हमने हिन्दुस्तान का टुकड़ा
किया जाना कबूल कर लिया। कई लोग कहते हैं कि हमने ऐसा क्यों किया और यह
गलती थी। मैं अभी तक नहीं मानता हूँ कि हमने कोई गलती की और मैं यह भी
मानता हूँ कि यदि हमने हिन्दुस्तान का टुकड़ा करना मंजूर नहीं किया होता,
तो आज जो हालत है, उससे भी बहुत बुरी हालत होनेवाली थी और हिन्दुस्तान के
दो टुकड़े नहीं, बल्कि अनेक टुकड़े हो जानेवाले थे। इस बात की गहराई में मैं
आपको नहीं ले जाना चाहता हूँ, लेकिन यह बात मैं अनुभव के आधार पर बताना
चाहता हूँ। मेरे सामने वह सारा चित्र है कि हम किस तरह एक साल गवर्नमेंट
चला पाए थे और यदि हमने यह चीज़ कबूल न की होती, तो क्या होता। परन्तु यदि
यह सारा बयान मैं आपको दूं, तो बहुत समय चला जाएगा। इसलिए मैं नहीं दूंगा।
लेकिन आप इतना विश्वास रखें कि जब मैंने और मेरे भाई पं. नेहरू ने यह कबूल
किया कि अच्छा ठीक है, यदि टुकड़ा जरूर करना है और इसके बिना मुसलमान नहीं
मानते, तो हम इसके लिए भी तैयार हैं। क्योंकि जब तक हम परदेशियों को न हटा
दें, विदेशी हुकूमत न हटा दें, तब तक दिन-प्रति-दिन ऐसी हालत होती जाती थी
कि हमें साफ तौर से दिखाई दिया कि हमारे हाथ में हिन्दुस्तान का भविष्य
नहीं रहेगा और परिस्थिति काबू से बाहर चली जाएगी। इसलिए हमने सोचा कि अभी
तो दो टुकड़े करने से काम ठीक हो जाता है, तो वैसा ही कर लो। हमने मान लिया
कि ठीक है, अपना अलग घर लेकर अगर यह अपना भाई शान्त हो जाता है और अपना घर
सँभाल लेता है, तो हम अपना घर सँभाल लेंगे। लेकिन हमने यह बात इसी उमीद से
मानी थी कि हम शान्ति से अपना काम करेंगे। उसमें हमारी गलती हुई। टुकड़ा
करने में हमारी गलती हुई, यह मैं नहीं कहता, लेकिन गलती इसमें हुई कि न
करने का काम टुकड़ा करने के बाद हम लोगों ने किया। हमने किया, उसका मतलब यह
है कि हमारे सब लोगों ने किया और ऐसी बुरी तरह से कि हम गिर गए। आजादी के
बाद दुनिया में हमारी इज्जत बढ़ी थी और १५ अगस्त के बाद दुनिया में हमारी
एक जगह बन गई थी। उस से हम गिर गए और बहुत नीचे गिरे। और देशों के लोग यह
शक करने लगे कि हम लोग हुकूमत करने के लायक भी हैं या नहीं। कई लोग ऐसा
खयाल भी करने लगे कि यह आजादी चलनेवाली चीज नहीं है। यह आजादी तो हमने ले
ली, लेकिन महीना, दो महीना या तीन महीनों में यह खतम हो जाएगी। कई परदेशी
लोग मानने लगे कि हम तो भाई, पहले से ही कहते थे कि क्यों इनको आजादी देते
हो। आजादी को ये हजम नहीं कर सकेंगे। कई अँगरेज लोग ऐसे भी थे, जो समझते
थे कि जब हिन्दुस्तान का किनारा छोड़कर जाएँगे, तो बम्बई की बन्दरगाह पर
लोग आएँगे और कहेंगे कि तुम इस देश से मत जाओ और इधर ही रहो। वे मानते थे
कि हम अपना राज नहीं चला सकेंगे। अब वहाँ तक तो हम नहीं गिरे और हमने एक
तरह से तो हिन्दुस्तान को ठीक कर लिया।
जब पंजाब का टुकड़ा हुआ और
बंगाल का टुकड़ा हुआ, तो बंगाल में तो गान्धी जी बैठे थे, सो उन्होंने वहाँ
की हालत को सँभाल लिया। उम्मीद से भी कहीं अधिक अच्छी तरह सँभाल लिया।
उससे दुनिया पर बहुत असर पड़ा। हम पर भी असर पड़ा। मुल्क पर भी असर पड़ा।
लेकिन पंजाब में जो हुआ, वह बहुत ही बुरा हुआ। पंजाब और उत्तर पश्चिम के
सरहदी प्रान्त में। इन दोनों प्रान्तों में जो ख्वारी हुईं, जो अत्याचार
हुआ, वह इस प्रकार का हुआ कि जिसका बयान करने से हृदय फट जाता है। तो यह
सब जो हुआ, उसकी चोट हम लोगों को बहुत लगी। और एक जिन्दा आदमी के सर पर जब
घाव पड़ता है या जख्म लगता है, तब उसमें से खून निकलता है और जख्मी को
बेहोशी आ जाती है। वह चक्कर खाकर गिर जाता है। इस तरह से हिन्दुस्तान का
भी हाल हो गया। पंजाब तो हिन्दोस्तान का सिर ही है। हिन्दोस्तान के सिर पर
घाव पड़ा और उसमें से बहुत खून बहा। इस तरह खून निकलने से हमारा देश गिर
पड़ा, तो उसको सब तरह से उठाने की हमने पूरी कोशिश की। इस कोशिश में हम
बहुत दूर तक कामयाब भी हुए। और जो हिन्दुस्तान बाकी रहा है, उसको एक तरह
से हमने संगठित कर लिया वह होश में आ गया और सावधान हो गया। लेकिन यह सब
जो हुआ है, वह पूरी समझ और रजामन्दी से नहीं हुआ है। वह पुलिस की बन्दूक
से, मिलिटरी की बन्दूक से और फौज के डंडों से हुआ है। वह दिल से नहीं हुआ
है तो उसकी चोट गान्धी जी को लगी है।
...Prev | Next...