नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल अभिज्ञान शाकुन्तलकालिदास
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विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...
राजा : मित्र! डरो मत, डरो मत।
[नेपथ्य में]
हाय, हाय! मैं किस प्रकार न डरूं। यहां न जाने कौन है जो मेरी गर्दन को ईख के समान मरोड़कर तिहरी किये दे रहा है।
[राजा चारों ओर देखता है।]
राजा : अरे मेरा धनुष कहां है?
[धनुष-बाण लिये प्रतिहारी का प्रवेश]
यवनी : स्वामिन्! लीजिये, यह आपका धनुष और बाण।
[राजा धनुष-बाण लेता है।]
[नेपथ्य में]
तेरे कण्ठ के गरम-गरम रुधिर का प्यासा मैं तेरा उसी प्रकार वध करूंगा जिस प्रकार सिंह पशु को तड़पाकर मार डालता है। मैं देखता हूं कि पीड़ितों के रक्षक तुम्हारे धनुर्धारी, महाराज दुष्यन्त अब तुम्हें किस प्रकार बचाने आते हैं।
राजा : (क्रोध में) तो क्या तू मुझको भी चुनौती दे रहा है?
अरे सड़ा मांस खाने वाले पिशाच! जरा ठहर।
तेरा अन्त आ गया है। मैं तुझे अभी समाप्त करता हूं।
[राजा धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाता है।]
वेत्रवती! मुझे सीढ़ियों का मार्ग तो दिखाओ। तुम आगे-आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे चल रहा हूं।
[प्रतिहारी चलती है।]
प्रतिहारी : महाराज! आइये, इधर से आइये।
[सबका वेग से प्रस्थान]
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