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भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


मैं तीन महीनों से कह रहा हूं कि कराची में हिन्दू नहीं रह सकता। हैदराबाद में, कराची में, या सिन्ध में, कहीं भी हिन्दू और सिक्ख नहीं रह सकते। हमें आपस में बैठकर दोनों गवर्नमेंट के बीच में समझौता कर सब यहाँ ले आना चाहिये। जब मैं यह कहता था, तो मेरा सब विरोध करते थे कि यह तो मुसलमानों की या पाकिस्तान की बदनामी करते हैं। मैं बार-बार कहता हूँ कि यह गलत बात है। मैं तो कहता हूँ कि यदि हम उन्हें यहाँ न लाएँ, तो वे मारे जाएँगे और उसकी जिम्मेवारी हमी पर पड़ेगी। लेकिन हमारे लोग भी नहीं मानते थे। अब वे सब भागे-भागे आते हैं। आज हमारे पास जितने जहाज हैं, सिन्धिया के भी जितने जहाज हैं, वह सब हमने वहाँ भेजे हैं। अब किस तरह से लोगों को वहाँ से निकलना है, उनका बयान आज मैं नहीं करूँगा, क्योंकि मैं जहर फैलाना नहीं चाहता। लेकिन हालत बहुत बुरी है। ये सिक्ख, जिन्होंने मुसलमानों को इस तरह से यहाँ से जाने दिया, इन्हीं सिक्खों के गुरुद्वारे में उनका ऐसा हाल हुआ! इतना होते हुए भी सिक्खों ने खामोशी रखी। सिक्ख मेरे पास आए तो मैंने कहा कि सौ-डेढ़-सौ सिक्ख मारे गए हैं। लेकिन उससे आपकी इज्जत बहुत बढ़ी है।
आप बैठे रहिए, गुस्सा नहीं कीजिए। वे बैठ गए। उसके बाद गुजरात से ट्रेन आती थी, जिसमें बन्नू से हमारे सिक्ख और हिन्दू भाई आ रहे थे। इस ट्रेन में करीब-करीब तीन हजार आदमी थे। दस बजे उलटे रास्ते ट्रेन ले जाकर रोक ली गई। वहाँ हमारा मिलिट्री का पहरा था। मिलिट्री के करीब ६० आदमी थे। कोई ६-८ घंटों तक लगातार गोली चलती रही। ट्रेन में हमारे जो तीन हजार आदमी थे, अब उनमें से करीब-करीब एक हजार का हिसाब मिलता है २००० हजार आदमियों का पता ही नहीं चलता। बस और जो कुछ हुआ उसका बयान करने का यह मौका नहीं है। लेकिन इतना मैं जरूर कहना चाहता हूँ कि यह सब होते हुए भी, सिक्खों ने उस सब को बर्दाश्त कर लिया और सब जगह पर, दिल्ली में भी, सिक्ख जब आज मिलते है,, तो हम से कहते हैं और गान्धी जी को विश्वास दिलाते हैं कि हम खामोशी रखेंगे। इन सिक्खों को लोग जब बदनाम करते हैं, तब मुझको चोट लगती है कि यह क्या बात है। लोग क्यों ऐसा करते हैं?

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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