इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
मैं देखता हूँ कि कई नौजवानों
में लश्करी (लड़ाई) की तालीम लेने की ख्वाहिश है। यह बहुत अच्छी बात है।
लश्करी तालीम लेना, वह आज की हालत में, मैं जरूरत की चीज भी समझता हूँ।
यदि हिन्दुस्तान गान्धी जी के रास्ते पर चला होता, (जैसा कि हमें उम्मीद
थी और हमारी ख्वाहिश भी थी कि हम उस रास्ते पर चले) तो दूसरी बात थी।
लेकिन हम उस रास्ते पर चल नहीं सके। अब अगर उनके रास्ते पर भी न चलें और
दुनिया के रास्ते पर भी न चलें, तो हम खड्ड में गिर जाएँगे। इसलिए हमें एक
रास्ता पकड़ लेना है। तो आज हिन्दुस्तान की और दुनिया की हालत ऐसी है कि
हमें पुलीस और मिलिटरी के ऊपर भरोसा करना पड़ता है। इस हालत में हमारी
पुलीस और हमारी मिलिटरी पक्की होनी चाहिए और हमारे नौजवानों को उसकी तालीम
मिलनी चाहिए। उसके लिए हम सोच रहे हैं कि हमें क्या करना है। उसमें आपको
भी पूरा मौका मिलेगा। लेकिन यह चाकू या लाठी की लड़ाई छोड़ दो और किसी की
पीठ में खंजर मारना भी छोड़ दो। उससे कोई फायदा नहीं है। उससे न हमारा
चारित्र्य बढ़ता है, और न हमारी इज्जत बढ़ती है। बल्कि उस से हम गिर जाते
हैं। लेकिन अगर हमें लड़ना ही पड़े, तो उसके लिए हमें लड़ाई का मौका देखना
होगा और लड़ाई का तरीका ठीक तरह से पसन्द करके लड़ाई की सामग्री बनानी होगी।
आज के हालात में मैंने यह सोचा
कि जब पाकिस्तान का ढंग इस प्रकार का चल रहा है, तो हमें क्या करना है।
मैं अपने नौजवानों को बड़े अदब से कहना चाहता हूँ कि अब जितना हिन्दुस्तान
हमारे पास है, उसे सौ फीसदी एक बनाओ। पहले भी हमने परदेसियों के पास
हिन्दुस्तान को क्यों गुमाया था? हमारे मुल्क पर और लोगों का राज्य क्यों
हुआ था? हमारी बेवकूफी से हुआ था। ऐसी बेवकूफी अब फिर न हो, वह हमें देखना
है। तो हमारे नौजवान आज जो काम कर रहे हैं, उसमें मैं कई बेवकूफियाँ देखता
हूँ। जो हिन्दुस्तान बाकी बच रहा है, इसको हमें अगर एक गठरी में बाँधना
हो, पूरी तरह संगठित करना हो, तो हमें उसमें अलग-अलग गिरह-गाँठें नहीं
बनानी चाहिए। हमें सबको एक करना है। अब यहाँ अलग-अलग सम्प्रदाय का काम
नहीं है। देश में जितनी रियासतें हैं, उनको भी हमें एक कर देना चाहिए। तो
मेरी कोशिश तो सदा यही रही। पाकिस्तान बननेवाला था, सो बन गया, उसे अगर
हमने नहीं बनाया तो कम-से-कम बनने तो दिया। तो उसमें हमें झगड़ा नहीं करना
चाहिए। जो हिन्दोस्तान अब है, वह हमें ठीक करना चाहिए।
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- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950