तो इस हालत में हमें अब आगे
क्या करना है? चार महीना तो हमने डटकर काम किया, अब हमें क्या करना है? अब
मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हमें हिन्दुस्तान को उठाना है। हिन्दुस्तान दो
सौ साल से गिरा पड़ा रहा। उसके पहले भी वह गिरा था। अपने इस हिन्दुस्तान को
हमें उठाना है। तो इस काम में हमें समझ से काम लेना पड़ेगा। हमें सोचना
चाहिए कि हमें क्या चीज़ें चाहिएँ। एक तो हमारे पास मजबूत फौज चाहिए, हमें
कमजोर आर्मी नहीं चाहिए। दूसरा हमें अपनी सेन्ट्रल गवर्नमेंट (केन्द्रीय
सरकार) को मजबूत बनाना चाहिए। आर्मी की तीन शाखाएँ हैं, हवाई फौज, समुद्र
की फौज, और जमीन की फौज। वह सब मजबूत होनी चाहिए। क्योंकि यदि हमारा और
पाकिस्तान का जिस तरह से काम चलता है, इसी तरह से चलता रहा, तो कभी-न-कभी
खतरा है। यह बात छिपाना बेवकूफी का काम है। कम-से-कम मैं नहीं छिपाता। हम
चाहते तो हैं मुहब्बत। लेकिन हम अपनी आँख में किसी को धूल फेंकने नही
देंगे। तो हमारे आर० एस० एस० वाले जो नौजवान भाई हैं, जो गाँवों में घूमते
रहते हैं और बहुत-सी बातें करते हैं, वे लोग अगर गलत रास्ते पर चलते हों,
तो उनको ठीक रास्ते पर लाना हमारा काम है। हमें उनको समझाना चाहिए कि उनका
तरीका गलत है। यह काम आर्डिनेन्स से नहीं हो सकता, उससे तो वे उल्टे तरीके
पर चलेंगे। इसलिए मैं उसके साथ कुछ-न-कुछ खामोशी से काम लेता हूँ। हाँ,
अगर वे अपनी मर्यादा छोड़ देंगे तो फिर हमें लाचारी से सख्ती करनी पड़ेगी।
लेकिन हमारे जिन नौजवानों पर हिन्दुस्तान का बोझ पड़ना है, उन्हें क्या यह
शोभा देगा कि वे हमें इतना मजबूर बना दें? तो उन लोगों से मैं अदब से कहना
चाहता हूं कि वे इस तरह से काम न करें।
आप अब देख लीजिए कि हमने
सेन्ट्रल गवर्नमेंट बनाई, तो वह भी ऐसी गवर्नमेंट नहीं बनाई, जो सिर्फ
कांग्रेस की गवर्नमेंट हो। ठीक है, कांग्रेस के पास सत्ता तो है, लेकिन हम
सत्ता का उपयोग इस तरह से नहीं करते कि सिर्फ अपनी ही चलाएँ। हमारी
गवर्नमेंट में आप देखिए कि जो हमारा फाइनान्स मिनिस्टर (अर्थ-सचिव) है, वह
एक कैपिटलिस्ट है। वह कभी कांग्रेस में नहीं था, कभी-कभी वह कांग्रेस के
खिलाफ भी पड़ा। इसी तरह, देखिए डाक्टर श्यामा प्रसाद मुकर्जी हैं, वह
हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि हैं। हम उनको काफी छूट देते हैं। वह कुछ भी
बोलें, उन्हें बोलने देते हैं। हमारे कई लोग कहते हैं कि डा० श्यामाप्रसाद
मुकर्जी कांग्रेस गवर्नमेंट में बैठकर ऐसी बातें क्यों करते हैं, तो हम
कहते हैं कि उन्हें बोलने दो। उससे क्या होता है? खाली बोलने से कोई बात
थोड़े ही होती है? यदि हमारा काम ठीक और साफ होगा तो लोग हमारे पीछे चले
आनेवाले हैं। मैं तो हिन्दू महा-सभावालों से भी कहता हूँ कि बाहर रहकर
क्या करोगे? आओ, कांग्रेस में चले आओ। जो कुछ करना हो, हमारे साथ बैठकर
बात करो। यह क्यों मानते हो कि अलग रहने से ठीक काम होगा? तो हिन्दू
महासभा को मैं बार-बार सलाह देता हूँ कि अलग रहने से आप तो अस्पृश्य हो
गए, हरिजन जैसे आप हो गए! एक अलग टुकड़ा बनाकर आपको अलग नहीं बैठना चाहिए,
बल्कि भीतर आ जाना चाहिए। अलग बैठने से आपकी ताकत नहीं बढ़ेगी। आप ऐसा
क्यों गुमान रखते हैं कि आप ही करोड़ों हिन्दुओ को ठीक रखेगे। इस तरह से तो
हिन्दू-धर्म छोटा हो जाएगा, बहुत संकुचित हो जाएगा। हिन्दू धर्म में तो
काफी उदारता पड़ी है, काफी टॉलरेन्स (सहिष्णुता) पड़ी है। तो आपको इस तरह
से नहीं करना चाहिए। तो देखो, कांग्रेस ने उनको भी सरकार में रखा। हमारे
डा० जान मथाई क्रिश्चियन हैं। वह टाटा के यहाँ थे। लेकिन उनमें ताकत थी,
वह काबिल थे, तो हमने उनको भी ले लिया। एक पारसी ग्रहस्थ हैं, वह भी कभी
कांग्रेस में नहीं थे, वह भी आए। सरदार बलदेव सिंह हैं, वह सिक्खों के
प्रतिनिधि हैं, वह अकाली दल के थे, और इन्डस्ट्रियलिस्ट भी हैं। तो इतने
लोगों को तो हमने अपनी कैबिनेट के भीतर लिया। तो हम इस तरह से काम नहीं
करते। आप लोग ऐसा न समझें कि कांग्रेस कोई एक जमात बनाकर या कोई अपना बाड़ा
बनाकर काम करना चाहती है। कांग्रेस का इस तरह का कोई मकसद नहीं है। लेकिन
कांग्रेस का धर्म यह हो जाता है कि हिन्दुस्तान भर में जितने लोग रहते
हैं, वे सब यह महसूस करें कि वे अपने राज में पड़े हैं, अपनी हुकूमत में
पड़े हैं। उन सब की पूरी सिक्योरिटी देनी चाहिए। उनकी सलामती, उनके रक्षण
की जिम्मेदारी अगर कांग्रेस न ले सके तो वह राज नहीं चला सकेगी। तो, जितने
नौजवान भाई इस रास्ते पर चलते हैं, उनसे मेरी बड़ी अदब के साथ अपील है कि
आप हम पर भरोसा करें। हम जिस रास्ते पर आपको ले जाना चाहते हैं, उस रास्ते
पर आप चले तो राज आपके अपने हाथों में आनेवाला है। हमको राज से क्या करना
है? इस हुकूमत को हम क्या करेंगे? आपको यह भार उठाना है, तो आप इसके लिए
तैयार हो जाइए। आपके और कांग्रेस के बीच झगड़ा क्यों है? आप कांग्रेस में
चले जाइए।
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