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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


अगर हमें मजबूत फौज बनानी हो, तो उसके साथ हमें फौज का जितना सामान चाहिए; बारूद-गोला, मोटर-ट्रक, लोहा, पेट्रोल, कपड़ा, चीनी और खाना, वह सब हमें चाहिए। जितना सामान चाहिए, वह खूब अच्छा चाहिए। अच्छी रेलवे चाहिए, अच्छा तार चाहिए, अच्छा टेलीफोन चाहिए। अच्छी फौज रखनी हो, तो कौन-सी अच्छी चीज़ नहीं चाहिए? सबसे पहले पूरी फौज चाहिए। फिर उस फौज की हिफाजत करनी चाहिए, उसे सब चीज़ें देनी चाहिए और इस सब के लिए धन चाहिए। अगर यही कहते रहोगे कि कोई पैदा ही न करो, झगड़ा ही करो, तो कौन फौज रक्खी जा सकेगी और किस तरह से हमारा काम चलेगा?

आजादी के पहले चार महीनों में ही हमने इतना काम किया है। अब हम मुल्क को ठीक कर, साफ कर, आगे बढ़ना चाहते हैं। इस काम के लिए दो चीज़ करो। एक तो यह कि जितने मुसलमान इधर पड़े हैं, उनको चैन से रहने दो, उनसे झगड़ा न करो। क्योंकि फिर हमारा चित्त उसमें जाता है। हमारा अटेन्शन (ध्यान) उसमें डाइवर्ट होता (बँट जाता) है। तो उनको चैन से रहने दो। अगर उनमें से किसी की नीयत अच्छी न होगी, तो वह पकड़ा जाएगा। उसमें आपको डर नहीं रखना चाहिए। हम जाग्रत हैं। हम पागल लोग नहीं हैं। हम समझते हैं कि कहीं चूहा पड़ा है, और कही चोर पड़ा है। वह सब हम देखते हैं। तो आपको इस तरह से हमको तंग नहीं करना चाहिए, हमें मजबूर नहीं करना चाहिए। दिल्ली हमारी राजधानी है, उसमें हम राज करते हैं, तो जो चन्द मुसलमान पड़े हैं, जो लोग उन्हें तंग करते हैं, वे हमारी इज्जत पर हाथ डालते हैं। उसका मतलब यह होता है कि हम राज करने के लायक नहीं हैं। राजधानी में जो लोग बाहर से आए हैं, एम्बेसेडर (राजदूत) आदि परदेसी लोग आए हैं, वे सब देखते हैं कि यह राज कैसे चलेगा? तो इस तरह से हमें नहीं करना चाहिए। मैं आप से कहना चाहता हूँ कि हमारी प्रेस्टिज (रोब) हमारी इज्जत कुछ बढ़ने लगी है, उसमें किसी को ठोकर नहीं लगानी चाहिए। उससे आपको नुकसान ही होगा, कोई फायदा नहीं होगा। तो हिन्दुस्तान में जो मुसलमान पड़े हैं, उनको रहने दो और जो मजदूर लोग हैं, उन्हें काम करने दो। हां, आप कहते हैं कि मजदूरों को पैसा मिले, उनकी जितनी जरूरतें हैं, वे पूरी पड़नी चाहिए, तो इस काम में मेरा आपको पूरा साथ मिलेगा।

मजदूरों को जो इन्साफ से मिलना चाहिए, वह उन्हें जरूर मिलना चाहिए। एक हफ्ता पहले हमारे वहां सेन्ट्रल गवर्नमेंट (केन्द्रीय सरकार) ने दिल्ली में एक कान्फ्रेन्स बुलाई थी। हमारे इन्डस्ट्री के मिनिस्टर डा० श्यामाप्रसाद मुकरजी ने इस कान्फेरन्स में हिन्दुस्तान के सब उद्योगपतियों को बुलाया था और लेबर में काम करनेवाले सब लोगों को भी बुलाया था। सब ने मिलकर गवर्नमेंट के साथ एक फैसला किया कि तीन साल का एक ट्रूस (सन्धि) करो कि तीन साल तक किसी को स्ट्राइक (हड़ताल) नहीं करनी है। इन तीन सालों में मजदूरों को किस तरह से देना होगा, उसका फैसला करने का एक मशीनरी बनाई गई। उसे सब कैपिटलिस्टों ने मान लिया और लेबर के जितने प्रतिनिधि थे, उन्होंने भी कबूल कर लिया। लेकिन जब इधर से वे बम्बई चले गए, तो वहां जाकर एक रेजोलूशन (प्रस्ताव) पास किया कि यह जो बम्बई में गवर्नमेंट की तरफ से लेबर का काम चलता है, वह अच्छा नहीं चलता, इसलिए एक रोज की हड़ताल करो। उन्होंने कहा कि सारे बम्बई शहर में एक रोज की हड़ताल करो और उसमें सब गवर्नमेंट सर्वेण्ट्स (सरकारी नौकर) भी शरीक हो जाओ। इस तरह से दूसरे ही दिन उन्होंने यह काम किया। मैं कल कलकत्ता में था। तो वहाँ भी कल उन्होंने स्ट्राइक कराने की काफी कोशिश की। वहां से मुझको बुलाया गया कि वहां इस तरह स्ट्राइक होनेवाली है। तो मैं दो दिन पहले वहां चला गया और तीन तारीख को मैंने कलकत्ता में एक मीटिंग की, जो बहुत बड़े पैमाने पर हुई। कोई बारह लाख आदमी वहां जमा हो गए। तो मैंने इन लोगों को समझाया कि यदि हम इसी रास्ते पर चलेंगे, तो हमारा हिन्दुस्तान तबाह हो जाएगा। इसमें न मुसलमान बचेंगे, न लेवर बचेगी, न कैपीटल बचेगी न कोई और बचेगा। यह हड़ताल करने की जरूरत क्या है? मुझे बताओ तो? जब यह पूछा, तो उसमें कोई बात नहीं निकली।

