आपको गिराने की हमारी ख्वाहिश
नहीं है। लेकिन बार-बार आपकी तरफ से जो बातें कही जाती हैं, वे मेरी समझ
में नहीं आतीं। जब हम आपस में बैठ कर बात करते हैं, तो कहते हैं कि हाँ
भाई, रेडर्स (आक्रमणकारी) लोग काश्मीर में गए हैं, वे फ्रंटियर से गए हैं।
उनको हम समझाने की कोशिश करते हैं लेकिन वे मानते नहीं हैं। आज तो हम
कितना भी उन्हें कहें, लेकिन वे लोग नहीं मानेंगे। उधर बाहर दुनिया से
कहते हैं कि हम कुछ भी नहीं जानते। हमारा इसमें कुछ भी हिस्सा नहीं है।
हमने कहा कि तुम्हारे घर में से होकर वे उधर चले जाते हैं। तुमने वहां से
उन्हें रास्ता करके क्यों दिया? आप सब सामान उन्हें क्यों देते हो? यह
क्या बात है? तो वह कहते हैं कि तुम हमको कुछ दो, तो हम उनको समझा दें। अब
इस तरह से जो हालत बन गई है, उसके लिए मैं हिन्दुस्तान के मुसलमानों से एक
सवाल पूछना चाहता हूँ। आप लखनऊ में जमा हुए। आपने बहुत बड़ा जलसा किया। ५६
हजार मुसलमान यहां जमा हुए। आप सब लोगों की अगर यह राय है कि पाकिस्तान
काश्मीर में जो कुछ कर रहा है, वह गलत है, तो क्यों आपकी जबान खुलती नहीं
है? आप क्यों बोलते नहीं हो कि यह गलत रास्ता है? जब तक मुसलमान
हिन्दुस्तान में इस तरह से नहीं बोलेंगे, तब तक हमारा काम बिलकुल मुश्किल
हो जाता रहेगा। जितने वहां बुरे काम होते हैं, उनके बारे में यदि
हिन्दुस्तान के मुसलमान नहीं बोलेंगे, खुले दिल से उसे बुरा नहीं कहेंगे,
तो फिर उन्हें यह शिकायत नहीं करनी चाहिए कि उनकी वफादारी की तरफ किसी को
अन्देशा है। तब हम से पूछने की कोई जरूरत नहीं है।
तो मैं आपसे बड़ी अदब से कहना
चाहता हूँ कि मैं मुसलमानों का दोस्त हूं और दोस्त का काम है कि सच्ची बात
कह दे और धोखाबाजी न करे। तो मैं कभी मुसलमानों के साथ गलत बात नहीं
करूँगा। मै साफ-साफ कहना चाहता हूँ कि अब हिन्दुस्तान के मुसलमानों की
वफादारी का वख्त आया है। उनमें से प्रत्येक के दिल में हिन्दोस्तान के लिए
पूरी-पूरी मुहब्बत हो और वह समझे उसे हिन्दुस्तान में ही रहना है। उन्हें
समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान से उनका कल्याण नहीं होनेवाला है। पाकिस्तान
उनकी रक्षा नहीं कर सकता। तब उनका कर्तव्य हो जाता है कि जिस नाव में वे
बैठे हैं उसी नाव का हित सोचें, क्योंकि उन्हें भी उसी नाव से चलना पड़ेगा।
नाव चलाने में उन्हें साथ भी देना पड़ेगा। तो जिस तरह से पाकिस्तान के लोग
कर रहे हैं, उसमें उन्हें ठीक-ठीक, सीधी बात कहनी पडेगी कि यह रास्ता गलत
है। उस रास्ते से जाने में कोई फायदा नहीं है। अब यह कहा जाता है कि
पाकिस्तान! और हिन्दुस्तान में यदि लड़ाई होगी, तब उसमें भी साथ देंगे। अरे
भाई! वहाँ तक तो न जाओ, तो खुली बात तो करो। पीछे हम देखेंगे कि क्या बात
होती है। लड़ाई होगी, तब देखा जाएगा कि कौन किसका भरोसा करता है।
सच्ची बात तो यह है कि दो
घोड़ों पर सवारी नहीं हो सकती, एक घोड़े पर ही सवारी होगी। अपना घोड़ा पसन्द
कर लो। लखनऊ ही के कई लोगों ने अपना घोड़ा पसन्दकर लिया और समझ लिया, दो
घोड़ों की सवारी नहीं चलेगी। कस्टिप्फयूएँट असेम्बली में जब हमारा
कांस्टीच्यूशन बन रहा था, तब वहां लखनऊ मुसलिम लीग के एक लीडर थे, उनसे
मैंने साफ-साफ कह कि आप इधर सेपरेट इलेक्ट्रेट (पृथक् निर्वाचन) और
रिजर्वेशन (सुरक्षित स्थानों) की बातें करते हैं। यही बातें करके आपने
हिन्दुस्तान के टुकड़े कराए। अब जो बाकी हिन्दुस्तान बचा है, उसका भी आपको
टुकड़ा कराना है क्या? यही इरादा हो, तो अब मेहरबानी करके आप पाकिस्तान में
चले जाइए। आप के इधर रहने से कोई फायदा नहीं है। तब वह पाकिस्तान चले गए।
यह ठीक हुआ। अच्छी बात है। अब कौन कहता है कि तुम पीछे लौट आओ। भाई, हम भी
यह नहीं चाहते हैं, कि पाकिस्तान और हिन्दोस्तान अभी जल्दी-जल्दी मिल
जाएँ। यह तो तब कह सकते हैं, जब कि पाकिस्तान का स्वाद खाते-खाते दांत
खट्टा होकर गिर जाएँ, तब आगे की बातें करेंगे। अभी तो आप वहाँ ही बैठो।
लेकिन हमको हमारा काम करने दो।
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