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जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

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औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


स्वीडन का मुख्य आहार मी-वॉल और आलू माना जाता है। आलू भी लेटिन अमेरिका से आता है और मीट वॉल राजा गुस्ताव पंचम तुर्किस्तान से लाए हैं। अभी कुछ दिनों पहले तक यहाँ के लोग शलगम और सूअर मार-मारकर खाते थे। ये लोग सभ्य भी नहीं थे। अचानक उनके पास पैसा आ गया और वे लोग अमीर हो गए। अचानक उन लोगों ने मानवाधिकार के क्षेत्र में भी नाम कमाया। वैसे नाम कमाने के लिए उन लोगों ने जान लड़ाकर कोशिश भी की थी। इसी देश से अल्फ्रेड नोवेल का दरिद्रता के कारण विदा लेनी पड़ी। उन्होंने दूसरे देश में लिखाई-पढ़ाई की। वाद में फ्रांस में वैटे-बैठे उन्होंने डायनामाइट का आविष्कार किया। उन्होंने जो रुपये-पैसे अर्जित किए. वह फ्रांस में रिसर्च करने की बदौलत! लेकिन अपनी सारी जमा-पँजी. उन्होंने देश की तरक्की में लगा दी। स्वीडन के प्रायः सभी लोग या ता राष्ट्रवादी हैं या दशप्रेमी। वैसे इस बात को लेकर बहस छिड़ी रहती है कि इन दोनों में कौन-सा बेहतर है। ज्यादातर लोगों की मानसिकता अल्फ्रेड नोबेल जैसी ही है।

एक दिन मैं जंगल में टहल रही थी। वन जंगलों में टहलने का इन लोगों को अभ्यास है। चलते-चलते ही वे लोग अहा-अहा करके मेढक के छत्ते बटोरने लगे। मंरी महिला पुलिस ऐन क्रिस्टीन मेटक के हर छत्ते की वंश-परंपरा तक पहचानती है। शहर के बीचोंबीच स्थित जंगल में टहलते हुए मुझे जानकारी मिली कि सभी मंढकों के छत्तं खाने लायक नहीं होते। कई तरह के कुकुरमुत्ते ज़हर होते हैं। उसे खाते ही इंसान दम तोड़ देता है। खैर, अच्छा या बुरा कोई ककुरमुत्ता मैं नहीं खाती। इसलिए कुकुरमुत्तों के प्रति उन लोगों का यूँ हहाकर उमड़ना मैं बेहद विस्मित निगाहों से देखती रही। इस वन-जंगल में जाने कितने वेजान पत्ते, डालियाँ, जड़ें पड़ी हुई थीं। मैंने सिगरेट पीकर टोटा वहीं उछाल दिया। मेरे सुरक्षाकर्मी एंडरस ने उसे तत्काल उठा लिया। मीलों चलते रहने के बाद जव कचरे का एक ड्रम नज़र आया, उसमें सिगरेट का आखिरी हिस्सा (टोटा) फेंक दिया।

"क्यों? वहीं पड़ी रहती तो क्या परेशानी थी?" मैंने पूछा।

"जंगल गंदा हो जाता।" ऐंडरस ने सपाट जवाब दिया।

वे लोग अपना समूचा देश साफ-सुथरा रखते हैं। विल्कुल झक्झक्, जगमगाता हुआ! फ्रांस में बड़े-बड़े बरामदे वाले घर-मकान मौजूद हैं, साथ ही अस्तरहीन, झुरझुराकर, सुर्थी-चूना गिरते हुए घर भी हैं। स्वीडन में बड़ा-बड़ा या लम्बा-चौड़ा कुछ भी नहीं है, न ही आँखों को चौंधिया देने वाले ल्यूमर जादूघर या होटल द मिल नहीं हैं। यहाँ फ्रांस जैसा पमपीडू भी नहीं है, ग्यं पैलेस या पिति पैलेस भी नहीं है। वहाँ कॉन्कॉर्ड जैसा विशाल स्क्वायर, नॉतरदम वा नेपालियन की कब्र जैसी स्थापत्य कला भी नहीं है। इफल टाबर जितना ऊंचा भी कुछ नहीं है। यहाँ सब कुछ छोटे-छोटे आकार का है। एक किस्म का मनिएचर स्थापत्य जैसी कोई बला नहीं है। सारा कुछ माचिसनमा। माचिस के अलावा जो कुछ भी है, सब मलम्मा है, कुछ भी असली नहीं, सारा कुछ दो नम्बरी! ज़्यादातर फ्रांत के स्थापत्य का नकल में बनाए गए थे, वह भी पूरी एक सदी गुज़र जाने के बाद!

