लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> मुझे घर ले चलो

मुझे घर ले चलो

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :359
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5115
आईएसबीएन :81-8143-666-0

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

419 पाठक हैं

औरत की आज़ादी में धर्म और पुरुष-सत्ता सबसे बड़ी बाधा बनती है-बेहद साफ़गोई से इसके समर्थन में, बेबाक बयान


नाटे कद के एक वादमी शख्स ने मेरे करीब आकर खुद ही अपना परिचय दिया, “मैं दाऊद हैदर हूँ।"

“ओ, अच्छा !"

मैं और मेरी एक जर्मन सहेली, रेनाटे क्लाउस, गुन्टुर ग्रास को सुनने गई थीं। रेनाटे जर्मन मानववादी दल की सदस्या है। जब हम दोनों चाय पीने गईं, दाऊद भी संग हो लिया। चाय पीकर जब रेनाटे अपनी गाड़ी से मुझे घर छोड़ने आई, दाऊद भी लपककर गाड़ी में बैठ गया। उसने बताया कि वह रास्ते में ही कहीं उतर जाएगा। गाड़ी में जाते-जाते उसने बेहद कौशलपूर्ण तरीके से मेरा पता-ठिकाना जानना चाहा, लेकिन पता-ठिकाना न मैंने दिया, न रेनाटे ने। कुछ दूर जाने के बाद, रेनाटे ने एक तरीके से उसे गाड़ी से उतर जाने को कहा। मुझे किसी को भी अपना पता देने की मनाही थी, यह बात रेनाटे भी जानती थी।

“उमवार्तो एको, इस वक्त भी मेरे घर में सो रहा है। हफ्ते-भर पहले मेरे साथ कुछ दिन बिताने के लिए, वह इटली से आया है। कल येमेशेंको मुझसे मिलने के लिए मेरे घर आया था। उसे वक्त देने के लिए मेरे पास फुर्सत नहीं थी, इसलिए वह कल ही मॉस्को लौट गया।"

उसक यह सब लनतरानी सुनते-सुनते रेनाटे ने टेढ़ी निगाहों से मेरी तरफ देखा। अपने बारे में दाऊद का यूँ बढ़-बढ़कर किस्से गढ़ना, रेनाटे के लिए बर्दाश्त से बाहर हो आया।

उसके उतर जाने के बाद रेनाटे ने कहा, "इस आदमी को तो मनोचिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।"
  
दाऊद हैदर के साथ मेरी वह पहली और आखिरी मुलाक़ात थी, लेकिन इससे क्या होता! एक दिन अचानक मैंने यह ख़बर सुनी कि मेरा तो दाऊद हैदर नामक किसी शख्स से विवाह हो चुका है। यह खबर दुनिया भर के अखबारों में प्रकाशित भी हो चुकी है, मुझे ही इसकी कोई जानकारी तक नहीं है। मुझे तो यह ख़बर तब मिली, जब मैं इटली के एमनेस्टी इंटरनेशनल का दौरा ख़त्म करके जर्मनी हवाई अड्डे पर उतरी! लोग मुझे मुबारकबाद देने लगे। भई, यह मुबारकबाद किस बात के लिए? इसलिए कि मैंने शादी कर ली है। मेरे बहुतेरे यूरोपीय दोस्तों ने डाक द्वारा मेरे लिए उपहार भी भेज़ दिए हैं! यह ख़बर रॉयटर के ज़रिए आई है, लेकिन रॉयटर को यह झूठी खबर कहाँ से मिली, मेरा यह जानने का मन हो आया, जो इंसान जिंदगी-भर झूठी अफवाहों और कुप्रचार का शिकार होने का अभ्यस्त हो चुका हो, वह क्यों उतावला होता? मैं भी इस ख़बर का स्रोत जानने को उतावली नहीं हुई, लेकिन मेरे मन में विस्मय ज़रूर पलता रहा। इसकी वजह यह थी कि ऐसी ख़बरें बांग्लादेशी मुल्लों का 'इंकलाव' और 'संग्राम' नामक अखबार की नहीं थी, बल्कि बदस्तूर लॅ मंद, गार्डियन, डॅगेनस निहेटर, डार टागेस्पिगल, डाइ जाइट जैसे मशहूर और प्रतिष्ठित अख़बार थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. जंजीर
  2. दूरदीपवासिनी
  3. खुली चिट्टी
  4. दुनिया के सफ़र पर
  5. भूमध्य सागर के तट पर
  6. दाह...
  7. देह-रक्षा
  8. एकाकी जीवन
  9. निर्वासित नारी की कविता
  10. मैं सकुशल नहीं हूँ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book