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राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

''स्वामिनी!''

''हां। श्रृंगार-शिल्पियों को संदेश दे कि वे मेरे कल के प्रसाधन की तैयारी कर लें।''

''अंगरक्षकों से संदेश भिजवाऊं?'' रक्षिका चकित थी।

''अच्छा, परिचारिका से ही कहलवा दे।''

''जो आज्ञा।'' रक्षिका चली गयी।

शूर्पणखा की चिंतन प्रक्रिया पुनः चल पड़ी, त्रुटि कहां रह गयी? क्या ऐसा भी कोई पुरुष हो सकता है, जिसको क्रय करने के लिए संसार में कोई मूल्य न हो? ऐसा संभव नहीं। यदि पुरुष है, तो उसका मूल्य भी होगा ही। हताश अथवा सुख होने के स्थान पर, उसे राम के मूल्य की खोज करनी होगी। क्या चाहता है वह? उसकी दुर्बलता क्या है? रूप-सौंदर्य? धन-संपत्ति? सत्ता शक्ति? क्या चाहता है वह?

रूप-सौंदर्य से उसे आकर्षित करना कठिन है। शूर्पणखा ने स्वयं अपना रूप दर्पण में देखा था। उस रूप पर, जो पुरुष मुग्ध होना तो दूर, आकर्षित तक नहीं हुआ-उसकीं दुर्बलता रूप, सौंदर्य अथवा यौवन का आकर्षण नहीं हो सकता। यदि संसार की सर्वश्रेष्ठ सुंदरियां लाकर उसके चरणों में डाल दी जाएं-तो भी कदाचित् वह विचलित नहीं होगा। पर क्यों? या तो उसके शरीर-निर्माण में कोई अभाव है-उसके पास हृदय नहीं कि या पुरुष का उष्ण रक्त नहीं, या आंखों मैं यौवन-सौंदर्य को देखने की क्षमता नहीं, या मस्तिष्क ही प्रतिक्रियाविहीन है? या वह सड़े किस्म का कोई आदर्शवादी है, जो सिवाय अपनी पत्नी के अन्य किसी स्त्री के कामाह्वान से स्पंदित ही नहीं होता; अथवा उसके आसपास ऐसा रूप-सौंदर्य बिखरा हुआ है कि शूर्पणखा के सौंदर्य का उसके लिए कोई महत्त्व ही नहीं है।

तो धन-संपत्ति? शासन-सत्ता? किंतु, उसके विषय में बताया गया था कि वह अयोध्या का राजकुमार है, जो अपना राज्य छोड़कर वनवासी हो गया है तो उसे धन-संपत्ति का क्या आकर्षण हो सकता है? यदि उसे शासन की इच्छा हो तो शूर्पणखा इसी क्षण जनस्थान की राक्षस सेना उसके अधीन कर देगी-जिससे चाहे युद्ध करे, और जो राज्य चाहे, हस्तगत कर ले। शूर्पणखा का मन इस बात पर भी टिका नहीं...जो व्यक्ति अपना राज्य छोड़कर आया हो, वह नये राज्य को स्थापित करेगा?

कही ऐसा न हो कि यह भी आज के रूप-सौंदर्य के उत्कोच के समान व्यर्थ सिद्ध हो। ऐसा प्रस्ताव कर कहीं वह पुनः मूर्ख न बने।

अंधेरे में इधर-उधर मस्तिष्क, अनेक मार्गों पर चला और लौट आया। अनेक प्रश्न उसके मन में उठे और फिर स्वयं ही शांत हो गए। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, उसकी व्याकुलता बढ़ती जाती थी, कभी-कमी तो वह स्वयं भी घबरा जाती थी। व्याकुलता इसी प्रकार बढ़ती रही, तो वह किसी भी क्षण तर्क का मार्ग छोड़, उग्रता के मार्ग पर चलने लगेगी और तब प्रत्येक समस्या का उसे एक ही समाधान सूझेगा-शस्त्र और सेना! सहसा उसके मन में एक नया प्रश्न उठा। राम अपना राज्य छोड़ यहां वन में क्या करने आया है?

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

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