जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो मुझे घर ले चलोतसलीमा नसरीन
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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान
वह आदमी अपने काम में यूँ डूब गया, जैसे मेरी बात उसने सुनी ही नहीं या मैं, वहाँ हूँ ही नहीं! मैं कोई 'नथिंग' हूँ। एमिग्रेशन ने मुझे बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी। अब मुझे और कहीं, किसी और देश चले जाना होगा। मैं जिस जहाज से आई थी, उसके सभी यात्री ‘एमिग्रेशन' पार करके जा चुके थे। कनेक्टिग फ्लाइट के मुसाफिर अपना-अपना प्लेन भी पकड़ चुके थे। अन्य जहाजों के यात्री, जो अभी-अभी उतरे हैं, वे लोग एमिग्रेशन पार हो रहे थे। मैं दीवार के कोने से चिपकी, जस की तस खड़ी थी। मारे अपमान और उपेक्षा के दाँत पीसती हुई, मैं खड़ी रही! मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ! मेरा सूटकेस आ जाए, तो मुझे स्वीडन लौट जाना होगा, इस नियति को क्या मैं रोक नहीं सकती? मेरे पास क्या कोई उपाय नहीं है? छोटू'दा खड़ा-खड़ा देखता रहेगा। मुझे बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी गई। मेरे पास वैध पासपोर्ट था, वैध वीजा भी था, फिर भी मुझे अनुमति नहीं मिली। छोटू'दा के साथ मेरा दो दिन रहना नहीं हो पाएगा। मैं उसके साथ नहीं रह सकती, क्योंकि मेरे बदन की चमड़ी गोरी नहीं है। मेरा पासपोर्ट गरीब देश का पासपोर्ट है। मेरा सिर रह-रहकर चकरा रहा था, कभी स्थिर हो जाता था। आँखें वार-वार डबडबाती रहीं, अगले ही पल मैं आँसू रोकने की कोशिश कर रही थी। एमिग्रेशन अधिकारी ने मुझे फिर झिड़क दिया और ज़रा दूर जाकर खड़े होने को कहा, क्योंकि गोरी चमड़ीवालों से मेरी देह का स्पर्श हो सकता था, उन लोगों को परेशानी हो सकती थी।
ऐसे में भीड़ में से ही चंद लोगों की मुझ पर निगाह पड़ी। वे लोग मेरे प्रति एमिग्रेशन अधिकारी का भी बर्ताव देख रहे थे।
वे लोग मेरी तरफ बढ़ आए!
बेहद विनीत आवाज़ में उन्होंने पूछा, “आप तसलीमा नसरीन हैं?"
“जी!"
"कोई परेशानी है?"
"मैं अपने भाई से मिलने आई हूँ। ये लोग मुझे जाने ही नहीं दे रहे हैं।"
"अरे, कमाल है।"
उन्हीं लोगों में से एक ने एमिग्रेशन अधिकारी से कहा, “आप इन्हें नहीं पहचानते? आप किसे रोक रहे हैं? ये काफी मशहूर लेखिका हैं। लगता है, आपको यह जानने का सौभाग्य भी नहीं मिला। इस देश के लोगों को अगर पता लगे तो वे लोग इनके लिए 'रेड कार्पेट' बिछा देंगे।"
वे लोग डच थे। उन लोगों ने उससे डच में ही बातचीत की। उन लोगों की बात सुनकर वह अधिकारी ज़रा सकपका गया। उसने मेरा पासपोर्ट माँगा, कुछेक पल उसने पासपोर्ट उलट-पलटकर देखा। उसके बाद उसने मुहर लगाई। आखिरकार रिहाई का अनुमति-पत्र मिल ही गया। गोरे आदमी का तिरस्कार गोरा आदमी सुनता रहा।
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