहीं मिला?''

''...न...नहीं।''

''अजीब बात है?'' मन ही मन बुदबुदा उन्होंने एक ऑटोरिक्शा रोक उसमें अपना सामान जमाया, ''...खैर, अभी तो मैं चलता हूँ, मेरी ट्रेन का समय हो रहा है। अठारह तारीख को वहीं मिलूँगा...धीरज रखना।'' और सांत्वना से उसकी पीठ थपथपा रवाना हो गए।

सुमंत कुछ क्षण बुत बना खड़ा रहा। उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। पीछे एक कार ने हॉर्न दिया। विचारों के भँवर से बाहर निकल सुमंत ने स्कूटर आरंभ किया और उदास मन घर लौटा।

उसे यकायक आया देख श्लेषा घबरा उठी। पानी का गिलास थमा चिंतित स्वर में पूछने लगी, ''तबीयत तो ठीक है न?''

''हां।''

''फिर दफ्तर से जल्दी लौट आए?''

''श्लेषा!'' सुमंत का कंठ सूख गया, ''...माँ नहीं रहीं।''

''ऐं?...कब?''

''सात दिन हो गए।''

''क्या?'' वह लगभग चीख पड़ी, ''...सात दिन हो गए और हमें खबर तक नहीं? कौन बोला आपको?''

''नंदूजी।...यहाँ किसी काम से आए थे। अकस्मात मार्केट में मिल गए...''

''मगर...'' श्लेषा अचकचाई, ''यह अजीब बात है? आपकी माँ और आपको ही खबर नहीं? बड़े भैया का भी फ़ोन नहीं? क्या उन्हें भी खबर नहीं मिली होगी?''

''लगता तो यही है...'' भारी मन उसने फोन उठा अनंत भैया को एस.टी.डी...लगाई।

सुनकर अनंत को भी बेहद आश्चर्य हुआ, ''अजीब बात है? हमें समाचार क्यों नहीं? आजकल तो गाँव-गाँव में एसटीडी...है। नंदूजी को गलत समाचार मिला होगा?''

''नहीं, भैया। छोटी बूआजी ने स्वयं उनको फोन किया था। नंदूजी के बेटे की शादी दस दिनों पूर्व हुई थी, इसलिए दाह-संस्कार व उठावने में नहीं जा पाए बोले-अब बारहवें पर जाएँगे।''

''कुछ समझ नहीं आ रहा...'' अनंत बौखलाया, ''...सगी माँ शांत हुई और बेटों को ही खबर नहीं...पूरा हफ्ता बीत गया? तुमने टकलपुर फ़ोन लगाया?''

''किसको लगाता?...वहाँ किसी का नंबर मालूम नहीं। आपको मालूम है?''

''अँ हँ।''

''फिर? कैसे करें ककर्म?...दीदी को फ़ोन लगाकर पूछें?''

''हँसेंगे नहीं हम पर?''

''ऐं!''

''ऐसा करते हैं...'' कुछ सोच अनंत ने उसे फ़ोन रखने को कहा, ''...दूसरे ढंग से पूछते हैं।''

और सुमंत के फ़ोन रखने के बाद अनंत ने अपनी पत्नी मेघा को कुछ समझाया। मेघा ने दीदी को एस.टी.डी...लगाई। उधर फ़ोन उठाने पर मेघा ने पूछा, ''...हलो? टकलपुर वाली बेला है?...मैं उसकी सहेली सेवती...यहाँ बैतूल आई थी, सोचा मिल... क्या... कब... ओह... अच्छा-अच्छा...'' और फ़ोन रख दिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. पापा, आओ !
  2. आव नहीं? आदर नहीं...
  3. गुरु-दक्षिणा
  4. लतखोरीलाल की गफलत
  5. कर्मयोगी
  6. कालिख
  7. मैं पात-पात...
  8. मेरी परमानेंट नायिका
  9. प्रतिहिंसा
  10. अनोखा अंदाज़
  11. अंत का आरंभ
  12. लतखोरीलाल की उधारी

लोगों की राय

No reviews for this book