बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
''क्या चाहती हो, देवि?"
''सौमित्र! मैं जनस्थान की स्वामिनी हूं, रावण की बहन-सूर्पणखा।'' वह बोली, ''तुम नहीं जानते, किंतु मैंने छिपकर तुम्हें देखा था; और जिस क्षण से देखा है, उसी क्षण से तुममें अनुरक्त हूं। मुझे ग्रहण करो।"
लक्ष्मण के मन में आया-जी खोलकर उच्च स्वर में हंसें, किंतु-हंसे नहीं। स्वयं को मर्यादित कर शांत स्वर में बोले, ''देवि! अनुरक्त तो आप मुझमें थीं, किंतु समर्पण भैया को करने गयी थी। जनस्थान की स्वामिनी का अनुराग तो अद्भुत है।''
''ठीक कह रहे हो।'' शूर्पणखा तनिक भी विचलित नहीं हुई, ''सोचा था, बड़े भाई के अविवाहित रहते, तुम विवाह नहीं करोगे। अतः उन्हीं से विवाह कर, तुम्हारे निकट रहूंगी।''
''और अब मुझसे विवाह कर, किसके निकट रहना चाहती हो?" लक्ष्मण मुस्कराए।
"कैसे दुष्ट हो तुम!'' शूर्पणखा ने इठलाकर, उन्हें अपांग से देखा, ''तुमसे विवाह करूंगी तो तुम्हारे निकट रहूंगी; किसी और के निकट रहने क्यों जाऊंगी!''
''मैंने सोचा, शायद तुम लोगों की ऐसी कोई रीति हो कि जिसके निकट रहना हो, विवाह उससे न कर उसके निकट के किसी वन्य व्यक्ति से किया जाता हो।'' शूर्पणखा झूम-झूमकर हंसी, जैसे लक्ष्मण ने कोई अत्यन्त सुखद विनोद किया हो।
''अच्छा, तुम हंसो। मुझे बहुत काम है।'' लक्ष्मण चलने को हुए।
''अरे, जा कहां रहे हो?'' शूर्पणखा उनके मार्ग में खड़ी हो गयी, ''विचित्र पुरुष हो! एक सुन्दरी एक सौ सोलह श्रृंगार किए, समर्पण के लिए तत्पर तुम्हारे मार्ग में खड़ी है, और तुम्हारे मन में बढ़कर उसे थाम लेने का पौरुष ही नहीं जागता!''
''दोष उसी सुन्दरी का है; उसने समर्पण के लिए ऐसा पौरुषहीन पुरुष ही क्यों चुना!'' लक्ष्मण चल पड़े, ''तुम्हें कोई ऐसा पुरुष नहीं मिला, जिसका पौरुष तुम्हें देखते ही खौल उठे?''
''जब मेरा मन हीं तुम पर आया है, तो दूसरा पुरुष कैसे मिल सकता है?'' शूर्पणखा लक्ष्मण के साथ-साथ चलने लगी।
''कहा जाओगी?''
''तुम्हारे साथ!''
''मैं तो अपने आश्रम में जा रहा हूं। वहां जाओगी तो लोग तुम्हारे इन कुंतलों का जटाजूट बना देंगे; और ठंडे जल के स्नान से तुम्हारा सारा रूप-यौवन निखार देंगे।''
''तो क्या हुआ!'' शूर्पणखा की आंखों में मादकता उतरी, ''ऐसा क्या है, जो तुम्हें पाने को मैं नहीं कर सकती?''
''सब कुछ कर सकती हो?''
''हां!''
''तो मेरा कहा मानो।''
''कहो।''
''गोदावरी में डूब मरो।''
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