जब तक हिन्दुस्तान पूर्णतया
दिल का परिवर्तन न करे और जिस तरह से हमें स्वतन्त्र हिन्दुस्तान में अपना
काम करना चाहिए, उसी तरह जब तक हम न करें, तब तक हमारा काम नहीं हुआ और तब
तक गान्धी जी को चैन नहीं है, वह बेचैन हैं। अब उनको दिल्ली में छोड़कर
मैं इधर आया तो मुझको भी बहुत दर्द हुआ (गांधी जी उन दिनों दिल्ली में
अपने जीवन का अन्तिम उपवास कर रहे थे)। परन्तु इधर न आता तो और भी मुसीबत
होनेवाली थी। इसलिए मैं आया तो सही, लेकिन मैं भी पूरी तरह अस्वस्थ हूँ।
इस से मैं आपके सामने बोल रहा हूँ। लेकिन जो दिल से बात निकलनी चाहिए,
जल्दी जल्दी वह निकलती भी नहीं, इतना दर्द उसमें भरा है।
तो हमने हिन्दुस्तान को एक तरह
से बाँध तो लिया। अब हमारी कोशिश है कि हिन्दुस्तान को उठाओ। इस उठाने की
कोशिश में यदि हमको आप लोगों का साथ मिल जाए, तो अभी भी हमारी उम्मीद है
कि हमने कुछ ज्यादा नहीं गँवाया है। क्योंकि हमारा इतना बड़ा मुल्क है। इस
मुल्क में कई सदियों से हमारी हुकूमत तो थी नहीं। हम लोग छिन्न-भिन्न थे।
यहाँ परदेसी हुकूमत ही चलती रही। अब करीब एक हजार साल के बाद हमारे पास यह
मौका आया है कि ८० प्रतिशत हिन्दुस्तान हमने एक कर लिया है। उसको उठाने का
हमें यह पहला मौका मिला है। यदि हम इसका सदुपयोग करें, तो दुनिया के और
बड़े-बड़े मुल्कों के साथ हम बैठ सकते हैं और सारे एशिया की नेतागिरी हम ले
सकते हैं। साथ ही और देशों को रास्ता बता सकते हैं। यही हमारी कोशिश है,
उसमें हमको आपका साथ मिलेगा, कि नहीं, यही हमारी चिन्ता है। हमें उम्मीद
तो है, लेकिन कभी कभी हम निराश भी हो जाते हैं।
१५ अगस्त के बाद हमने काम तो
किया, और एक तरह से बहुत काम किया। उस काम से हमारी गिरी हुई प्रतिष्ठा
फिर से हमें प्राप्त होने लगी, क्योंकि दुनिया देख रही थी कि इन लोगों पर
क्या बोझ पड़ा है। हिन्दुस्तान की वर्तमान सरकार की जगह पर यदि दूसरी कोई
सरकार होती, तो क्या करती, यह भी दुनिया जानती थी। बहुत से मुल्क अब यह
सोचने लगे हैं कि जैसा वे हमें समझते थे, वैसे बुरे हम लोग नहीं हैं।
हिन्दुस्तान की जडें बहुत मजबूत होती जा रही हैं और उनको वे हिला नहीं
सकेंगे। चार महीने में दो प्रान्तों के टुकड़े किए और कई प्रान्तों में
प्लेबीसिट (जनमत) लिया। आसाम में से एक टुकड़ा निकाल लेने का हौसला भी कर
लिया गया। बंगाल का टुकड़ा कर लिया और पंजाब का भी टुकड़ा कर लिया और उसके
साथ साथ इन्हीं चार महीनों में पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के बीच में सारी
पुरानी मिल्कियत का भी हमने हिस्सा-बाँट कर लिया। अब एक कुटुम्ब में भी
यदि मिल्कियत का हिस्सा करना हो, तो दो भाइयों के बीच भी वह काम एक दिन मे
नहीं हो जाता और उसका हिसाब-किताब करना पड़ता है, उसकी जायदाद का माप
निकालना पड़ता है। कभी पंच भी करना पड़ता है। कभी झगड़ा भी होता है। यह सब
निपटाने में वख्त लगता है। तो हिन्दुस्तान की मिल्कियत का, जमीन जायदाद
का, जितनी हमारी दौलत थी, जितना हमारा कर्जा था, जितनी लोगों की
सेक्यूरिटीज़ थीं, सब का हिसाब करना था। इन सब चीज़ों का हमने फैसला किया और
आपस में बाँट लिया। इस सब कार्य में हमने किसी पंच को नहीं बुलाया।
पिछले चार महीनों में हमने न
केवल यह सब ही किया, बल्कि इसके साथ-साथ लाखों आदमी पंजाब में एक तरफ से
दूसरी तरफ गए और दूसरी तरफ से इस तरफ ले आए गए। अभी तक यह काम पूरा नहीं
हो पाया, लेकिन करीब-करीब पूरा कर लिया है। समय आया है कि इस काम में
कितनी-कितनी मुसीबतें आईं हैं, उनका बयान मैं आपके सामने करूँ। अगर मैं सब
बातें विस्तार से बताऊँ तो आपकी आंखों में आँसू आ जाएँगे। एक लम्बा-सा,
साठ साठ मील का लम्बा, पैदल चलता जलूस एक तरफ से दूसरी तरफ के लिए चला, तो
दूसरा उस तरफ से इस तरफ के लिए। दस-दस लाख आदमी एक साथ, जिनमें लाखों
बच्चे और औरतें थीं, एक तरफ से दूसरी तरफ गए या आए। जो मर गए, सो मर गए।
जो जिन्दा थे, वे गाड़ी, बैल, भैंस सभी कुछ लेकर चलते चलते निकले। रास्ते
में किस तरफ से मार पड़ेगी, इसका कोई ख्याल नहीं था। साथ में थोड़ी-सी पुलिस
या थोड़ी-सी फौज ही होती थी। ऊपर से मूसलधार पानी पड़ता है, नीचे भी
पानी-ही-पानी भरा है। बच्चों और औरतों तक के पास का कपड़ा नहीं है, खाने का
इन्तजाम नहीं है, लकड़ी तक नहीं है। दो-दो महीनों तक इस तरह से लोग चलते ही
रहे। तभी लोगों में कालरा की बीमारी हुई और सैकड़ों हजारों लोग मरने लगे।
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