इसी हालत में अमृतसर शहर के
बीच में से मुसलमानों का जुलूस उधर जाने को हुआ। अमृतसर शहर हिन्दुओं और
सिक्खों से भरा हुआ था। सिक्खों ने इन्कार किया कि इधर से यह मुसलमान लोग
नहीं जा सकते। वह ६० मील का लम्बा प्रोसेशन (जुलूस) अब वहीं पड़ा था।
उसमें १० लाख आदमी थे और इन लोगों ने वहीं रोक लिया और दूसरा कोई रास्ता
जाने का नहीं था। इधर इन लोगों ने हठ पकड़ी कि नहीं जाने देंगे। उधर दूसरी
तरफ हमारे जुलूसों को भी रोक लिया गया। अब उसका फैसला कौन करें? लोग
गुस्से में भरे हुए थे। अपने मकान जले है, अपने बीबी-बच्चे कत्ल हो गए
हैं, अपने पास खाने-पीने की भी कोई चीज़ नहीं बची है। आंखें लाल हैं और
तलवार लेकर निकल आए कि नहीं जाने देंगे। तब फौज से भी यह काम नहीं होता।
फौज आखिर बन्दूक चलाकर कितने हिन्दुओं को मारे? कितने सिक्खों को मारे?
तोप से हम कैसे रोकें और कितनों को मारें? तब मैं अमृतसर गया। सब सिक्ख
लीडरों को मैंने बुलाया और उनके साथ बातचीत की। मैंने कहा, यह क्या कर रहे
हो आप? आप १० लाख मुसलमानों को इधर रोक लोगे। १० लाख हिन्दू और सिक्ख वहाँ
रुके पड़े हैं। उन अभागों पर ऊपर से पानी पड़ता है। नीचे भी पानी है। उनका
सब कपड़ा भीगा हुआ है। नींद नहीं है, खाना नहीं है। हैजा शुरू हो गया है।
इस तरह से प्रोसेशन रोककर आप क्या फायदा निकालेगे? मैंने अनुरोध किया कि
मेरी बात मानो। यदि हमें लड़ना ही है, तो हम कुछ सभ्यता से लड़ें ताकि
दुनिया के लोग भी देखें कि यह लड़नेवाले बहादुर लोग हैं। आपकी तलवार यदि इस
तरह कमजोरों पर चलेगी तो उससे क्या फायदा होगा? तुम बहादुर कौम हो। ऐसे
कामों से दुनिया में हमारी इज्जत जाती है। बहादुर सिक्खों को बदनाम
करनेवाला यह काम कभी मत करो। पटियाला महाराज ने भी मेरा साथ दिया। जितने
सिक्ख लीडर थे, वह समझ गए और मान गये।
तब मैने वहाँ अमृतसर में एक
बहुत बड़ा जल्सा किया। दो घंटे की नोटिश में डेढ़ लाख आदमी जमा हो गए। सब को
मैंने कहा और समझाया। मैंने कहा, आपका काम यह है कि आप अपनी गवर्नमेंट की
मदद करें, ताकि हमें पुलिस का उपयोग न करना पड़े, फौज का उपयोग न करना पड़े।
आप खुद चौकीदारी करें। आप वालंटियर बनकर मुसलमानों को इधर से निकल जाने
दें और उधर जो हमारे हिन्दू और सिक्ख भाई पड़े है, उनको इधर लाने में मदद
दें। ५० लाख आदमी हमें वहाँ से इधर लाना है। ४० लाख आपको इधर से वहाँ
भेजना है। वैसे हम मरते रहेंगे, उससे तो अच्छा है कि अब अपनी फौज बनाकर,
मजबूत हिन्दुस्तान बनाकर, पाकिस्तान और हिन्दुस्तान को लड़ना हो, तो लड़े।
लेकिन किसी ढंग से लड़े, तब तो ठीक बात है। यह इस तरह का लड़ना भी क्या है?
वहां कई हमारे आर० एस० एस० वाले लोग थे। उनको भी मैंने समझाया कि
हिन्दुस्तान का बोझ तो आप लोगों को ही उठाना है। हम लोग तो अब जरित हो गए।
हमने तो आजादी आपके लिए पाई है। यह आप क्या कर रहे हो? सब समझ गए। सबने
मुझसे वायदा किया। उन्होंने कहा कि यह काम हम करेंगे। आप बेफिक्र रहें।
मैं चला आया और मुझे खुशी हुई कि उसके बाद हमारे सिक्खों और हिन्दू भाइयों
ने बहुत अच्छे ढंग से काम किया, और सब को जाने दिया। निकलते-निकलते एक
महीना डेढ़ महीना लग गया। लेकिन सब चले गए। उधर से भी बाकी के सब चले आए।
आज सिक्ख और मुसलमान के बीच
में इतना जहर फैला हुआ है कि मुसलमान सिक्खों का चेहरा भी नहीं देख सकते।
वे उन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकते है। सिक्खों ने मुझे जो कौल दिया था, यदि
उन्होंने उसका पूरा-पूरा पालन न किया होता तो आज न हिन्दुस्तान रहता, न
पाकिस्तान रहता। इसमें मुझे कोई शक नहीं है। लेकिन फिर भी उन्हें बदनाम
किया जा रहा है। अब उनको बदनाम करना कोई अच्छा काम तो नहीं है। कम-सें-कम
उससे ज्यादा तो मैं नहीं कहूँगा। आप ही देख लीजिए कि कराची में क्या हुआ।
थोड़े दिन हुए, वहां सिक्खों के गुरुद्वारे पर हल्ला किया गया। गुरुद्वारे
में बहुत-से सिक्ख जमा थे। वे शिकारपुर, सक्खर आदि शहरों तथा वहाँ के
देहातों से आए थे। पाकिस्तान की पुलिस ही उन्हें वहाँ लाई थी! बाहर भेजने
के लिए, हिन्दुस्तान में भेजने के लिए। और हम चाहते थे जल्दी उनको यहाँ ले
आएं। लेकिन वहाँ गुरुद्वारे पर ही उनको कत्ल किया गया। उसपर हल्ला किया
गया। और उसके बाद सारे कराची में जितने हिन्दू लोग रहते थे, उनके मकानों
की लूट-पाट शुरू हुई। अब वहाँ न हिन्दू रह सकते हैं न सिक्ख।
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