नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल अभिज्ञान शाकुन्तलकालिदास
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विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...
[नेपथ्य में]
अरे मार दिया, मार दिया, ब्राह्मण को मार दिया।
राजा : (ध्यान से कान लगाकर सुनता है।) अरे, यह तो माढव्य का-सा स्वर सुनाई दे रहा है।
कोई है?
[प्रतिहारी का प्रवेश]
प्रतिहारी : (घबराहट के स्वर में) महाराज! आपके मित्र बड़े ही संकट में पड़ गये हैं। कृपया उनके पास चलकर उनको बचाइये, महाराज!
राजा : माढव्य को कौन सता रहा है?
प्रतिहारी : महाराज! समझ में नहीं आ रहा है। लगता है कि किसी भूत-प्रेत ने उनको पकड़ लिया है।
उनको वहां से उठाकर मेघप्रतिच्छन्न भवन की मुंडेर पर ले जाकर टांग दिया है।
[राजा उठता है।]
राजा : यह कैसे हो सकता है? क्या मेरे घर में भी भूत-प्रेतों ने अपना अड्डा जमाना आरम्भ कर दिया है?
हां, यह भी सम्भव है-
क्योंकि जब मनुष्य यह जानता ही नहीं कि भूल से न जाने वह स्वयं कितने पाप कर्म कर डालता है, तो फिर यह कैसे जाना जा सकता है कि प्रजा में कौन किस समय कैसा कार्य कर रहा है। यह जानने की शक्ति किसमें है?
[नेपथ्य में]
भो मित्र! रक्षा करो, मेरी रक्षा करो।
[राजा वेग से जाता है।]
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