दूसरा एक काम हमें यह करना है
कि कांग्रेस में काम करनेवाले जो लोग हैं, उनमें से कुछ हुकूमत में आ गए
हैं, सत्ता में आ गए हैं, और उनके दिल में यह ख्याल आ गया है कि अब हम तो
हुकूमत और सत्ता से ही सब काम कर सकते हैं, वह नहीं हो सकता। यदि कांग्रेस
में काम करनेवाले लोग ठीक तरह से काम करें, तो आर० एस० एस० वाले आजकल जिस
तरह काम कर रहे हैं, उस तरह से नहीं करेंगे। कांग्रेस वालों का काम है कि
उनके साथ मिलें, उन्हें मुहब्बत से समझाएँ और उन्हें गलत रास्ते से ठीक
रास्ते पर लाएँ। डंडे से यह काम नहीं होगा, क्योंकि जब हम हुकूमत से काम
करना शुरू करें, तो उससे और खराबियाँ पैदा होती हैं। डंडा तो चोर डाकू के
लिए है, जो फिसाद करनेवाले, गुनाह करनेवाले हैं, उनके लिए है। अगर आप कहें
कि आर० एस० एस० वाले भी गुनाह करते हैं, तो मैं कबूल करूंगा कि वे गुनाह
करते हैं। लेकिन इस गुनाह के पीछे उनका स्वार्थ नहीं है। तो उनके दिल में
जो भाव है, वह ठीक भाव है। अगर हम उसको ठीक रास्ते पर ले जा सकते हैं, तो
क्यों न ले जाएँ? तो वह काम हमें करना है।
दूसरी बात यह है कि यदि हमें
आर्मी ठीक रखनी हो, फौज को अच्छा और मजबूत बनाना हो, तो आज के ज़माने में
उसके लिए जो सामान हमें चाहिए, वह हमें रखना होगा। आज हमें बड़ी फौज रखनी
हो, तो उसके लिए बड़ी-बड़ी इन्डस्ट्री चाहिए और ऐसा काम करना चाहिए कि
हिन्दुस्तान में उद्योग दुबारा बन चले। इन्डस्ट्री के बिना फौज नहीं
चलेगी। तो इस इन्डस्ट्री के लिए हमें क्या काम करना चाहिए? इन्डस्ट्री में
भी हमारी दिक्कतें हैं और हम फँसे हैं। चन्द लोग, जो मजदूरों में काम करते
हैं, यह समझते हैं कि अगर उनकी लीडरशिप रखनी हो तो उन्हें मजदूरों से
बार-बार हड़ताल करानी है और ज्यादा-से-ज्यादा डिमांड (मांग) करानी है। माँग
पूरी न हो तो हड़ताल कराओ, किसी-न-किसी बहाने से हड़ताल कराओ। हमारी
इन्डस्ट्री को यह एक रोग लगा है। यदि आपको मजदूरों की सच्ची लीडरशिप
चाहिए, तो जो चीज़ मजदूरों को नापसन्द हो, वह चीज़ उनसे कराने की ताकत अपने
में लाओ, तब तो आप लीडर हुए। खाली फोकट लीडरशिप में कोई दम नहीं है।
मजदूरों के इन्टेरेस्ट में सच्ची बात क्या है? इनके हित में सच्ची चीज़
क्या है? सब से पहले यही उन्हें सिखाना चाहिए।
लेकिन मैं तो उस बहस में भी
नहीं पड़ता हूँ। मैं तो इतना ही कहता हूँ आज हमारी हालत ऐसी है कि हमें
हिन्दुस्तान की रक्षा करनी है, हिन्दुस्तान को उठाना है, उसे मजबूत बनाना
है, और इसके लिए आप हमें एक मौका दीजिए। एक ट्रूस कर लो कि अभी चार पांच
साल तक हमें काम करने दोगे। नहीं, तो दूसरा काम करो। यदि आपको यही लगता है
कि आप यह काम नहीं कर सकते हैं, तो मेहरबानी करके आप बोझ उठा लीजिए।
चार-पांच साल हम आपके पीछे नहीं लगेंगे, हम आपका साथ देंगे, मदद करेंगे।
लेकिन आप यह क्या कर रहे हो? जब परदेसी हुकूमत थी, तब तो हम समझ सकते थे।
लेकिन अब यह हमारी खुद की हुकूमत है, आपकी अपनी सरकार है। यदि कुछ समझाना
हो, तो हमको समझाओ, लेकिन बार-बार इस तरह झगड़ा करने से क्या फायदा? आज यह
ट्रेड यूनियन कांग्रेस, मजदूरों की संस्था, कम्युनिस्टों के हाथ में पड़ी
है। हमने देखा कि जब तक यह संस्था इन लोगों के हाथ में है, तब तक कोई काम
नहीं होगा। क्योंकि यह तो बार-बार स्ट्राइक (हड़ताल) के सिवाय दूसरी बात ही
नहीं करते हैं। और हड़ताल भी कैसे? उसमें वाइलेंस (हिंसा) करते हैं।
मैनेजरों को मारना, आफीसरों को पीटना और लोगों को मारना। अगर मजदूर हड़ताल
में शरीक न हो तो उसके भी मारना। उनका एक ही पेशा है कि किसी-न-किसी तरह
अनरेस्ट (अशान्ति) पैदा करना। (सरदार पटेल ने यह भाषण 18 जनवरी को दिया
था, सोचने की बात यह है कि चार-पाँच महीनों में ही कम्यनिस्टों ने हड़ताल
और हिंसा आरंभ कर दी?) तब हमने सोचा कि हमें लेबर का अलग संगठन
बनाना चाहिए। तो हमने अलग संगठन बनाने की कोशिश की। ठीक है। अलग संगठन
बनाया, तो हमारा आपस में झगड़ा हुआ कि नहीं भाई, मजदूरों का हड़ताल करने का
जो हक है, वह क्यों छीने लेते हो? तो हमने कहा कि भाई, हम कोई हक छीन नहीं
लेते हैं। उनका यह हक कायम रहा। लेकिन मजदूरों और मालिकों के बीच झगड़ा हो,
तो उसका फैसला पंच से कराओ। चार-पाँच साल तक यह करो, पीछे उनका यह हक कायम
रहेगा, हम उसे नहीं ले लेंगे। लेकिन चार-पाँच साल शान्ति से हमें काम करने
दो।
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