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भारत की एकता का निर्माण

सरदार पटेल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :350
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 62
आईएसबीएन :

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स्वतंत्रता के ठीक बाद भारत की एकता के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा देश की जनता को एकता के पक्ष में दिये गये भाषण


मैंने कल भी कहा था, आज भी आप लोगों से कहता हूँ और आप भाइयों को समझाना चाहता हूँ कि मुझे सोशलिज्म सिखाने की किसी को ज़रूरत नहीं। मार-पीट सिखाने की भी मुझे जरूरत नहीं है। जब से मैंने गान्धी जी का साथ दिया, और आज इस बात को बहुत साल हो गए, तभी से मैंने फैसला किया था कि यदि पब्लिक लाइफ़ (सार्वजनिक जीवन) में काम करना हो, अपनी मिल्कियत नहीं रखनी चाहिए। सोचिए जरा। तब से आज तक मैंने अपनी कोई चीज़ नहीं रक्खी। न मेरा कोई बैंक एकाउंट है, न मेरे पास कोई जमीन है, और न मेरे पास कोई अपना मकान है। मैं यह कुछ रखना ही नहीं चाहता हूँ। अगर मैं रखूं, तो मैं इसे पाप समझता हूँ। मुझे कोई सोशलिज्म का पाठ सिखाए, तो फिर उसे सीखना पड़ेगा कि पब्लिक लाइफ किस तरह से चलानी है। बातें बहुत चलती हैं। किसी ने मेरा नाम सरदार कर दिया। अब यहाँ बम्बई में जो सरदार-गृह है, उसके बारे में कलकत्ता के एक अखबार में छपा कि सरदार के पास बम्बई में बड़े-बड़े मकान हैं। उसके नाम पर है। सरदार नाम से अब इस तरह मेरी इज्जत तो बहुत बढ़ती है और शायद उनसे मुझे क्रेडिट पर रुपया भी मिल जाए!

तो हमारे मुल्क में ऐसी धोखेबाजी बहुत चलती है। मगर मैं आप से यह कहना चाहता हूँ कि आप समझते हैं कि आज हमारा काम धरती में से धन पैदा करना और बड़े-बड़े कारखाने बनाना है। क्योंकि मैंने आपसे कहा था कि यदि हमें फौज रखनी है, यदि हमें अपने मुल्क का रक्षण करना है, तो उसके लिए हमें अच्छी फौज रखनी पड़ेगी। उसके लिए हमें सेन्ट्रल गवर्नमेंट को मजबूत बनाना होगा। उसकी रक्षा करनी पड़ेगी। मज़बूत बनाने से मतलब यह है कि देश भर के लोग उसके पीछे होने चाहिएं। यदि आप लोग हमारे साथ न हों, तो हमारा वहाँ बैठना पाप है। तब हम वहाँ क्यों बैठें? क्या जरूरत है हमें? यदि आप लोग चाहते हैं कि वहाँ बैठें, और काम करें तभी हमारा काम करना उचित है। क्योंकि हम तो आपके ट्रस्टी बनकर वहाँ गए हैं और इसी हक से हम वहाँ बैठे हैं।

तो जब हम आप की तरफ से वहाँ बैठे हैं, तो हमारी बात समझ लीजिए कि मुल्क में दो चीजें हमें करनी हैं। एक तो हमें मुल्क में काम करने के लिए उचित आबोहवा पैदा करनी है। अगर यहाँ रात-दिन हिन्दू-मुसलमान के झगड़े में रहे तो कोई काम नहीं होगा। आज दो चाकू इधर किसी को मारा, दो छुरा किसी को मारा, एक बम उधर डाला, एक कलकत्ता में डाला, एक बम्बई में डाला, एक कानपुर में डाला और अखबार उसी सत्र से भरे रहें, तब तो हम कोई काम नहीं कर सकेंगे। इस तरह काट-मारकर एक साल में कितने मुसलमान मारोगे? उससे किसी को क्या फायदा मिलेगा? उधर मुसलमान भी बेचैन रहते हैं और हम न उनका उपयोग कर सकते हैं, न वे हमारा उपयोग कर सकते हैं। हमारी ३० करोड़ की आबादी में चार करोड़ मुसलमानों का हम क्या करें? तो इस तरह अगर हम झगड़ों में फँसे रहे, तो हमारा काम नहीं होगा। मुसलमान से कहो कि आप इधर हैं, तो हमारे साथ आराम से रहो और कोई फिक्र न करो। लेकिन यदि हमें लड़ना हो, तो जैसा कि मैंने कल भी कहा था, आज भी कहता हूँ कि लड़ने के लिए मौका चाहिए, लड़ने के लिए कारण चाहिए। बताना चाहिए कि किस कारण से हम लड़ते हैं। दुनिया के सामने रखना पड़ेगा कि इस चीज के लिए हम लड़ते हैं। लड़ने का समय और लड़ने का कारण आ जाने पर लड़ाई का पूरा सामान चाहिए, जिससे लड़ाई में हम मार न खाएँ। जब लड़ना हो, तो पूरी तैयारी से लड़ना चाहिए। तो यह चीज़ आज छुरा-छुरी से नहीं होती है। उससे तो उल्टा हमारा काम बिगड़ता है।

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    अनुक्रम

  1. वक्तव्य
  2. कलकत्ता - 3 जनवरी 1948
  3. लखनऊ - 18 जनवरी 1948
  4. बम्बई, चौपाटी - 17 जनवरी 1948
  5. बम्बई, शिवाजी पार्क - 18 जनवरी 1948
  6. दिल्ली (गाँधी जी की हत्या के एकदम बाद) - 30 जनवरी 1948
  7. दिल्ली (गाँधी जी की शोक-सभा में) - 2 फरवरी 1948
  8. दिल्ली - 18 फरवरी 1948
  9. पटियाला - 15 जुलाई 1948
  10. नई दिल्ली, इम्पीरियल होटल - 3 अक्तूबर 1948
  11. गुजरात - 12 अक्तूबर 1948
  12. बम्बई, चौपाटी - 30 अक्तूबर 1948
  13. नागपुर - 3 नवम्बर 1948
  14. नागपुर - 4 नवम्बर 1948
  15. दिल्ली - 20 जनवरी 1949
  16. इलाहाबाद - 25 नवम्बर 1948
  17. जयपुर - 17 दिसम्बर 1948
  18. हैदराबाद - 20 फरवरी 1949
  19. हैदराबाद (उस्मानिया युनिवर्सिटी) - 21 फरवरी 1949
  20. मैसूर - 25 फरवरी 1949
  21. अम्बाला - 5 मार्च 1949
  22. जयपुर - 30 मार्च 1949
  23. इन्दौर - 7 मई 1949
  24. दिल्ली - 31 अक्तूबर 1949
  25. बम्बई, चौपाटी - 4 जनवरी 1950
  26. कलकत्ता - 27 जनवरी 1950
  27. दिल्ली - 29 जनवरी 1950
  28. हैदराबाद - 7 अक्तूबर 1950

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