इतिहास और राजनीति >> भारत की एकता का निर्माण भारत की एकता का निर्माणसरदार पटेल
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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण
अब हमें कोयला चाहिए। कोयले के
बिना कोई कारखाना नहीं चलता। कोयला तो व्यवसाय की चाबी है। कोयले के बिना
कोई काम नहीं चलता। न गाड़ी चलती है, न इंजन चलता है, न कोई कारखाना चलता
है। तो कोलियारी तो धरती में पड़ी है। हमारे देश में बहुत-सी खानें हैं,
जिनमें कोयला भरा है। लेकिन माइनों में से कोयला ग्रेजुएटों से नहीं
निकलेगा, या सोशलिस्टों से भी नहीं निकलेगा। वह तो मजदूरों से ही निकलवाना
पड़ेगा। अभी हम मजदूरों से मेहनत करके कोयला निकालने को कहेंगे, तो वे उनके
पास पहुँच जाएँगे और कहेंगे कि हड़ताल करो।
क्या अब मैं बताऊँ आपको? बताने
की बहुत-सी बातें हैं। उसमें बहुत समय लगेगा। लेकिन जब मैं यह बातें कहता
हूँ तो वे कहते हैं कि यह हमारा बिटर क्रिटिसिज्म (कड़ी समालोचना) करता है।
मैं बिटर क्रिटिसिज्म की बात नहीं करता हूँ। मैं आपके दिल में घुसना चाहता
हूँ और आप को बताना चाहता हूँ कि कितनी सदियों के बाद आज आप को यह मौका
मिला है। एक हजार साल के बाद आज हमारा हिन्दुस्तान जितना संगठित हो गया
है, उतना वह पहले कभी नहीं था। अपने इतिहास को पढ़ो तो सही। कभी आपने सोचा
कि हमने अपना हिन्दुस्तान किस तरह गँवाया था? अपने पागलपन से गँवाया था।
हमारे राजा आपस में लड़ते थे। हमारे अपने यहाँ के लोग एक नहीं थे और हमारे
ही कुछ लोगों ने दुश्मन का साथ दिया था। उसी से हमने अपना देश गँवाया। अब
गान्धी जी की तपश्चर्या से यह पहला मौका आया है। कई लोगों ने बलिदान किया,
तब हमारे सद्भाग्य से यह मौका हमें मिला है। यह मौका गँवाओगे तो क्या
करोगे? हमारा तो दिन खत्म हुआ। हमारा काम तो पूरा हुआ। लेकिन अपनी यह गठरी
आप अपने सिर पर रख कर अपना बोझ आप उठा सकें, ऐसी शक्ति हम आपको देना चाहते
हैं। सोते हुए के ऊपर गठरी रखने से क्या फायदा?
अगर आप लोग जागृत नहीं रहेंगे,
तो बम्बई गिर जानेवाला है। बम्बई आज तक तो देश में सब से पहला रहा है। इधर
जो कुछ धन पैदा हुआ, इधर जो दिमाग पैदा हुआ, इधर जो पोलिटिकल लीडर पैदा
हुए, उन पर आप गर्व कर सकते है। लेकिन आज अगर आप उल्टे रास्ते पर चलें तो
आप गिर जाएँगे। आज तो यहाँ डेमोक्रेसी है, लोक-शासन है। उसमें लोक का साथ
नहीं होगा, तो कुछ भी नहीं होगा। तो जो गलत रास्ते पर चलते हैं, उनको
समझाना आपका काम है। और अगर वे न माने तो आप को उनका साथ नहीं देना चाहिए,
बल्कि कोशिश करके उन्हें रोकना चाहिए। यदि आप नागरिक अपना फर्ज नहीं
बजाते, तो स्वराज्य मिला न मिला, एक बराबर है। उससे हमारा देश गिर जाएगा।
मैने जितनी बातें आप लोगों के
सामने रखी हैं, उन पर आप गहराई से सोचें। आप अपनी जिम्मेवारी उठाने के लिए
कोशिश करें। मेरे दिल में जो आग भरी है, वह मैं आपके सामने रखता हूँ। यह
इसलिए कि जो मौका हमें मिला है, उसका हम पूरा फायदा उठावे। ईश्वर आपका
कल्याण करे।
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- वक्तव्य
- कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
- लखनऊ - 18 जनवरी 1948
- बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
- बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
- दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
- दिल्ली - 18 फरवरी 1948
- पटियाला - 15 जुलाई 1948
- नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
- गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
- बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
- नागपुर - 3 नवम्बर 1948
- नागपुर - 4 नवम्बर 1948
- दिल्ली - 20 जनवरी 1949
- इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
- जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
- हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
- हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
- मैसूर - 25 फरवरी 1949
- अम्बाला - 5 मार्च 1949
- जयपुर - 30 मार्च 1949
- इन्दौर - 7 मई 1949
- दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
- बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
- कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
- दिल्ली - 29 जनवरी 1950
- हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950