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इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण

भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


(6)
गान्धी जी की शोक-सभा में

रामलीला मैदान,
दिल्ली,
२ फरवरी, १९४८

सदर साहब, बहनो और भाइयो,

जब दिल दर्द से भरा होता है, तब जबान खुलती नहीं है और कुछ कहने को दिल नहीं होता है। इस मौके पर जो कुछ कहने को था, भाई जवाहरलाल नेहरू ने कह दिया, मैं क्या कहूं? जब से गान्धी जी हिन्दुस्तान में आए तब से, या जब मैंने जाहिर जीवन शुरू किया तब से, मैं उनके साथ रहा हूँ। अगर वे हिन्दुस्तान न आए होते, तो मैं कहाँ जाता और क्या करता, उसका जब मैं ख्याल करता हूं तो एक हैरानी-सी होती है। तीन दिन से मैं सोच रहा हूं कि गान्धी जी ने मेरे जीवन में कितना पल्टा किया और इसी तरह से लाखों आदमियों के जीवन में उन्होंने किस तरह से पल्टा किया? सारे भारतवर्ष के जीवन में उन्होंने कितना पल्टा किया। यदि वह हिन्दुस्तान में न आए होते तो राष्ट्र कहाँ जाता? हिन्दुस्तान कहाँ होता? सदियों से हम गिरे हुए थे। वह हमें उठाकर कहाँ तक ले आए? उन्होंने हमें आज़ाद बनाया। उनके हिन्दोस्तान आने के बाद क्या-क्या हुआ और किस तरह से उन्होंने हमें उठाया, कितनी दफा किस-किस प्रकार की तकलीफें उन्होंने उठाईं, कितनी दफे वह जेलखाने में गए और कितनी दफे उपवास किया, यह सब आज ख्याल आता है। कितने धीरज से, कितनी शान्ति से वह तकलीफें उठाते रहे, और आखिर आजादी के सब दरवाजे पार कर हमें उन्होंने आजादी दिलवाई।

लेकिन इसके बाद क्या हुआ? इसके बाद खुद हमारे एक नौजवान ने उनके बदन पर गोली चलाने की हिम्मत की। यह कितनी शरम की बात है! उसने गोली किसके ऊपर चलाई? उसने एक बूढ़े बदन पर गोली नहीं चलाई, यह गोली तो हिन्दुस्तान के मर्म स्थान पर चलाई गई है! और इससे हिन्दुस्तान को जो भारी जख्म लगा है, उसके भरने में बहुत समय लगेगा। बहुत बुरा काम किया! लेकिन इतनी शरम की बात होते हुए भी हमारे बदकिस्मत मुल्क में कई लोग ऐसे हैं, जो उसमें भी कोई बहादुरी समझते हैं, कोई खुशी की बात समझते हैं। जो ऐसे पागल लोग हैं, वे हमारे मुल्क में क्या नहीं करेंगे? और जब गान्धी जी के तन पर गोली चल सकती है, तो आप सोचिए कि कौन सलामत है? और किस पर गोली नहीं चल सकती है?

तो क्या गान्धी जी ने हिन्दुस्तान को जो आज़ादी दिलवाई, इसी काम के लिए? अगर हम इसी रास्ते पर चलेंगे, तो कहाँ जा कर बैठेंगे? हमारे पास क्या बाकी बच रहेगा? क्या हम आज़ादी को हज्म कर सकेंगे? दुनिया में हमारी क्या हालत होगी? जब गान्धी जी ने दिल्ली में यह अन्तिम उपवास किया तो मैं तो उस रोज इधर से चला गया था। लेकिन मुझे बहुत शक था कि इस समय वह उपवास में से बचेंगे कि नहीं। और जब वह उठे और उपवास छूट गया तो बहुत खुशी हुई। लेकिन यह खुशी कितने दिन की रही? और कौन कह सकता है कि उपवास छूटने से फायदा हुआ, जब पीछे से उन्हें गोली से मरना हुआ। अगर वह उपवास से मरते, तो भी हमको बहुत शरम होती। लेकिन गोली से मरे, तो कोई थोड़ी शरम की बात नहीं है। सारी दुनिया में हमारा मुंह काला हो गया है।

