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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


(7)

अपहृता नारियों के लिए अपील

१८ फरवरी, १९४८

देश की हजारों दुखित औरतों के लिए जो जोरदार अपील की जा रही है, उनके पक्ष में मैं भी अपनी ओर से कुछ कहना चाहता हूँ। पिछले दिनों पूर्वी और पश्चिमी पंजाब और सीमाप्रान्त में जो अराजकता फैली थी और जिसने काश्मीर की सुन्दर वादी के कुछ भाग और जम्बू प्रान्त को भी घेर लिया था, उसमें निर्दोष औरतों और बच्चों के अपने सम्बन्धियों से जबरदस्ती से छीनकर दूर किये जाने और उन पर तरह-तरह के जुल्म-अत्याचार करने से जितनी हमारी इज्जत गिरी, उतनी किसी और घटना से नहीं गिरी होगी। इस प्रकार की दुर्घटनाएँ तो जानवरों के रहन-सहन के नियमों के अनुसार भी नहीं हैं। ऐसे कुकर्म समाज और सभ्यता की परम्पराओं के बिलकुल विपरीत हैं। इसलिए ऐसे लोगों के लिए इस दुनिया में कोई स्थान नहीं हो सकता। और हमारा कर्तव्य है कि सभ्यता के विरुद्ध ऐसे आचरण का हम दृढ़तापूर्वक दमन करें।

जब मैं इन माताओं और बहनों की दुर्दशा और उनके कष्टों का ख्याल करता हूँ तो मेरा हृदय शोक और पीड़ा से भर जाता है। अच्छे घराने की पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ, जिनका जीवन खुशहाली की गोद में पला, जो शान्ति से अपने परिवार वालों के साथ अपना सुरक्षित जीवन व्यतीत करती थीं, बहुत-सी स्त्रियाँ जो गरीब घरों का आभूषण थीं, आज उजाड़ और बरबाद हो गई है। उन्हें दुराचारियों ने अपने घरों से जबरदस्ती दूर कर ऐसी हालत में डाल दिया है, जो मानवता के नाम पर कलंक है। यदि हमें मानवता को फिर से उसके पुराने स्थान पर प्रतिष्ठित करना है, तो हमारा कर्तव्य है कि हम उन अभागी औरतों को उनकी वर्तमान पतित दशा से निकालें और उनको उनकी पुरानी परिस्थिति में पहुँचा दें। यदि हम ऐसा न कर पाएँ, तो मानव-इतिहास में हमारा कोई भी स्थान न होगा और आनेवाली पीढ़ियां हमें जानवरों से भी गया-बीता समझेंगी।

इस सत्कार्य में जो लोग हर प्रकार की मुसीबतों को झेलकर और विभिन्न बाधाओं की चिन्ता न करते हुए लगे हुए हैं, उन्होंने देश और मनुष्य जाति के प्रति अपना कर्तव्य पूरा किया है। इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। यह ठीक है कि यह समस्या इतनी महान है कि जो कुछ अब तक हो पाया है, वह सब तुच्छ मालूम पड़ता है। किन्तु इस थोड़े-से नतीजे को हासिल करने में ही हमें कितनी मेहनत और जी तोड़कर काम करने की जरूरत हुई है। अगर हम इसका विचार करें, तो हमें अनुमान हो सकता है कि यदि मानवता के खंडहरों से हमें ये आभूषण बचाने हैं, तो अभी कितना काम हमें और करना होगा। यह स्पष्ट है कि ऐसे महान कार्य को सफलता से पूरा करने के लिए जनता और सरकार का सहयोग जरूरी है। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की जनता और सरकार दोनों का यह कर्तव्य है कि इस काम में पूरी-पूरी सहायता दें। ऐसा न करना, न केवल उन आश्वासनों के खिलाफ होगा, जो दोनों सरकारों ने एक दूसरे को दिए हैं, बल्कि समाज और सभ्यता के सब सिद्धान्तों के भी प्रतिकूल होगा। हमें उन अपराधियों की आत्मा को भी जगाना है, जिनके कब्जे में यह औरतें हैं और जो इस प्रकार उनसे व्यवहार करते हैं कि मानो वे बाजार की क्रीत वस्तुएँ या जीती हुई लूट हों। मैं उनसे अपील करूँगा कि वह अपनी गलतियाँ महसूस करें और इस पर विचार करें कि उनके इस गलत रास्ते पर चलने से समाज की कितनी हानि होती है।

