बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार राम कथा - साक्षात्कारनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान
दासी ने बताया था कि राक्षसों से ऋषियों की रक्षा करने आया है...दंडक वन में कुछ ऐसे संगठन बनाता भी रहा है-यह भी शूर्पणखा ने सुना था। जटायु के पास आकर, उसके सहयोगी के रूप में रुकने का क्या अर्थ हो सकता है? जटायु सदा से राक्षसों द्वारा पीड़ित होता रहा है... तो राम एक लक्ष्य लेकर आया है...कुछ लोग ऐसे भी होते हैं...जिनके सामने लक्ष्य ही प्रधान होता है। उनके लिए जीवन की प्रत्येक सुख-सुविधा नगण्य होती है, प्रत्येक आकर्षण-विकर्षण लक्ष्य के अनुरूप होते हैं...जीवन तथा लक्ष्य पर्याय हो जाते हैं...तो राम ऐसा व्यक्ति है-लक्ष्य और उद्देश्य के प्रति समर्पित...यही उसका मूल्य है...?
शूर्पणखा की आंखें चमक उठीं। मन हल्का हो गया। शरीर में स्फूर्ति आ गयी, "द्वार पर कौन है?'' उसने गर्दन उठाकर कहा, ''भोजन की व्यवस्था के लिए संदेश भिजवा दो।''
प्रातः से ही राम के आश्रम में संदेश-प्रेषण का कार्य आरंभ हो गया। मुखर की व्यस्तता बहुत बढ़ गयी। उसके दल के कार्यकर्ता इधर से उधर दौड़ रहे थे। थोड़ी देर में ही, अगले पड़ावों से, संदेश-प्राप्ति की सूचनाएं आने लगी थीं। दूसरी ओर लक्ष्मण भी सक्रिय हो उठे थे। वे अपने साथियों को लेकर प्रातः ही निकल गए थे और अनेक स्थानों पर बनाए गए शस्त्र-निर्माण-गृहों तथा सुरक्षित स्थानों से शस्त्र, वन में बने कुटीरों तथा आसपास के ग्रामों में पहुंचने लगे थे। पिछले दिनों जिन-जिन ग्रामों पर राक्षस सैनिकों ने छापे मारे थे, वहां शस्त्र पहले ही पहुंच चुके थे। उन ग्रामों के लोगों को युद्ध का स्वरूप कुछ-कुछ स्पष्ट हो चला था, शेष लोग अपनी घृणा और आक्रोश से राक्षसों से टकरा जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे...लक्ष्मण को सब स्थानों पर उत्साह ही दिखायी पड़ा था। निराशा और हताशा कहीं नहीं।
सीता शस्त्र-प्रशिक्षण में लगी रही, और राम एक ओर बाहर से आए हुए अनेक अभ्यागतों की समस्याओं का समाधान करते रहे और दूसरी ओर मुखर एवं लक्ष्मण द्वारा भेजी गयी सूचनाओं इत्याद्रि में उलझे रहे। दिन-भर कहीं जा नहीं पाए, जबकि इस सारे आयोजन में जटायु से विचार-विमर्श उन्हें अनिवार्य लग रहा था, साथ ही उल्लास और मणि के पुत्र के स्वास्थ्य के विषय में भी पूछना था।
संध्या समय वे आश्रम से निकले। टीले से उतरे, पहले उल्लास के कुटीर की ओर जाने का निश्चय कर उधर मुड़े ही थे कि उन्हें सामने शूर्पणखा खड़ी मिली। राम ने पहली दृष्टि में देखा-उसका श्रृंगार कल से किसी भी प्रकार कम नहीं था। परिधान कुछ अधिक ही भड़कीला था -कदाचित किसी दूर देश से मंगवाए गए, किसी विशिष्ट वस्त्र से बना हुआ।...कल जाते हुए जिस प्रकार वह रुष्ट होकर गयी थी, आज वैसी रुष्ट भी नहीं लग रही थी।
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