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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


अगर हम इस तरह से गाफिल रहेंगे, तो हम भी मार खाएँगे। हम कहते हैं कि हमारे यहां जो चार करोड़ मुसलमान पड़े हैं, उसके हम ट्रस्टी हैं। तो मैं हिन्दू भाइयों से, जो हमारे आर एस० एस० वाले नौजवान भाई हैं, उनसे भी कहना चाहता हूँ कि आप लोग कुछ दिमाग से काम लीजिए, अक्ल से काम लीजिए और समझ से काम लीजिए, जिससे हमारा भी काम हो जाए और दुनिया में हमारी बदनामी भी न हो, इस तरह से हमें काम करना चाहिए। यदि आपको लड़ाई की ख्वाहिश हो, और आपको लड़ना ही हो तो उसके लिए लड़ाई का मैदान पसन्द करना चाहिए, लड़ाई का मौका पसन्द करना चाहिए और लड़ाई का सामान पूरा करना चाहिए। बेमौके से जो काम करता है, जो बेवकूफी से काम करता है, वह अपना सारा काम गँवा देता है। तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि जो चार करोड़ मुसलमान इधर पड़े हैं, उनके साथ छेड़खानी कभी न करो। जितनी छेड़खानी आप करेंगे, उतना ही हमारे ऊपर बोझ पड़ता जाएगा, क्योंकि एक तो उसके लिए हमें ज्यादा पुलीस रखनी पड़ती है। हमारे सँभालने की चीज़ तो वहाँ पड़ी है, इधर क्यों सँभालते हो? इनको इधर आराम से रहने दो। जिनके दिल में पूरी वफादारी नहीं होगी, वे आप ही चले जाएँगे, वे इधर रह ही नहीं सकते। इधर इतनी गरमी होगी कि वह हट जाएगा, इधर रहेगा ही नहीं। लेकिन अगर आप उनको इस तरह से बार-बार और बुरी तरह से परेशान करते रहोगे, तो जो हमारे साथ हैं, वे भी चले जाएँगे। वह हमारे लिए कभी अच्छा नहीं होगा।
यदि एक भी ऐसे मुसलमान को, जो हिन्दोस्तान के प्रति वफादार नहीं और जिसने हमारी आजादी की लड़ाई में हमारा साथ दिया और हमारे साथ मुहब्बत से रहा है, यहाँ से जाना पड़ेगा, तो उससे बड़ी शर्म की और बात कोई नहीं होगी। यह बहुत ही बुरी बात है। यह चीज़ हमें समझनी चाहिए। लेकिन जितने मुसलमान इधर दो घोड़ों पर सवारी करनेवाले हैं, उनमें से एक-एक को यहां से जाना पड़ेगा, उनमें से कोई इधर रह नहीं सकेगा। तो हमें इस तरह से काम करना है कि हिन्दोस्तान में रहनेवाले मुसलमानों से साफ-साफ कह देना है कि आप कहते हैं कि हम वफादार हैं, तो जबान से कहने भर से काम नहीं चलेगा। लीगवाले बार-बार कहते हैं, पाकिस्तान गवर्नमेंट बार-बार कहती है कि इधर जो माइनोरिटी (अल्पमत) है, हम उसकी रक्षा करने के लिए पूरा इन्तजाम करेंगे। लेकिन जो लोग वहाँ रहते हैं, उनसे आप पूछिए कि वे कैसा इन्तजाम करते हैं।
आज सिन्ध में रहनेवाले हिन्दू हमारे पास चिट्ठी लिखते हैं कि वे बहुत दुखी हैं। दो महीना हो गया, मैंने बम्बई से कुछ जहाज भेजने का बन्दोबस्त भी किया था और कहा था कि इधर चले आओ। उस समय पर उन लोगों में आपस में कुछ फूट हुई, कुछ हमारे अपने लोग भी कहने लगे कि नहीं, सिन्ध में कोई दिक्कत नहीं है, वहाँ ही रहो। सिन्धी मुसलमान भी यही चाहते हैं। ठीक बात है। लेकिन सिन्धी मुसलमान की खुद वहाँ चलती ही कहा है। वहाँ तो लखनऊ के मुसलमान की या तो पंजाब के मुसलमान की चलेगी, वहाँ सिन्धी मुसलमान की क्या बात चलेगी? तो पाकिस्तान तो इस प्रकार बना है कि उसमें कानून से काम नहीं चलेगा, जिसमें किसी एक सत्ता से काम नहीं चलेगा, वहाँ तो हर आदमी नवाब हो जाएगा और अपनी-अपनी मर्जी से, जैसा दिल में आएगा, वैसा काम चलाएगा। कोई उसे कब्जे में नहीं रख सकता है। आज ऐसी हालत वहाँ शुरू हो गई है। तो वहां से अब हिन्दू लोग लिखते हैं कि उनके लिए वहां रहना एक मुसीबत हो गई है। वे वहाँ से निकलना चाहते हैं, वहां रह नहीं सकते। तो आठ-दस लाख हिन्दुओं को हमें वहां से निकालना है। इधर कई लोग कहते हैं कि इतने ही मुसलमान इधर से निकालो। यह ठीक बात नहीं है। इस रास्ते से हमारा काम नहीं होगा। यदि हमे पाकिस्तान के साथ हिसाब करना है, तो वह इधर के मुसलमानों के साथ नहीं किया जा सकता। यदि हमारे आदमी वहाँ न रह सकें और वहाँ उन्होंने एक कम्युनल (साम्प्रदायिक) राज बना दिया है, तो उन्हें बनाने दो। हम वैसा क्यों करें? उनको लड़ने की ख्वाहिश हो, तो हम तीस करोड़ पड़े हैं। हमारा मुल्क बहुत बड़ा है। हमारी धरती में इतना धन पड़ा है, हमारे पास इतने साधन है। लेकिन अगर हम पागल हो जाएँ तो कोई काम की बात नहीं कर सकेंगे। लेकिन अगर हम ठीक रास्ते पर चले और अपने दिमाग पर काबू रक्खे तो हमारे पास इतना सामान है कि पाकिस्तान की लड़ने की ख्वाहिश भी हो तो भी वह हमारा कुछ न बिगाड़ सकेगा। वह तो अभी बच्चा है। कल ही तो उसका जन्म हुआ है। वह क्या करेगा?

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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