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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

"विशेष ही समझो।" राम मुस्कराए, "तुम सौमित्र को सूचित कर दो; और यदि कुछ असाधारण न हो तो आज का शेष समय अपने परिवार के साथ हो बिताओ। जाओ।"

शूर्पणखा ने जी भरकर दूध-स्नान किया। उसकी दासियों ने दूध से मल-मलकर उसक अंग धोए। उसे यह सूचना मिल चुकी थी कि अनेक ग्रामों में दूध प्राप्त करने के लिए उसके अंगरक्षकों को शस्त्र-प्रयोग करना पड़ा है; और चार अंगरक्षक इन्हीं संघर्षों में मारे गए हैं तथा अन्य कुछ घायल भी हुए हैं। किंतु इस समय वह इन छोटी-मोटी बातों की ओर ध्यान नहीं देना चाहती थी। आज वह इसी धुन में थी कि उसका श्रृंगार ऐसा होना चाहिए, जैसा सारे विश्व में पहले कभी किसी का नहीं हुआ। उसे आज सौमित्र से मिलने जाना था-ऐसा कुछ न रह जाए, जिसके कारण सौमित्र को आकर्षित करने में उसे कठिनाई हो।

लंका से आए हुए श्रृंगार-वैद्य अपने आसव और औषधियां उसे निरंतर पिला रहे थे। आज प्रसाधन में श्रृंगार-शिल्पिशों ने कुछ असाधारण कर दिखाने का संकल्प कर रखा था। श्रृंगार की प्रक्रिया कुछ इतनी वैविध्यपूर्ण और दीर्घकालीन सिद्ध हुई कि स्वयं शूर्पणखा भी ऊबने लगी; किंतु उसने निश्चय कर रखा था कि श्रृंगार-शिल्पियों को पूरी तरह अपने मन की करने देगी, ताकि बाद में वे यह उपालंभ न दे सकें कि शूर्पणखा ने उन्हें समय नहीं दिया।

श्रृंगार-संपन्न होकर शूर्पणखा ने स्वयं को दर्पण में देखा-वस्तुतः आज का श्रृंगार असाधारण था। उसके मन में तत्काल आक्रोश जागा-उस दिन ऐसा श्रृंगार क्यों नहीं हुआ, जब वह राम से मिलने जा रही थी? किंतु, अगले ही क्षण, उसने स्वयं को शांत कर लिया-उस दिन नहीं हुआ, न सही। आज इसका लाभ उठाना चाहिए।

वह गोदावरी के पास पहुंची तो समय कुछ अधिक हो चुका था। थोड़ी ही देर में संध्या ढलने वाली थी। झुटपुटा धरती पर उतर आने को जैसे तैयार बैठा था।...किंतु शूर्पणखा को इन बातों की चिंता नहीं थी-उसकी आंखें सौमित्र को खोज रही थीं।

उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। थोड़ी ही देर में सौमित्र आश्रम की ओर लौटते दिखाई दिए; और संयोग से वे एकदम अकेले थे।

वह जाकर उनके एकदम सम्मुख खड़ी हो गयी, ''सौमित्र!'' लक्ष्मण ने देखा तो आश्चर्य से उनकी आंखें फैल गयीं। इस वन में यह रूप और यह श्रृंगार! धरती फोड़कर यह सुंदरी कहां से निकल आयी? ''कौन हो, देवि! तुम?''

"मैं शूर्पणखा हूं...''

लक्ष्मण को राम द्वारा भिजवाया गया संदेश याद हो आया, और शूर्पणखा संबंधी घटना भी मन में जीवंत हो उठी, तो यह है शूर्पणखा? भैया को छोड़, अब यह उन पर कृपालु हुई है क्या? लक्ष्मण ने ध्यान से देखा, भैया ने ठीक ही कहा था. विगत यौवना युवती। पचास वर्ष का वय और अठारह वर्ष की तरुणी का वेश। लक्ष्मण को इस विसंगति में परिहास के सिवाय और कुछ भी नहीं सूझ रहा था।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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