इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
पाकिस्तान के अलावा एक अन्य
टुकड़ा भी होनेवाला था, जो उस से भी बुरा था, और वह था राजस्थान। तो
राजस्थान में बहुत लोग गड़बड़ चला रहे थे, उनकी चलती तो देश में बहुत-से
टुकड़े पड़ जानेवाले थे। लेकिन मुझे आप लोगों के सामने यह कहने में बहुत
खुशी होती है कि हमारे देश में जो राजा थे, उन लोगों में बहुत-से समझदार
लोग थे। उनमें से बहुतों में अपने देश के लिए बड़ा प्रेम है। आप यह न समझें
कि राजा लोग बड़े स्वार्थी और घमंडी लोग हैं। आप यह भी न समझें कि उनके पास
धन का और सत्ता का मद है और कोई स्वदेशप्रेम नहीं है। मैंने बहुत से
राजाओं के साथ बातें कीं और हमारे और उनके बीच में जो पर्दा था, वह टूट
गया।
आपने देखा कि एक हफ्ता पहले
मैं उड़ीसा में गया था। वहाँ मध्य प्रान्त की ४० रियासतें थीं। उन सब
रियासतों के ४० राजाओं ने दस्तखत दे दिया है कि आप हमारा राज ले लीजिए और
आप ही सारा प्रबन्ध कीजिए। पहले किसी को ख्याल भी नहीं था कि ऐसा हो सकता
है। लेकिन हो गया। अब कई राजा परेशानी में पड़े हैं कि क्या हमारा भी यही
हाल होगा। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि हमारी नीयत ऐसी नहीं है कि हम किसी
को खत्म कर दें। लेकिन जहाँ राजा और प्रजा एक विचार के हो गए और मान गए कि
हमारे बीच में यह अच्छी चीज है, हम सब की सलामती इसी में है, तो हमें
मानना पड़ता है। तो ४० रियासतों ने मेरी बात मान ली। राजा और रैयत दोनों ने
मिलकर यह सब कुछ किया। जिन राजाओं के दिल में शक है, मैं विश्वास दिलाता
हूँ कि आपको हमारे ऊपर अन्देशा करने की जरूरत नहीं है। यदि अब भी इसमें से
कोई राजा हटना चाहता है, तो मैं उसे छोड़ने के लिए तैयार हूँ। लेकिन तब उन
पर जो खतरा आ सकता है, उसकी जिम्मेदारी उनको खुद लेनी होगी। उनको समझना
चाहिए कि आज तो उन्हें अपनी रैयत को अपने साथ रखना होगा। जो राजा रैयत के
साथ नहीं रहेगा, उसकी हस्ती जोखिम में रहेगी। रैयत को अपने साथ रखने की
कोशिश करनी चाहिए। राजा लोग इसे समझते हैं। किसी के दिल में अगर कोई शंका
है, तो उसे निकाल देना चाहिए।
तो अब हमारा जो इतना बडा संगठन
बना है, उसका हमें क्या करना चाहिए? हमने 15 अगस्त को सत्ता अपने
हाथ में ली। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, सिर्फ ४ महीने हुए हैं। ४ महीने
में हमने क्या किया? जो कुछ हमने किया, उसकी फेहरिस्त बताऊँ, तो आप
ताज्जुब में पड़ जाएँगे, कि इस टूटी हुई सरकार ने क्या कुछ किया। बहुत-से
लोग इसे नहीं समझते है और कहते हैं कि अभी तक सभी कुछ पुराने ढंग से चलता
है। अभी तक वही पुराना राज है, कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन वे देखते नहीं
हैं कि आजादी के साथ मुल्क का दो टुकड़ा हुआ। यह छोटी बात नहीं है, बहुत
बडी बात है। दो बड़े प्रान्त थे बंगाल और पंजाब, उनका भी टुकड़ा किया गया।
यह भी बड़ी बात है। फिर सरहद को ठीक करना भी खतरे की बात थी। भली-बुरी वह
भी हमने कर ली।
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- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950