हाँ, यह कह सकते हैं कि यह काम एक पागल आदमी ने किया। लेकिन मैं यह काम किसी अकेले पागल आदमी का नहीं मानता। इसके पीछे कितने पागल हैं? और उसको पागल कहा जाए कि शैतान कहा जाए, यह कहना भी मुश्किल है। लेकिन जो लोग उसके पीछे हैं, उनको और बढ़ने दें, तो मुल्क में क्या नहीं आ सकता है। यह आप लोगों के सोचने की बात है। जिसके पास हुकूमत है, उसकी तो है ही। लेकिन जब तक आप लोग अपने दिल साफ कर हिम्मत से इसका मुकाबला नहीं करेंगे, तब तक काम नहीं चलेगा। मगर उसका मतलब यह नहीं है कि आप कानून अपने हाथ में लेकर उसको सजा देने लग जाएँ। तब तो उससे भी बुरा होगा। क्योंकि तब तो जैसे वह पागल हो गया, वैसे ही हम भी पागल बन जाएँगे। तो कानून में हस्तक्षेप किए बिना हमें इन चीजों का विरोध करना चाहिए। अगर हमारे घर में ऐसे छोटे बच्चे हों, हमारे घर में ऐसे नौजवान हों, जो उसी रास्ते पर जाना पसन्द करते हों, तो उनको कहना चाहिए कि यह बहुत बुरा रास्ता है और तुम हमारे साथ नहीं रह सकते। इस तरह साफ बात न करें, तो ये चीज़ें बढ़ती जाएँगी। ऐसे मौकों पर इसी तरह लाखों आदमी तो जरूर जमा हो जाते हैं, लेकिन चन्द दिनों के बाद अगर असल चीज भूल गई, तो फिर उस से भी बुरा नतीजा आएगा।

तो गान्धी जी ने कोशिश करके हमको आज़ादी तो दिलवाई। लेकिन उसके बाद जिसने आज़ादी दिलवाई, उसको भी हमारे सामने मरना पड़ा। यह बहुत बुरा काम किया गया। जिन लोगों ने यह काम किया, गवर्नमेंट की तरफ से उसकी पूरी खोज की जाएगी। लेकिन सरकार की इस कोशिश में, आपको साथ देना हो और अपना धर्म बजाना हो, तो आप को इस चीज के प्रति अपनी नापसन्दगी और घृणा बतानी चाहिए। जब मैं इधर आ रहा था तो एक भाई ने मेरे पास चिट्ठी भेजी कि कम्युनिस्टों का एक जुलूस निकला, उस जलूस में वे कहते थे कि हम बदला लेंगे। यदि फिर भी हम इस ढंग से काम करेंगे तो माना जाएगा कि गान्धी जी की बात जिन्दगी भर तो हमने सुनी नहीं, मानी नहीं, लेकिन मरने के बाद भी उसे नहीं माना।

बदला लेना हमारा काम नहीं है। इस तरह से बदला नहीं लिया जाता है। वैसा किया गया तो हम लोग गलत रास्ते पर चले जाएँगे। तो न किसी को मारना, न किसी के घर पर हल्ला करना और न किसी को पीटना। लेकिन यदि आपको कोई चीज़ मालूम हो तो तुरन्त हुकूमत को बता देना चाहिए कि इस प्रकार लोग काम करते हैं। तो इन लोगों को रोकना चाहिए कि वे ऐसा काम न करें। जो बुरा काम करता है, उसको रोकना, उसको ठीक तरह से रोकने की कोशिश करना हमारा काम है। लेकिन इस तरह से कोई बदला लेने की बात करे, तो उसकी बात हमें नहीं सुननी चाहिए। आज हम लोगों को इतनी सालों की कोशिश के बाद जो कुछ मिला है, गान्धी जी ने जो कुछ दिलवाया है, वह चीज़ हमें फेंक नहीं देनी है। यह थाती गान्धी जी हमारे पास रख गए हैं। इसको हमें ठीक तरह से चलाना है। इसके लिए हमें गान्धी जी के बताए हुए मार्ग को समझकर उस रास्ते पर चलने की कोशिश करना है। यही हमारा कर्तव्य है। हम ईश्वर से माँगें कि वह हमें उस रास्ते पर चलने की शक्ति दे।

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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