नाटक-एकाँकी >> अभिज्ञान शाकुन्तल अभिज्ञान शाकुन्तलकालिदास
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विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित अभिज्ञान शाकुन्तल का नया रूप...
विषय-प्रवेश
सम्राट विक्रमादित्य अत्यन्त कर्तव्यनिष्ठ होने के साथ-साथ बड़े ही रसिक एवं साहित्य प्रेमी विद्वान् थे। उनके मन्त्रिमण्डल में कालिदास और भवभूति जैसे विद्वान् थे। प्रजा का अनुरंजन करना राजा का परम धर्म होता था। सम्राट विक्रमादित्य अपने इस कर्तव्य में कभी चूके नहीं। अनुरंजन के साथ-साथ प्रजा के मनोरंजन में उनकी प्रवृत्ति थी। एतदर्थ समय-समय पर विभिन्न प्रकार के आयोजन होते थे। ये आयोजन ऋतु और पर्व के आधार पर किये जाते थे।
ऐसे ही एक आयोजन के अवसर पर कालिदास रचित 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' का मंचन किया गया।
यहां पर कालिदास के मुख से कुछ न कहलाकर केवल नाटक के सूत्रधार के माध्यम से बताया गया है कि आज कालिदास रचित 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' के माध्यम से सभा एवं प्रजा का मनोरंजन किया जाएगा।
नाटक की यह प्राचीन परिपाटी है। नाटककार अपना परिचय नाटक के सूत्रधार के माध्यम से दिलवाता है। इस प्रकार नाटक मंचन आरम्भ होता है।
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