इस महा अपराध का दण्ड देते समय इस बात का कोई विचार नहीं किया जा सकता कि अपराधियों ने यह काम धर्म के नाम पर, या प्रतिशोध या लूट-खसोट की भावना से प्रेरित होकर किया था। यदि उन्हें फिर से मानव अधिकार प्राप्त करने हैं, तो उन्हें चाहिए कि वे पश्चात्ताप करें और जो बुराई उन्होंने की हैं, उसे ठीक करने में सहायता दें। यदि वे फिर से मनुष्य बनना चाहते हैं, तो उनके लिए बुरी राह छोड़ने का यही अवसर है। उन्हें चाहिए कि वे अपनी आत्मा क पुकार सुनें, अपने धर्म के आदेश, अपने समाज के नियम और जीवन के सिद्धान्त के अनुसार चलें। उन्हें चाहिए कि वे सोचें कि यदि उनकी अपनी स्त्रियों पर यह मुसीबत आती, तो वे खुद क्या करते? मुझे विश्वास है कि अगर ये लोग शान्ति से इन बातों पर सोच-विचार करेंगे, तो अवश्य ही उन्हें अपनी भूल का अनुभव होगा और वे उन लोगों का पूरा साथ देंगे, जो इन स्त्रियों की रक्षा और सहायता का प्रबन्ध कर रहे हैं।

मैं उन अभागे और शोकग्रस्त परिवारों से भी दो-चार शब्द कहना चाहता हूँ, जिन्होंने अपनी माँ, बहनों या बेटियों को खोया है। मैं उनकी पीड़ा और घोर यातना को समझ सकता हूँ। मैं जानता हूँ कि वे अपने प्रियजनों को फिर से पाने के लिए कैसे-कैसे खतरों का सामना कर रहे हैं और करने को तैयार हैं। मुझे अभी तक ऐसा कोई आदमी नहीं मिला, जो इन दुखित व पीड़ित स्त्रियों का फिर से अपने घर में स्वागत करने के लिए राजी बल्कि उत्सुक न हो। मैं उनसे यही कहूँगा कि आप हिम्मत न हारे, और अपनी कोशिश बराबर जारी रखें। जहाँ सैकड़ों और हजारों व्यक्तियों का प्रश्न हो, वहाँ यह सम्भव नहीं कि सब काम केवल सरकारी साधनों से ही हों। व्यक्तिगत अथवा सामूहिक गैर-सरकारी कोशिश, निरी सरकारी कार्यवाही की अपेक्षा अधिक सफल होती है। मैं आशा करता हूँ कि कार्यकर्ता लोग निराशाओं और विघ्न-बाधाओं से हिम्मत नहीं हारेंगे, और उत्साह, तत्परता तथा दृढ़ निश्चय के साथ इस सत्कार्य में लगे रहेंगे।

अपनी इन शोकग्रस्त बहनों को मैं सहानुभूति और समवेदना का संदेश भेजता हूँ। उनकी दुर्दशाओं और यातनाओं ने हमारे हृदय पर गहरी चोट पहुँचाई है। हमें उनका बराबर ध्यान रहता है। उन्हें इस बात में तनिक भी संदेह न होना चाहिए कि उनके परिवारवाले उन्हें सहर्ष वापस लेने के लिए हृदय से तैयार हैं और हम उनकी रक्षा और उद्धार के कार्य में किसी प्रकार की कमी न आने देंगे। मैं जानता हूँ कि उन्हें अपने वर्तमान जीवन का एक एक पल विष का घूंट होगा। किन्तु धीरज और विश्वास से बड़ी-से-बड़ी कठिनाइयां भी हल हो जाती हैं और कड़े-से-कड़ा दिल भी पिघल सकता है।

आप धीरज और विश्वास को न छोड़े औरे परमात्मा से प्रार्थना करें कि जो लोग आप की रक्षा करने का प्रयत्न कर रहे हैं, वे अपने शुभ कार्य में सफल हों और बुरा काम करनेवालों की सोई हुई आत्माएँ फिर से जागे, ताकि वे अपने कर्तव्य को समझ सकें।

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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