आज हिन्दोस्तान में जो अशान्ति है, उसे दृष्टि में रखकर हमारी गवर्नमेट एक कानून बनाना चाहती थी, जिस से गुनाह करनेवाले लोगों को ठीक रास्ते पर ले आया जाए, उनके ऊपर कुछ काबू पाया जाए। मुझे ताज्जुब होता है कि हमारे अपने लोग स्ट्राइक करवा रहे हैं। तो मैं आप लोगों से, जितने लेबर में काम करनेवाले हैं, उन सब से मैं अदब से कहता हूँ कि हिन्दुस्तान को तो अभी आजादी मिली है। हम दो-चार साल हिन्दुस्तान में कुछ इन्डस्ट्री बना लें, कुछ उद्योग पैदा करें, तभी तो मजदूरों के लिए कुछ धन पैदा हो सकेगा और उन्हें हिस्सा मिल सकेगा। जहाँ होगा, वहाँ ही से तो कुछ लिया जा सकेगा। लेकिन जो शून्य है, उसका क्या हिस्सा होगा? कोई चीज होगी ही नहीं, तो क्या बाँटेंगे? तो कुछ पैदा तो करो!

हिन्दुस्तान में आज कोई भी चीज़ नहीं बनती। न अनाज पूरा मिलता है, न कपड़ा पूरा मिलता है, और न जिन्दगी की जरूरियात की और मिलती हैं। बाहर से लाने की कोशिश करते हैं, तो उसमें और मुसीबत आती है। तो आप लोगों को यह समझना चाहिए कि यह रास्ता गलत है। इस रास्ते पर जाने से फायदा नहीं है। हमारा यूनाइटेड प्रोविन्स (उत्तर प्रदेश) सब से बड़ा प्रान्त है। उसमें पन्त जी हमारे प्रधान मन्त्री हैं और सरोजनी देवी गवर्नर हैं। अब देशभर में जितने प्रधान हैं, सब हमारे अपने हैं। अब अँग्रेज की शक्ल भी दिखाई नहीं देती। कोई परदेसी अब नहीं है। पुलिस हमारी है, मिलिटरी हमारी है, फौज हमारी है। अब हमारे रास्ते में क्या रुकावट है, जो बीच में आती है? हिन्दुस्तान के उठाने में असल में अब कोई रुकावट है, तो खाली वह हमारी अपनी बेवकूफी है।

बहुत सालों के बाद हमारी गुलामी गई है, और अब मौका आया है कि हम उसका उपयोग करें। यदि हम उसका सच्चा उपयोग करेंगे, तो दुनिया में हमारी इज्जत बढ़ेगी। तभी दुनिया में हम और मुल्कों के साथ आगे की जगह ले सकते हैं। कल बर्मा स्वतन्त्र हो गया, परसों दूसरा होगा। सारा एशिया खण्ड स्वतन्त्र होगा। लेकिन इस सब का आधार हिन्दुस्तान के ऊपर है। यदि एशिया की नेतागीरी (लीडरशिप) किसी के पास चाहिए तो वह हिन्दुस्तान को लेनी चाहिए। वह लेनी हो, तो हमें उसके लिए ठीक ढंग से काम करना होगा। आज तक तो हम एक ही रास्ते पर गए कि हाँ कानून तोड़ो, जेल में जाओ। उसी रास्ते पर हमने काम किया। पर आज भी उसी रास्ते पर चले जाओ, तो वह तो खुदकशी होगी। क्योंकि वह सब तो परदेसियों के साथ लड़ने के लिए था, उनको यहाँ से हटाने के लिए था। तब वह रास्ता ठीक था। लेकिन आज वह रास्ता काम का नहीं है। तो अपनी सरकार के सामने भी वही रास्ता, वही हथियार लिया जाए, यह मूर्ख लोगों का काम है। उसमें कोई फायदा नहीं है। तो मैंने आपको समझाने की जो कोशिश की, वह यही है कि अब ऐसा मौका फिर नहीं आएगा। अगर हम इसे गंवा देंगे, तो बेवकूफ बनेंगे।

मैंने आपका कुछ समय तो लिया, लेकिन मेरे दिल में जो बात थी, वह मैंने आपके सामने रख दी है। मैं कोई चीज छिपाना नहीं जानता हूँ और साफ साफ बात कहता हूँ। चाहे हिन्दू हो, चाहे मुसलमान हो, चाहे सिक्ख हो, सब के सामने मैं साफ बात कहने वाला आदमी हूँ। नौजवानों को बुरा लगे, आर० एस० एस० वालों को बुरा लगे, लेकिन मेरे दिल में सबके लिए मुहब्बत है। मैं सबको यह समझाने की कोशिश करता हूँ कि ऐसा मौका फिर नहीं आएगा। अगर इस वख्त हम साथ मिलकर कुछ काम कर सकेंगे तो उस से हिन्दुस्तान का भला होगा, हमारा भला होगा। मैं उम्मीद करता हूँ कि यह सब जिस भाव से मैंने कहा है, उसी भाव से आप उसे स्वीकार करेंगे। जिस प्रेम से आप लोगों ने मेरा स्वागत किया है और जिस शान्ति से मेरी बात सुनी है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। जय हिन्द!

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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