लेकिन देशप्रेम कभी-कभी जातीयताबाद तक पहुँच जाता है। यूरोप में जातीयताबाद एक नीतिवाचक शब्द है, क्योंकि हिटलर उग्र जातीयतावादी था। उग्र जातीयतावादी लोगों में नए नाजी भी मौजूद हैं। नया नाजी वर्ग भी स्वस्तिक चिड़ इस्तेमाल करता है, लेकिन चोरी-छिपे! क्योंकि नाजी दल वनाना या नाजी चिड इस्तेमाल करना सर्वथा वर्जित है। नई पीढ़ी के नौजवानों के लिए निपिद्ध चीजों के प्रति प्रवल आकर्पण होता है इसलिए यह अक्सर देखा गया है कि रात के अंधेरे में चोरी-छिपे नाजियों की मीटिंग हो रही है। नाजी आदर्शों के गीत गाए जा रहे हैं। निओ-नाजी: स्किन-हेड ! उन लोगों को देखते ही पहचाना जा सकता है। सफाचट सिर! मोटे-मोटे वूट-जूते! काले या वादामी लोगों के प्रति नफ़रत-भरी नज़रों से देखेंगे। मौका पाकर मार-पीट करेंगे! और ज़्यादा मौका मिला तो जान से मार डालेंगे। यह सब सुनकर ही मुझे दहशत होने लगती है! खैर, स्थिति चाहे जैसी भी हो, स्वीडन देश विल्कुल तस्वीर की तरह खूबसूरत है। मैं यहाँ गर्मी के मौसम के आखिरी दिनों में पहुँची हूँ। यहाँ कदम रखते ही एक रंग ने मुझे बार-बार मुग्ध किया है। वह रंग है-हरा! घास का रंग, पड़ों के पत्तों का रंग इतना हरा हो सकता है और यह हरा रंग, इतना खूबसूरत हो सकता है, इससे पहले मैं नहीं जानती थी। शाम के वक्त डायना के साथ इस हरीतिमा में टहलते हुए मैं यही एक चीज़ देखती हूँ-प्रकृति!

पानी में स्पीड-बोट खड़ा रहता था। एक दिन इयर्गन पानी में से अचानक प्रकट हुआ! मैं तो मारे दहशत के चीख उठी। मेरी चीख सुनकर सभी लोग हँस पड़े...हँसते रहे। मैं ठहरी महा-डरपोक! मुझे तैरना नहीं आता, यह जानकर वे लोग चौंक उठे। इस देश में सभी लोगों को तैरना आता है। स्कूल में ही सीखना अनिवार्य है। सभी लोग साइकिल चलाना भी जानते हैं। मुझे इन दोनों में से एक भी नहीं आता। यह बात सुनकर लोग मुझे विस्मित निगाहों से आपादमस्तक घूरने लगते हैं। उनमें से किसी की भी नज़र सभ्य-शिष्ट नहीं लगती।

मैं कभी भी खाली बैठने वाली लड़की नहीं हूँ। अपने देश में आकंठ व्यस्तता में मेरे दिन गुज़रते थे और यहाँ एक द्वीप में निकम्मापन देकर, मुझे विठाए रखा गया है। मेरा दम घुटता रहता है। जितनी-सी बातचीत होती है, वस, इन्हीं अंगरक्षकों के साथ! सभी लोग गाते रहते थे, उन लोगों का दाम्पत्य सुखी संसार है। सभी लोगों ने प्यार करके शादी की है। इनमें से बहत-से लोगों ने शादी नहीं की, लेकिन प्रेमी या प्रेमिका के साथ रहते-सहते हैं। जो लोग विवाह करते हैं, वह इसलिए कि विवाहितों को आयकर कम देना पड़ता है। मुझे अभाव और मोहताजी देखने की आदत है।

मैंने इयान से ही पूछा, “जो तन्खाह मिलती है, उसमें तुम्हारा काम चल जाता है?"

इयान हँस पड़ा, “हाँ, वेशक!"

इयान के पास अपनी गाड़ी है, घर है। उसकी वीवी भी नौकरी करती है।

इयान ने ही बताया, "इस देश में कोई भी औरत, आर्थिक तौर पर अपने पति पर निर्भर नहीं करती।"

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    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

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