मजदूरों से यह कहना चाहिए कि
अपनी फौज के लिए आप को तोप बन्दूक, गोला, एम्यूनिशन (गोला-बारूद) सब चीज़
बनानी चाहिए। तोप, बन्दूक के लिए स्टील (इस्पात) चाहिए, कौन वह पैदा
करेगा? ऊपर से तो बरसेगा नहीं। उसके लिए हमें कारखाना बनाना होगा। हमारे
मुल्क में, हमारी धरती में बहुत लोहा पड़ा है, मगर उसके लिए हमें कारखाने
बनाने होंगे। आज तक लोहा अँग्रेज बाहर से ले आता था और हमारा धन ले जाता
था। अब स्वराज्य के बाद भी क्या हम लोहा बाहर से लाएंगे? नहीं, वह अब हमें
इधर पैदा करना है। हमारे यहाँ एक कारखाना टाटा का है। देश भर में मकान
बनाने के लिए जितना लोहा चाहिए, उतना भी उससे पूरा नहीं पड़ता। तो हम अपनी
आर्मी के आर्म्स-एम्यूनिशन के लिए कहां से लोहा लाएँ? उसी के लिए तो आज
स्टील पर कंट्रोल है और वह तोड़ा नहीं जा सकता। अनाज का, कपड़े का, शूगर
(चीनी) का कण्ट्रोल हम तोड़ सकते हैं, लेकिन स्टील का कण्ट्रोल नहीं तोड़
सकते। हमारे यहाँ बहुत कम स्टील है। तो जहाँ ज्यादा-से-ज्यादा जरूरत होती
है, वहीं हम देते हैं। आज टाटा के कारखाने में भी बार-बार स्ट्राइक होती
है। तो यदि नया गवर्नमेंट का कारखाना बनाना हो तो उसमें स्ट्राइक होनी ही
नहीं चाहिए।
आर्मी को कभी हमें मद्रास ले
जाना है, तो कभी पंजाब। उसके लिए रेलवे चाहिए। एक बटेलियन को ही एक जगह से
दूसरी जगह हटाना हो, तो उसके लिए कितनी रेलवे चाहिए? यह सब आपने देखा हो
तो मालूम पड़े। लेकिन हमारी रेलवे तो अब बूढ़ी जैसी हो गई। क्योंकि यह जो
पश्चिम में पिछली लड़ाई चली, उससे उसके ऊपर बहुत बोझ पड़ा। लेकिन अब लड़ाई
खत्म हो गई तो उसके लिए जो कुछ वैगन चाहिए, कुछ नये इंजन चाहिए, नये बाइलर
चाहिए, सब चीज़ें चाहिए। वे चीज़ें इधर बनती नहीं तो बाहर से लानी पड़ती हैं
और बाहरवाले मुल्क तंग आ गए हैं। उनके पास भी पिछली लड़ाई में सफाचट मैदान
हो गया है। उनको भी यही सब चाहिए। सो बहुत मुश्किल पड़ती है। उधर हम
टूटी-फूटी रेलवे लाइन की मरम्मत की कोशिश करें और उधर रेलवे के काम
करनेवालों को कहा जाए कि स्ट्राइक करो, तो सब खत्म हो गया। उस हालत में हम
लड़ाई कैसे जीतेंगे? किस तरह हमारा काम चलेगा?
अब जितने ट्रक्स हमारे पास
हैं, उनमें पेट्रोल चाहिए। पेट्रोल बिना ट्रक्स नहीं चलते। जीप नहीं चलती।
पेट्रोल कहाँ से ले आएँ? जिसके पास पेट्रोल है, वह चाबी बन्द करके बैठ
जाए, तो हमारी लड़ाई खत्म। तो पेट्रोल भी हिन्दुस्तान की धरती में पड़ा है।
लेकिन उसे हम कैसे निकालें? उसके लिए हमें कारखाने बनाने चाहिएँ। पर हमारे
भाई कहते हैं यह ''की इण्डस्ट्री'' (आधारभूत व्यवसाय) है। यह तो
सरकार की तरफ से करना चाहिए। अरे सरकार के पास इतने काम पड़े हैं, और उसका
काम चलानेवाले जो चन्द लोग हैं, उसके पास तो इतना बोझ पड़ा है। इस प्रकार
का काम इन लोगों ने कभी किया भी नहीं। आज मैं सरकार की तरफ से यह नहीं कह
सकता हूँ कि हम कोई ऐसी इण्डस्ट्री झटपट नेशनालाइज़ करें, जिसके बारे में
हमें कोई अनुभव न हो। उसमें तो हमें परदेशी लोगों को भी साथ लेना पड़ेगा।
क्योंकि इधर हमारा कोई आदमी जानता ही नहीं कि पेट्रोल किस तरह से निकालना
चाहिए। या पेट्रोल का कुआं कहाँ है? तो उसमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।
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